संवेदनाएं किसी पहचान से ज़्यादा तीव्र और सार्वभौमिक होती हैं. हम भले ही किसी को न जानते हों, पर उसे ज़रूरत होती है तो मदद का हाथ बढ़ा देते हैं. ‘हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया’ का सार यही है.
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे
पुस्तक साभार: अतिरिक्त नहीं
कवि: विनोद कुमार शुक्ल
प्रकाशन: वाणी प्रकाशन
Illustration: Pinterest