ऑलिव ब्रांच को शांति की पेशकश के रूप में देखा जाता है. जब युद्ध लड़ रहे दो मुल्क़ लड़ते-लड़ते थक जाते हैं तो शांति समझौते के स्वरूप ऑलिव ब्रांच भेजते हैं. ऑलिव का इस्तेमाल आप भी अपने शरीर के साथ युद्ध में कर सकते हैं. अपनी असेहतमंद आदतों को बंद करके शरीर के साथ सेहतवार्ता करने के लिए ऑलिव से बढ़कर भला और क्या होगा. शरीर से सेहतवार्ता में मध्यस्थता कर रहे हैं डॉ अबरार मुल्तानी.
अंग्रेज़ी में ऑलिव के नाम से जाना जानेवाला जैतून का मूल स्थान पश्चिमी एशिया को माना जाता है. जैतून का पेड़ हमेशा हरा-भरा रहता है और इसके पत्ते अमरूद के पत्तों के समान होते हैं. इसका तेल काफ़ी सेहतमंद माना जाता है. यह तेल जैतून के फल से निकाला जाता है, जिसे वर्जिन ऑयल कहते हैं. जैतून के तेल की तासीर गर्म होती है, आयुर्वेद के अनुसार यह स्निग्ध और पित्त रेचक होता है. कच्चे फलों का तेल रूखापन और खुजली पैदा करता है. जैतून के तेल के कुछ औषधीय उपयोग मैं आपको यहां बताना चाहता हूं:
* यह नसों को स्मूद रखता है और उन्हें रिपेयर करता है इसलिए इसे गर्म पानी के साथ रोज़ाना लेने से लंबी उम्र पाई जा सकती है.
* इसके तेल को पिया जाता है और कैप्सूल में भरकर भी इसे लिया जाता है. सब्ज़ियां बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है और इसे सलाद के ऊपर डालकर भी खाया जाता है.
* जिन लोगों को शुष्क मल या टाइट स्टूल आता है, उन्हें जैतून का तेल आधी से एक चम्मच रोज़ाना पीना चाहिए. इससे मल की शुष्कता दूर होती है और बिना कष्ट के मल विसर्जित हो जाता है. इसलिए यह पाइल्स, फ़िशर, और फिस्चुला के रोगियों को लाभ पहुंचाता है.
* पित्त रेचक होने के कारण यह गॉलब्लैडर स्टोन में बहुत लाभ पहुंचाता है. ऐसे रोगी जिनको गॉलब्लैडर स्टोन के कारण या गोल ब्लैडर में सूजन के कारण पेट फूलता है, एसिडिटी होती है या जी मिचलाता है उन्हें जैतून का तेल आधा से एक चम्मच रोज़ाना खाना खाने के बाद देने से बहुत फ़ायदा होता है. कई बार केवल इस तेल को लेने से ही बहुत ही छोटे आकार के गॉलब्लैडर स्टोन निकल भी जाते हैं, क्योंकि गॉलब्लैडर स्टोन का मेन कंपोजिशन कोलेस्ट्रिन है जो कि जैतून के तेल में घुलनशील होता है.
* यह ज़ख्मों को भरता है, इसलिए इसे ज़ख्मों पर लगाया जाता है या ज़ख्म भरने के मरहम में इसे मिलाया जाता है.
* इसकी मालिश करने से त्वचा में निखार आता है इसलिए बच्चे और महिलाएं इसकी मालिश करती हैं. यह दर्द को भी ख़त्म करता है इसलिए जोड़ों के दर्द या नसों के दर्द में इसकी मालिश की जाती है.
* यह त्वचा के रोगों में भी लाभकारी है, इसलिए दाद-खाज-खुजली आदि चर्म रोगों में इसे त्वचा पर लगाया जाता है.
* जल जाने पर एक भाग चूने का पानी और दो भाग जैतून का तेल मिलाकर अच्छे से उसे घोटा जाता है, इससे यह एक बेहतरीन मरहम बन जाता है, जिसे जले हुए ज़ख्मों पर लगाया जाता है.
डॉ अबरार मुल्तानी
सिरीज़: किचन क्लीनिक
*पाठकों से औषधीय उपयोग से पूर्व चिकित्सकीय परामर्श अपेक्षित है.