ग़लत के विरोध में उठे स्वर, उन लोगों को वज़नदार बनाते हैं, जो ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं. इस अर्थवान कविता को पढ़कर आपको बरबस ही आभास हो जाएगा कि वज़न के लिए, उठना पड़ता है. और ये भी कि जो बातें विज्ञान नहीं कह पाता, उन्हें कहने की ज़िम्मेदारी किसकी होती है. यही बातें इस कविता की सबसे बड़ ख़ूबी हैं.
वैज्ञानिक कहता है
मनुष्य
जब ऊपर से नीचे
गिर रहा होता है
गुरुत्वाकर्षण की दिशा में
तब उसका वज़न
शून्य होता है
अर्थात
गिरनेवाले का
कोई वज़न नहीं होता
वज़न के लिए
उठना पड़ता है
गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध
अर्थात
विरुद्ध गए बिना
वज़न प्राप्त नहीं होता
न देह को
न ज़बान को
न विचार को
न जीवन को
विरुद्ध गए बिना
कोई वज़न नहीं होता
ज़िंदगी
डूबकर जीने के लिए
वज़न ज़रूरी है
लाशें
सिर्फ़ तैरती हैं
सतह पर
प्रवाह की दिशा में
लाशों का
कोई वज़न नहीं होता
वज़न खोकर ही
मनुष्य बनता है लाश
यह विज्ञान नहीं कहता
कविता कहती है
जो विज्ञान नहीं कह पाता
वह कहने की ज़िम्मेदारी
कविता पर होती है!