• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब नई कहानियां

दिवाली ऐसी भी: डॉ संगीता झा की कहानी

डॉ संगीता झा by डॉ संगीता झा
November 22, 2023
in नई कहानियां, बुक क्लब
A A
Dr-Sangeeta-Jha
Share on FacebookShare on Twitter

वक़्त के साथ त्यौहारों के मनाने का अंदाज़ बदल गया है. यह बदलाव नई और पुरानी पीढ़ी के बीच स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. बूढ़ी अम्मा और नई पीढ़ी के दिवाली मनाने के तरीक़े के इर्द-गिर्द लिखी यह कहानी एक परिवार के इतिहास को खंगालती है. उसकी बुनियाद में लगे उन दांव-पेंचों की पड़ताल करती है, जो अब उसपर ही भारी पड़ रहे हैं.

“बच्चों जल्दी जल्दी दीपक वाली थालियां हाथ में ले हर दरवाजे पर दीपक लगाते जाओ. अरे दिवाली है, आज ही के दिन तो मेरे राम जी अयोध्या पहुंचे थे. अरे चांद पर चढ़ भी जाओ तो मान्यताएं बिलकुल वैसी ही होती है. लोग अमेरिका में भी दिवाली मना रहे हैं और तुम लोग भी ना…”
दादी अम्मा दो घंटे से गुहार लगाए जा रही थी. पांच बड़ी-बड़ी थालियां ले सबमें बीस और एक आख़िरी थाली में इक्कीस दिए जला कर रखे थे. अम्मा इस दिवाली में एक सौ एक दिए जलाना चाहती थी, क्योंकि कल ही सत्संग में सारे लोग अयोध्या की दिवाली और लाखों दिए जलाने की बात कर रहे थे. दिवाली की छुट्टियों की वजह से उनके दोनों बेटे, तीनों नाती और इकलौती नकचढ़ी नातिन उनके पास है. पिछले तीन सालों तो सारा संसार कोरोना महामारी से परेशान था. बूढ़ी अम्मा तो जय लक्ष्मी मैय्या के बदले जय करोना माता तक गाने का मन बना लिया था. दुनिया बदल गई है इससे सबके दिवाली के अलग-अलग प्लान बन गए थे. बच्चों का दोस्तों के साथ ताश और कुछ अलग-सी पार्टी का प्लान था. दोनों बेटों और बहुओं ने भी अपने अपने सर्कल में कुछ प्लान कर लिया था. दादी अम्मा की दिवाली घर की शीला और हरिपाल के साथ ही बीतने वाली थी, जिससे वो पूरी तरह अनजान थी. उनके दिमाग़ में वही पुरानी लक्ष्मी पूजा उसके बाद दिए फटाके और सारे घर का साथ खाना ख़ाना. उन्होंने तो शीला के साथ मिल सौंधी पूरी, खीर, कुम्हड़े और आलू की रस वाली सब्ज़ी भी बनवाई थी. बचपन में दोनों बेटे कम्पटीशन में पूरियां खाते थे. तब तो वही बेला और सेंका करती थी. अब वो दम ख़म कहां?
वो तो भला हो उनके स्वर्गवासी पति का इतनी बड़ी कोठी का निर्माण करते समय पीछे दो बेडरूम, एक हाल और रसोई घर के साथ एक यूनिट भी बना दिया था. उस समय लगा शायद पीछे किराएदार रखना चाहते हैं. पर नहीं वो तो अपना भविष्य सुखमय करना चाह रहे थे. वो निर्माण घर के काम सहायक शीला और हरिपाल के लिए था, जिन्हें उन्होंने अपने ही गांव से लाकर पाला पोसा, कुछ हद तक पढ़ाया लिखाया और फिर अपने साथ बसाया भी. उन दोनों की शादी भी करा दी. हरिपाल को अनुसूचित जाति की वजह से सरकारी बैक में नौकरी भी मिल गई. क्या मजाल कि सरकारी नौकरी मिलने के बाद भी उनकी स्वामी भक्ति में ज़रा भी कमी आई हो. हरिपाल ऑफ़िस के बाद अम्मा जी का ड्राइवर हेल्पर और कभी-कभी शीला के बीमार पड़ने पर बावर्ची भी था. लोगों ने हंसी भी उड़ाई कि दो-दो बेटों के होते हुए तीसरा बेटे जैसा हरिपाल की क्या ज़रूरत है? लेकिन अम्मा जी के पति ने भी अमिताभ बच्चन, हेमामालिनी की बाग़बान पिक्चर कई बार देखी थी. हर बार एक नई सीख ली कि बच्चे अपने तभी तक हैं जब तक शादी नहीं होती. उन्हें बेटी ना होने का मलाल हमेशा रहता था. उनके एक दोस्त ने उन्हें एक कहावत बताई थी जो उनके दिमाग़ में पूरी तरह से घुस गई थी. वो थी
‘ए सन इज़ ए सन टिल ही गेट्स हिज़ वाइफ़
डॉटर रिमेंस डॉटर थ्रू आउट हर लाइफ़’
ये बात बार-बार जब अम्मा जी से कहते तो अम्मा जी तिलमिला जातीं, क्योंकि दोनों बेटे जान से प्यारे थे तो ही और वे भी मां-बाप का बहुत ध्यान रखते थे. कभी कभी बाबूजी कहते,‘ए डॉटर इज़ लाइक टेन सन्स’
ये बेटे और बेटी का अंतर तो ज़माने से चला आ रहा है और चलता रहेगा. वहीं बाबूजी की बहन छोटी बुआ जी जो बाबूजी की बेटी की ही तरह थीं, जब भी आतीं कहतीं,“भाग्य हो तो बड़े भैय्या जैसा, हीरे जैसे दो बेटे हैं और मुझे देखो एक बेटे की आस में चार बेटियां पैदा कर ली. सब तरफ़ से ताने मिलते हैं सो अलग.” अम्मा जी को तब लगता ये उनकी ननद मुनिया कितनी प्यारी है पर भाग्य देखो चार-चार बेटियां. क्या करेगी? कैसे पार लगाएगी? आज उनकी वही मुनिया मेम साब बन गई है बेटियों की वजह से. चारों बेटियां एक से बढ़कर एक! एक डॉक्टर, दूसरी कलेक्टर, तीसरी बड़ी कंपनी में इंजीनियर और सबसे छोटी जो हमेशा बचपन में मिट्टी से खेलती रहती थी, आज अपनी ही कंपनी खोले बैठी है. कहां भाई-भाभी से साड़ी की आस रखने वाली मुनिया अब प्लेन में बिज़नेस क्लास में सफ़र करती है. बेटियों के साथ कभी स्विट्ज़रलैंड तो कभी फ़ुकेट में छुट्टियां मनाती हैं.
बाबूजी के दोनों बेटे ख़ूब अच्छी तरह पढ़ लिख गए और मां-बाप के अकेलेपन का अहसास भी उन्हें था. दोनों ने ही इसी शहर में अपना कारोबार शुरू कर लिया था. क़िस्मत से दोनों बहुए जो दो बहनें भी थीं, बड़ी भली थीं. बाबूजी को उनके एक दोस्त ने समझाया कि एक घर की लड़कियां लाओगे तो ज़िंदगीभर दोनों भाई साथ रहेंगे. बहुएं भी भली ही थीं और सास-ससुर का बहुत ध्यान रखतीं थीं. बाबूजी को इससे ज़्यादा मतलब नहीं था कि वो उनका कितना ख़याल रखती हैं. उन्हें बहुओं की ख़ुद के मां-बाप के लिए तड़प से ज़्यादा परेशानी होती थी. अम्मा हमेशा अपने बच्चों की बाप के तानों से रक्षा करती है. दोनों बेटों ने इसी शहर से स्कूलिंग की थी, इससे उनके बचपन के दोस्तों की भी भरमार थी. जब भी बच्चे अपने दोस्तों के साथ बड़ी पार्टी करते, बाबूजी के दुष्ट दिमाग़ में यही ख़याल आता कि सास ससुर की सेवा करने गए हैं. बाबूजी ने बहुएं चुनते वक़्त भी अपनी कुटिल सोच का बड़ा इस्तेमाल किया था. एक तो दोनों लड़कियां एक ही घर और वो भी अतिसाधारण परिवार से ताकि समधी परिवार भी एहसानों तले दबा रहे. लोगों ने फिर हंसी भी उड़ाई कि ऐसे बेटे, इतना धन फिर ऐसे घर से रिश्ता, एक नहीं दोनों बेटों का बेड़ा गर्क कर दिया. बेचारे…बेटे, एक को भी ससुराल का सुख नहीं मिला. लेकिन अम्मा रिश्तेदारों से हमेशा कहती,“ईश्वर का दिया इतना हमारे पास है फिर किसी और धन की हमें क्या ज़रूरत?” फिर भी इंसान ही थीं, कभी-कभी बहकावे में आ जातीं, लेकिन बहुओं के प्यार और ख़याल ने सब भुला दिया.
बाबूजी अपने लड़कों को कठपुतली की तरह नचाते थे और समझते कि वो ही भाग्य विधाता हैं. वो भूल गए थे कि कठपुतली का नाच इंसानों के साथ ज़्यादा दिन नहीं खेला जा सकता है. उसके लिए बेजान कठपुतलियां और चतुर और माहिर खिलाने वाले की ज़रूरत होती है. यहां परेशानी ये थी कि ना तो बाबूजी माहिर थे और ना ही उनकी कठपुतलियां बेजान थीं. बेजान होने का नाटक बहुत दिनों तक किया भी नहीं जा सकता था. बाबूजी के तानों से परेशान हो घर के हर सदस्य ने अपनी ख़ुशी बाहर ढूंढ़नी शुरू कर दी थी. अम्मा जी समझा समझा के थक गई थीं. बार-बार कहते,“देखो हरिपाल को कोई जवाब नहीं देता. मैं जो बोलता हूं, सुनता है.’’
बेचारी अम्मा…कैसी कहती कि नौकर और बच्चों में फ़र्क़ होता है. अगर कहती तो बच्चे और हरिपाल दोनों हाथ से जाते. बच्चे सोचते हममें और नौकर में कोई फ़र्क़ नहीं है. और हरिपाल को लगता जी जान लगा दी है, पर नौकर ही समझते हैं. नातियों और एकलौती नातिन ने अपने दादा को ‘दी बर्निंग ट्रेन ‘की उपाधि दे दी थी. बाबूजी ने जब दुनिया छोड़ी तो घर पर सबने मानो चैन की सांस ली, लेकिन हरिपाल और शीला बेचारे कई दिनों तक फूट फूट कर रोते रहे. बाबूजी के जाने के बाद एक गड़बड़ जो हुई वो थी कि उनकी आत्मा का अम्मा जी में समा जाना. बिल्कुल उनकी बोली बोलने लगी हैं. बेटे बहू बाहर निकलते ही पूछतीं,“कहां जा रहे हो? मम्मी-पापा की तरफ़? खाना वहां खाओगे या यहां बनवाऊं?”
बच्चे भी खीझ जाते कि हर बार बाबूजी के व्यंग्य वाणों से बचाने वाली अम्मा को क्या होता जा रहा है? बहुएं पुरानी हो चुकी थीं, इसलिए मुंह भी खुल चुके थे. छोटी वाली तो वैसे भी थोड़ी पटाखा थी, कहने लगी,‘‘लगता है बाबूजी अकेले ऊपर नहीं रह पा रहे हैं. अम्मा जी को बुला कर ही मानेंगे. अब इनकी बारी आ गई है.”
बस फिर क्या था अम्मा का लाड़ला उसका पति उस पर बरस पड़ा. चारों बच्चे जो अब बच्चे नहीं रहे नए ज़माने के थे, इससे समय की दौड़ में उनके प्यारे हरी चाचा जाने कब हरी, शीला चाची ए शीला और कहानी सुनाने वाली दादी अम्मा सर खाने वाली बुढ़िया बन गए. किसी को राम का वनवास, रावण पर विजय और वापस अयोध्या आना याद ही ना रहा. नाती-नातिन की क्या बात करें ख़ुद के जने बच्चों के लिए भी दीपावली के मायने बदल गए हैं. बचपन में घुट्टी की तरह पिलाई गई मान्यताएं ना जाने कहां फ़ुर्र हो गई थीं. दिवाली दीपों का त्यौहार है, भाई से भाई के मिलन का त्यौहार है. अमावस्या को भी दीप जला उजाला करने का त्यौहार है. लेकिन उनके अपने बेटों के लिए अब, दोस्तों के साथ ताश और फिर एक पार्टी डान्स और ना जाने क्या-क्या. दीपों की जगह इलेक्ट्रिक बल्बों ने ले ली थी.
अम्मा और शीला ने दो दिनों से लगकर खाजा, गुझिया, नमक पारे, गुलाबजामुन इतना कुछ बनाया लेकिन सबने इन पकवानों को हिक़ारत भरी नज़रों से ही देखा. अम्मा के बहुत आवाज़ लगाने पर किसी तरह पूजा के लिए बेटे-बहू आए ज़रूर पर सबको वहां से भागने की जल्दी थी. एक गुझिया के चार टुकड़े कर दोनों बहुओं और बेटों ने खाए. उसके बाद की जनरेशन ने तो अम्मा की पूजा को उनका पागलपन करार दिया और आया कोई नहीं. अम्मा बेचारी ही मिठाई एक थाल में लेकर बच्चों के पास छत पर पहुंच गईं. अम्मा के लाख मनुहार करने पर उन्होंने एक छोटे से शक्करपारे को मानो हाथ से टच कर लिया. पूरा घर ऑर्टिफ़िशल लाइट से दुल्हन की तरह सजा था. बच्चे छत पर दोस्तों के साथ दिवाली पार्टी कर रहे थे, कभी सोचा भी ना था कि दिवाली की नाम पर इतना वाहियात डांस होगा. नातिन के लिए हरिपाल से अपनी उसी पुरानी दुकान पर भेज कितना सुंदर लहंगा मंगाया था. दिवाली पर घर की लक्ष्मी ऐसी नंग धडंग… वहां का मेनू था पीज़ा, सैंडविच, पिटा ब्रेड, हमस और स्वीट में बच्चों का पसंदीदा तिरामिसु. लड़कियों के हाथ में पतली लंबी ग्लासों में वाइन और लड़कों के हाथों में स्कॉच. कइयों के हाथ में सिगार भी था. किसी ने इतना लिहाज़ भी नहीं किया कि दादी मां को देख ही सिगार फेंक देते. अम्मा चुपचाप नीचे उतर आई. पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी,“थैंक गॉड गई!”
अम्मा सोचने लगी वो भी क्यों नहीं बाबूजी के साथ सचमुच चली गई. इसीलिए पहले शायद सतीप्रथा थी कि पति के जाने के बाद बच्चे ना कहें,“थैंक गॉड गई.’’ अम्मा की मिठाइयों और घर की धुआंधार सफ़ाई से हरी और शीला निठाल और बेहोश अपने घर में पड़े थे. बेटा-बहू दोस्तों के घर की तरफ़ चले गए. छत की पार्टी के लाउडस्पीकर के शोर में अम्मा की दिए लगाने की गुहार लगभग दब सी गई. उनके हरि और शीला तक भी उनकी आवाज नहीं पहुंच पा रही थी. अम्मा चिल्ला चिल्ला कर निठाल हो वहीं अपने दियों और मिठाइयों के बीच ना जाने कब सो गई. बेजान मिठाइयां और दिए भी समय की दौड़ के आगे हार गए.

Illustration: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

September 24, 2024
ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा

September 9, 2024
Tags: Diwali aisi bhiDr Sangeeta JhaDr Sangeeta Jha storiesHindi KahaniHindi StoryKahaniकहानीडॉ संगीता झाडॉ संगीता झा की कहानियांदिवाली ऐसी भी डॉ संगीता झानई कहानीहिंदी कहानीहिंदी स्टोरी
डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा हिंदी साहित्य में एक नया नाम हैं. पेशे से एंडोक्राइन सर्जन की तीन पुस्तकें रिले रेस, मिट्टी की गुल्लक और लम्हे प्रकाशित हो चुकी हैं. रायपुर में जन्मी, पली-पढ़ी डॉ संगीता लगभग तीन दशक से हैदराबाद की जानीमानी कंसल्टेंट एंडोक्राइन सर्जन हैं. संपर्क: 98480 27414/ [email protected]

Related Posts

लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता
कविताएं

लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता

August 14, 2024
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता
कविताएं

बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता

August 12, 2024
अनपढ़ राजा: हूबनाथ पांडे की कविता
कविताएं

अनपढ़ राजा: हूबनाथ पांडे की कविता

August 5, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.