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ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब कविताएं

बातों में मज़दूर: जय राय की कविता

जय राय by जय राय
July 11, 2021
in कविताएं, बुक क्लब
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बातों में मज़दूर: जय राय की कविता

Migrant workers walk along a road to return to their villages, during a 21-day nationwide lockdown to limit the spreading of coronavirus disease (COVID-19), in Prayagraj, March 27, 2020. PHOTO :RAVI PRAKASH  

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भारत में यादें, जल्दी पुरानी हो जाती हैं. यहां तक कि हम अपना भोगा दुख तक भूल जाते हैं. जय राय की कविता इसी तथ्य की ज़मीन पर खड़ी होकर उन प्रवासी मज़दूरों के भोग हुए दुख की बात कर रही है, जो अब भूली हुई याद बन गई लगती है.

प्रवासी मज़दूर सुना है ना आपने?
हां, वही जो 2020 में पैदल गांव जा रहे थे
भूल गए होंगे आप…
कोई बात नहीं
भारत है, यहां यादें जल्दी पुरानी हो जाती हैं

अच्छा, इनको प्रवासी किसने बनाया?
अपने ही देश में!
और सिर्फ़ मज़दूर ही प्रवासी क्यों?
आप भी तो अपने घर से दूर रहते हैं
तो आप क्या हुए?

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आपको ख़बर है, क्या कितने गांव गए?
अच्छा क्यों गए?
अपनी सरकार तो नहीं जानती!
वापस क्यों जा रहे थे ये?
सरकार ने क्यों नहीं रोका?
क्या कहा आपने, सरकार का काम नहीं है रोकना!
पर आप जानते हैं, सरकारें दिल्ली में या दूसरी राजधानियों में
इन्हीं घर लौटते मज़दूरों के दम पर रुकती हैं, टिकती हैं
क्या कहा, समझा नहीं?
देखिए यह इतना भी मुश्क़िल नहीं है
अच्छा आपको यह तो मालूम ही होगा
ये ही लोग तो सरकार बनाते हैं
अच्छा, अच्छा… तो सिर्फ़ सरकार बनाना इनका काम है
सरकार तो अपने आप ही चल जाती है
और चलती हुई सरकार में न तो मज़दूर होता है
न उसकी बातें और न ही उससे किए वादे

जब मज़दूर पैदल चल रहे थे
तब ऐसा नहीं कि सरकार बैठी थी
वह भी चल ही रही थी
चल नहीं, दौड़ रही थी विज्ञापनों में
अगले चुनाव के वक़्त
सड़कों पर चले मज़दूर याद रहें न रहें
पर विज्ञापनों में दौड़ी सरकार ज़रूर याद रहेगी

क्या कहा, इन मज़दूरों को भी याद नहीं रहेगा
कि हम कभी पैदल चले थे सड़कों पर
हमारे जैसे कितनों के पैर इन सड़कों पर
चलते-चलते रुक गए थे हमेशा के लिए
चुनाव के वक़्त अलग-अलग माप के सीने
मज़दूरों की चिंता में बुढ़ा रहे
एक बढ़ती दाढ़ी वाले आदमी के दो आंसू
फिर से लौटा देंगे इन मज़दूरों को उन गांवों की ओर
जहां की मतदाता सूची में इनका नाम है

भूलकर अपना भोगा हुआ दुख
वे फिर से दिखाने लगेंगे लोकतंत्र की ताक़त
बनवा देंगे राजधानियों की सरकारें
यही तो लोकतंत्र की ख़ूबसूरती है
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है
यहां हमेशा… हमेशा से सब अच्छा रहा है
देख सको तो, अब भी सब चंगा सी

यह भारत है
यहां बातें जवान रहती हैं
और यादें जल्दी पुरानी हो जाती हैं
मज़दूर हमेशा चर्चा में, बातों में रहेंगे
और पैदल चले मज़दूर यादों में

फ़ोटो: जीतेन्द्र प्रकाश, प्रयागराज

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जय राय

जय राय

जय राय पेशे से भले एक बिज़नेसमैन हों, पर लिखने-पढ़ने में इनकी ख़ास रुचि है. जब लिख-पढ़ नहीं रहे होते तब म्यूज़िक और सिनेमा में डूबे रहते हैं. घंटों तक संगीत-सिनेमा, इकोनॉमी, धर्म, राजनीति पर बात करने की क़ाबिलियत रखनेवाले जय राय आम आदमी की ज़िंदगी से इत्तेफ़ाक रखनेवाले कई मुद्दों पर अपने विचारों से हमें रूबरू कराते रहेंगे. आप पढ़ते रहिए दुनिया को देखने-समझने का उनका अलहदा नज़रिया.

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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