दूसरों को कंट्रोल करना लगभग हर किसी की नैचुरल इच्छा रहती है. अगर कोई आपको कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा हो तो उससे कैसे निपटें? और यह भी पता लगाएं कि कहीं आप ख़ुद भी तो कंट्रोल फ्रीक नहीं?
हममें से हर कोई एक न एक कंट्रोल फ्रीक (नियंत्रण की चाहत रखनेवाले व्यक्ति) से वाक़िफ़ है. वो बॉयफ्रेंड, जो सोचता है कि आपके लिए उपयुक्त चीज़ों के बारे में सिर्फ़ वही जानता है; आपकी मां, जिन्हें ड्राइव करना नहीं आता, लेकिन वो बैक सीट पर बैठी आपको ये सिखाती हैं कि कैसे ड्राइव करना चाहिए; वो बॉस जो हर बात में बाल की खाल निकालकर चीज़ों को नियंत्रित करना चाहता है. और मज़ेदार बात ये कि कई लोग आपको भी कंट्रोल फ्रीक कहते हैं, ख़ासतौर पर तब, जब आपका तयशुदा दिनचर्या का कार्यक्रम गड़बड़ाने लगता है.
हममें से अधिकतर लोग कभी-कभी दूसरों को नियंत्रित रखने जैसा व्यवहार करते हैं. लेकिन ये बात चिंता का कारण तब बनती है, जब आपके लिए कंट्रोल फ्रीक शब्द का इस्तेमाल होने लगे. क्योंकि यह शब्द अक्सर ऐसे अप्रिय व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके भीतर लोगों और परिस्थितियों को नियंत्रित करने की ज़रूरत, उन्हें नियंत्रित करने की प्रबल इच्छा में बदल जाती है.
ऐसे व्यक्ति से मिलिए
मैक्स हेल्थकेयर, दिल्ली के साइकियाट्रिस्ट विभाग के अध्यक्ष डॉ समीर मल्होत्रा के अनुसार, कंट्रोल फ्रीक्स ऐसे लोगों को कहा जाता है, जो ऑब्सेसिव कंपल्सिव पर्सनैलिटी डिस्ऑर्डर (ओसीडीपी) या ऐनैन्कैस्टिक पर्सनैलिटी डिस्ऑर्डर से पीड़ित होते हैं. ऐसे लोग अति पूर्णतावादी होते हैं और इसलिए स्थितियों पर पूरा नियंत्रण रखना चाहते हैं. ‘‘ओसीपीडी से पीड़ित लोग यदि चीज़ों पर नियंत्रण न रख पाएं तो अक्सर बेचैन, तनावग्रस्त और नाख़ुश हो जाते हैं,’’ वे बताते हैं. ‘‘वे अपने और दूसरों के बहुत बड़े आलोचक बन जाते हैं. वे पूर्णतावादी हैं अत: उन्हें ख़ुद से व दूसरों से बहुत ऊंची अपेक्षाएं होती हैं. तीन महत्वपूर्ण लक्षण, जिन्हें देखकर ये पता लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति ओसीपीडी से पीड़ित है: कठोर रवैया, दुखी रहना और तीखी प्रतिक्रिया.’’
एडिटर मोनिका चावला*, 35, इस बात से अच्छी तरह परिचित हैं कि उस दुनिया में काम करने का एहसास कैसा होता है, जहां ग़लती की कोई गुंजाइश न हो. ‘‘लोग हमेशा मुझसे अपेक्षा रखते हैं कि मेरी वेबसाइट पर पोस्ट की जानेवाली हर स्टोरी से मैं वाक़िफ़ रहूं; मुझे पता हो कि मेरे अधीनस्थ कर्मचारी कहां हैं और दिन के हर मिनट वे क्या कर रहे हैं और ये भी कि मैं हमेशा अपनी दिनचर्या के हिसाब से ही काम करती रहूं, भले ही बाहर शहर में बम विस्फोट हो रहे हों…’’
जहां ऑफ़िस में मोनिका की इस बात के लिए प्रशंसा की जाती थी कि वे हर विवरण को बड़े ध्यान से पढ़ती हैं, वहीं उनके निजी रिश्तों में उनका यह व्यवहार समस्या पैदा कर रहा था. ‘‘मेरे बॉयफ्रेंड्स हमेशा शिकायत करते थे कि मैं कंट्रोल फ्रीक हूं. मुझे लगता था कि वे मज़ाक कर रहे हैं. लेकिन हाल ही में जब मेरा लिव-इन साथी इस बात को लेकर मुझसे अलग हो गया कि मैं अपने नियंत्रण रखने के व्यवहार पर अंकुश नहीं लगा पा रही हूं. मुझे समझ में आ गया कि मुझे किसी की मदद की ज़रूरत है.’’ मोना के पूर्व प्रेमी के पास शिकायतों की एक लंबी सूची है, जिसमें-वो मुझे बदलना चाहती है, मेरा जीवन ख़राब कर दिया, हमेशा अपनी बात मनवाना चाहती है…जैसी कई बातें शामिल हैं.
इस चाह पर यूं कसें लगाम
यदि आपको लगता है कि नियंत्रण रखने की चाहत अनियंत्रित होती जा रही है तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लें. केवल इसलिए नहीं कि इससे आपके रिश्तों में दरार आ सकती है, बल्कि इसलिए भी कि ये आपके भीतर एक गहरी बेचैनी के पैठने का संकेत है, जो आपको चीज़ों पर नियंत्रण रखने को उकसा रही है.
‘‘सेरोटोनिन नामक हार्मोन का स्तर कम हो जाने से भी ओसीपीडी हो सकता है,’’ डॉ मल्होत्रा बताते हैं. ‘‘ऐसे बच्चे जो अस्थिर और अव्यवस्थित माहौल में पले-बढ़े होते हैं, बचैन व्यक्तित्व के हो जाते हैं. वे चीज़ों पर नियंत्रण रखना चाहते हैं. इसके कारण अनुवांशिक भी हो सकते हैं.’’
इसके इलाज के लिए दवाइयों के ज़रिए शरीर में सेरोटोनिन का स्तर बढ़ाया जाता है, पारिवारिक समर्थन और मनोवैज्ञानिक तरीक़ों का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे लोगों को इस बात का एहसास कराया जाता है कि पूर्णतावादी होना असामान्य है, जबकि ग़लतियां करना सामान्य बात है.