पैन्थर्स मून, जिसे पढ़ते हुए आप खो जाएंगे रोमांच के जंगल में. इस संग्रह की कहानियां बेहद मनोरंजक हैं. इंसानों और जंगली जानवरों के बीच के अनूठे रिश्ते को लेखक ने बड़ी बारीक़ी से बुना है.
पैन्थर्स मून
लेखक: रस्किन बॉन्ड
अनुवादक: ऋषि माथुर
मूल्य: 195 (पेपरबैक)
प्रकाशक: राजपाल ऐंड सन्ज़, 1590, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली-110 006
रस्किन बॉन्ड का यह कहानी संग्रह जंगल और उसके निवासियों यानी जंगली जानवरों को समर्पित हैं. अपने घर यानी जंगल के आसपास रहनेवाले या उसमें ज़बर्दस्ती घुसपैठ करके कब्ज़ा जमानेवाले इंसानों के साथ इन जानवरों का समीकरण इस संग्रह की सभी बारह कहानियों पैन्थर्स मून, बंदरों का इंतकाम, दादाजी का बाघ, बदला बिल्लौरी, कौवे के रंग अनेक, शुतुरमुर्ग और दादाजी का मुक़ाबला, सुरंग में बाघ, छोटे-बड़े जानवर प्यारे, बाज़ की नज़र, जानवर का भरोसा, गूंजे बाघ की दहाड़ और यूं बच निकला जावा की आत्मा है. कहानी पैन्थर्स मून अपने गांव मंजरी से पढ़ने के लिए रोज़ाना घने जंगलों के बीच पांच मील चलकर छोटे क़स्बे केम्पटी जानेवाले बच्चे बिस्नु के साहस और आदमखोर तेंदुए के खौफ़ पर आधारित है. वहीं बंदरों का इंतकाम अपने साथी बंदर की मौत का बदला लेनेवाले बंदरों की कहानी है.
दादाजी का बाघ और जानवर का भरोसा ख़तरनाक जानवरों और इंसानों के बीच भरोसे के रिश्ते पर आधारित है. वहीं कौवे के रंग अनेक का कौवा तेजा लगभग सभी जगह पाए जानेवाले इस पक्षी और इंसान के रिश्ते को हल्के-फुल्के अंदाज़ में प्रस्तुत करता है. वो ख़ुद को इंसानों से अधिक समझदार मानता है. उसकी अनूठी समझदारी गुदगुदाती है. कहानी छोटे-बड़े प्यारे जानवर एक पशु प्रेमी दादाजी से पाठकों को मिलाती है. गूंजे बाघ की दहाड़ जंगल में एकाकी जीवन काट रहे बूढ़े, पर समझदार बाघ की कहानी है. ख़ुद को शिकारियों से बचाए रखनेवाला बाघ, जानता है कि यदि वो स्थानीय गांववालों को नुक़सान नहीं पहुंचाएगा तो हमेशा जंगल में राजा की तरह रह सकता है. लेकिन जंगल में लगी आग के बाद शिकार की कमी के चलते वह गांववालों की भैंसों पर हमला करने को मजबूर होता है. और वह इंसान को अपना दुश्मन बना लेता है. वे उसे दूसरे जंगल में खदेड़ देते हैं.
इस संग्रह की कहानियां बेहद मनोरंजक हैं. इंसानों और जंगली जानवरों के बीच के अनूठे रिश्ते को लेखक ने बड़ी बारीक़ी से बुना है. इंसान लगातार जानवरों के घर में घुसता चला जा रहा है और जानवर अपने घर में बेघर होकर यहां-वहां भटकने को मजबूर हैं. कहीं-कहीं तो जानवरों ने इस बदलाव से सामन्जस्य बिठा लिया है तो कहीं-कहीं उसकी घुसपैठियों यानी इंसानों से मुठभेड़ हो जाती है. वहीं ऐसे इंसान भी हैं, जो पशु-पक्षियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण नज़रिया रखते हैं. उत्तर भारत के पहाड़ी इलाक़ों में रहने के अपने अनुभव को रस्किन बॉन्ड ने इन कहानियों में सजीवता लाने के लिए बख़ूबी इस्तेमाल किया है.