जीवन एक बार मिलता है और एक ही बार में ख़त्म हो जाता है, यह बात इतनी हृदय विदारक है कि कवि, दार्शनिक और वैज्ञानिक इसको बाईपास करने के तरीके हमेशा खोजते रहेंगे. लेकिन मोटे तौर पर दुनिया ने मान लिया है कि न तो आप ख़ुद को हर स्थिति में मरने से बचा सकते हैं, न मरकर दोबारा ज़िंदा हो सकते हैं, न ही पुनर्जन्म या परकाया प्रवेश जैसे जुगाड़ों से दूसरा शरीर धारण कर सकते हैं. इसलिए न सिर्फ़ आपका, बल्कि हर किसी का जीवन जैसा भी है, अमूल्य है.
प्राचीन महाकाव्यों में देवता अमर होते थे और जब-तब अपने किसी असाधारण उपासक से प्रसन्न होकर उसको भी अमर कर दिया करते थे. यह धारणा आज भी दुनिया से विदा नहीं हुई है. अपने गांव में अमरत्व की आशा में भांग खाकर पूरे-पूरे दिन काली माई की आराधना करने वाले कुछ लोग मैंने देखे हैं. अख़बारों में एकाध ऐसी ख़बरें भी पढ़ी हैं कि लंबी बीमारी से परेशान अमुक व्यक्ति ने तमुक देवता के थान पर अपना गला काटने से पहले चमुक को बताया था कि निरोगी काया प्राप्त करने का एक अचूक तरीका उसे पता चल गया है.
बहरहाल, मध्यकालीन यूरोपियन जातियों में दैव-प्रदत्त अमरत्व की ऐसी उम्मीद पूरी तरह खारिज हो गई होगी, तभी उन्होंने कीमियागिरी या ऐल्कमी का वह प्रायोगिक शास्त्र शुरू किया, जिसके कुल दो में से एक मक़सद इंसान को अमर कर देने वाला पेय ‘अमृत’ बनाने का था. कीमियागरों की यह कोशिश निराधार थी, रसायनशास्त्रियों को इस नतीजे पर पहुंचे अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए हैं. उनकी एक शाखा आज भी अमरत्व के क़रीबी एजेंडे पर काम कर रही है.
जीवन एक बार मिलता है और एक ही बार में ख़त्म हो जाता है, यह बात इतनी हृदय विदारक है कि कवि, दार्शनिक और वैज्ञानिक इसको बाईपास करने के तरीके हमेशा खोजते रहेंगे. लेकिन मोटे तौर पर दुनिया ने मान लिया है कि न तो आप ख़ुद को हर स्थिति में मरने से बचा सकते हैं, न मरकर दोबारा ज़िंदा हो सकते हैं, न ही पुनर्जन्म या परकाया प्रवेश जैसे जुगाड़ों से दूसरा शरीर धारण कर सकते हैं. इसलिए न सिर्फ़ आपका, बल्कि हर किसी का जीवन जैसा भी है, अमूल्य है. हां, इसे कम मूल्यवान, बल्कि हिकारत के योग्य मानने के ढेरों बहाने हम सबके पास मौजूद रहे हैं और हमेशा रहेंगे.
आप देश, धर्म या जाति पर अपने प्राण न्यौछावर कर सकते हैं और ऐसा ही कोई मक़सद अपने सामने रखकर पूरी धन्यता के साथ किसी और के प्राण ले भी सकते हैं. दिलचस्प बात यह कि ज़िंदगी को एंवें-सी ही चीज़ मानने के लिए पिछले कुछ सालों में ऐसा कोई मक़सद भी ज़रूरी नहीं रह गया है. क्या आपने अपने आसपास किसी बच्चे या नौजवान को वीडियो गेम खेलते देखा है? एक गेम में कितने इंसानी कैरेक्टर मारे जाते हैं, इसकी गिनती वहां नहीं रखी जाती. कभी मारने वाले को ही मरना पड़ जाए तो उसको नई लाइफ़ मिल जाती है, सो चिंता की कोई बात नहीं. हां, इस खिलाड़ी की उंगली जब सचमुच के ट्रिगर पर होती है तो समाज डरता है.
अपने जीवन का मूल्य, उसकी गरिमा अपनी ही नज़र में नष्ट हो जाए, यह अभिशाप संसार में मनुष्य के अलावा किसी और जीवजाति को नहीं मिला हुआ है. युद्ध और महामारियां ऐसा ही खेल हर इंसानी दिमाग़ के साथ खेलती हैं. आपको पता नहीं चलता कि कब आपकी नज़र मनुष्य से हटकर संख्याओं पर टिक गई. अमुक देश या राज्य की गिनती ज़्यादा, तमुक की कम. एक अकेली ज़िंदगी को बचाना कितना कठिन है और उसका बचे रह जाना किस-किस के लिए कितनी बड़ी नियामत है, ऐसे ब्यौरे आज के दौर का सबसे बड़ा साहित्य हैं.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट