सभी पैरेंट्स चाहते हैं कि वे अपने बच्चे/बच्चों की बेहतरीन परवरिश करें. और वे इसके लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं. लेकिन समस्या ये है कि पैरेंटिंग का कोई तयशुदा फ़ॉर्मूला नहीं होता. बच्चों की परवरिश समय, परिस्थिति और हर बच्चे के मुताबिक़ अलग तरीक़ा मांगती है. यही वजह है कि हम आपको पैरेंटिंग से जुड़ी वे प्रभावी बातें बता रहे हैं जो हर पैरेंट के लिए फ्रेमवर्क का काम करेंगी.
हर दौर के अभिभावकों से पूछ लीजिए, सभी कहेंगे कि पैरेंटिंग आसान नहीं होती. पैरेंटिंग की चुनौतियां समय और परिवेश के अनुसार बदलती रहती हैं. तो ज़ाहिर है कि पैरेंटिंग का कोई एक तरीक़ा हर पैरेंट या हर बच्चे के लिए सही नहीं हो सकता. ऐसे पैरेंट्स जिनके दो या उससे अधिक बच्चे हैं, उनसे पूछेंगे तो पाएंगे कि हर बच्चे के स्वभाव के मुताबिक़ उन्हें अपनी पैरेंटिंग का तरीक़ा बदलना पड़ा होगा. बावजूद इसके पैरेंटिंग की कुछ बुनियादी बातें हमेशा वही रहती हैं, बस उनका स्वरूप समय के साथ थोड़ा अलग हो जाता है. यहां हम आपको उसी ब्रॉड फ्रेमवर्क से जुड़े सुझाव दे रहे हैं.
बतौर पैरेंट अपनी सीमाएं पहचानिए
आप जितनी जल्दी यह बात मान लेंगे कि बतौर पैरेंट आप में ख़ूबियां हैं तो खामियां भी हैं, उतनी ही जल्दी आप अच्छे पैरेंट होने की ओर बढ़ जाएंगे. क्योंकि जब आपको इस बात का एहसास होगा कि आप ख़ुद भी पर्फ़ेक्ट नहीं हैं तो आप अपने बच्चों को उनकी आदतों को बदलने के लिए समय देना सीखेंगे. आपके भीतर वह धीरज आएगा, जो पैरेंटिंग के लिए ज़रूरी है. आप ख़ुद भी ऐसे अभिभावक बनेंगे, जो ख़ुद में सुधार ला रहा है तो आपके बच्चे भी ऐसे बच्चे बनेंगे, जो अपनी ग़लतियों को सुधार कर अच्छी आदतों की ओर बढ़ेंगे.
आप अपनी या बच्चों की कोई भी आदत रातों रात तब्दील नहीं कर सकते. और इस बात के लिए बेजा परेशान होना कोई सकारात्मक परिणाम भी नहीं देगा. अत: पैरेंटिंग को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य मानते हुए परेशान होना छोड़ दें और बच्चों में या ख़ुद में धीरे-धीरे आने वाले इन पॉज़िटिव बदलावों को सराहें.
पैरेंटिंग के तरीक़े को लचीला रखिए
यह बात तो हम ऊपर ही कह चुके हैं. जब हमारे-आपके दादा-दादी बड़े हो रहे होंगे तो आज के समय की आम सी फ़ोन, टीवी जैसी चीज़ें तो दूर की बात हैं, उनके लिए साइकल, पंखा और घड़ी जैसी चीज़ें भी लग्ज़री होती थीं. फिर दौर बदला, जब हमारे पैरेंट्स बड़े हो रहे थे तो वे साइकल, पंखा, घड़ी देखते हुए बड़े हुए और उनके जीवन में लैंडलाइन फ़ोन, टीवी जैसी चीज़ें आईं. सूचनाओं का दायरा बढ़ा. तो उनके आगे वाली पीढ़ी इन सभी चीज़ों के एक्पोज़र के साथ बड़ी हुई. और आज की पीढ़ी इंटरनेट की सहज-सुलभता के साथ बढ़ रही है.
यदि हम उनसे कहेंगे कि हमारे समय में ये होता था, वो होता था और तुम उसके हिसाब से चलो तो यक़ीनन हमारी पैरेंटिंग असफल ही रहेगी. क्योंकि समय बदला है तो बच्चों की सोच भी तो बदली है. अत: अपने पैरेंटिंग के तरीक़े को लचीला रखिए. यदि आपका बच्चा/बच्चे कहते हैं कि हम ये बात नहीं मानेंगे या ये बात हमें पता है तो मान लीजिए कि शायद उन्हें यह बात पता होगी. तब आप उन्हें जो समझाना चाहते/चाहती हैं, उसे उस जगह के आगे से शुरू करें, जहां तक वे जानते हैं.
बच्चे को अन्कंडिशनल स्नेह का एहसास कराइए
यह बात सही है कि बच्चों को गाइड करना, उन्हें सही बातें सिखाना बतौर अभिभावक आपका ही काम है, लेकिन आप इस काम को किस तरह अंजाम देते हैं, इसी बात पर इसकी सारी सफलता टिकी हुई है.
यदि आपको बच्चे को कोई बात समझानी है तो उस पर दोषारोपण न करें, उसकी आलोचना न करें या उसकी ग़लतियां सीधे ही उसे न बताएं. यदि आप ऐसा करेंगे तो उसका आत्म-सम्मान कम होगा. उसकी ग़लतियों को बताने का सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि आप उसे समझाएं कि अक्सर वह अच्छे काम करता/करती है, लेकिन इस बार जो उसने किया है, वो सही नहीं है. आप उसे बहुत प्यार करते/करती हैं और आपको पूरा भरोसा है कि वे अपनी इस आदत को बदलेंगे या इस ग़लती को दोबारा नहीं दोहराएंगे. यह समझाते हुए उन्हें यह बताना भी न भूलें कि उनके प्रति आपका स्नेह बिनाशर्त वैसा ही रहने वाला है, जैसा कि वो था. आप इसे आज़मा कर देखिए, यह काम करता है. क्योंकि बच्चों को स्नेह की दरकार होती है. प्यार से समझना, डांट कर समझाने से ज़्यादा असरदार होता है.
बच्चों से संवाद कायम करें
बच्चों के लिए समय निकालना और उनसे संवाद कायम करना ये दोनों बातें पैरेंटिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. ख़ासतौर पर आज के दौर में, जहां परिवार एकल हो गए हैं और दोनों ही पैरेंट्स वर्किंग है. अधिकतर बच्चे या तो हाउस हेल्प्स के साथ पल रहे हैं या फिर क्रेश में. यदि बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी के संरक्षण में रहते हैं, तब भी माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों से संवाद कायम ज़रूर करें.
अलसुबह या रात का कोई ऐसा समय तय रखें, जब आप बच्चों को अपने दिनभर की अच्छी बातों के बारे में बताएं. और फिर उनसे पूछें कि आज उनका दिन कैसा गया? बच्चों से संवाद करते-करते आपको ख़ुद एहसास होगा कि आज के बच्चे कितने समझदार और संवेदनशील हैं. ऐसा करते हुए एक समय ऐसा आएगा, जब बच्चे ख़ुद ही आपको अपने जीवन की समस्या बता कर समाधान मांगेंगे.
बच्चे के आत्म-सम्मान की क़द्र करें
इस बात का ध्यान रखें कि जब तक बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण नहीं हो जाता, ख़ुद को अपने पैरेंट्स की आंखों से देखते हैं. पैरेंट्स की बॉडी लैंग्वेज, बात करने का तरीक़, उनके हावभाव इन सभी चीज़ों को बच्चे अनजाने में हूबहू अपने भीतर उतार लेते हैं. कुल मिलाकर बात ये कि बतौर पैरेंट्स आपका व्यवहार उनपर गहरा असर डालता है. अत: आपको चाहिए कि बच्चों को कुछ समझाने या बताने से पहले अपने शब्दों का आकलन करें. उनसे ऐसा कुछ भी न कहें, जिससे उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचे या वे यह महसूस करने लगें कि वे किसी काम के नहीं है.
भूल कर भी न करें तुलना
पैरेंटिंग का ये सूत्र हमेशा याद रखें-कभी भी, किन्हीं भी दो बच्चों के बीच तुलना न करें. फिर चाहे वो बच्चे आपके अपने हों या फिर आपके बच्चे के दोस्त या रिश्तेदारों के बच्चे. जो बात जिस बच्चे को समझानी है, वह केवल उसे समझाएं. उससे आप क्या उम्मीद रखते हैं, यह बताएं. किन्हीं भी दो बच्चों की तुलना बेमानी है, यह बात बतौर अभिभावक आपके मन में जितनी जल्दी स्पष्ट हो जाए, उतनी ही जल्दी आप एक व्याहवहारिक पैरेंट बन जाएंगे.
सीमाएं बनाएं और उन पर अटल रहें
यदि आपने अपने बच्चों के लिए कुछ सीमाएं या नियम बनाएं तो उन नियमों में ढील बिल्कुल न दें. मसलन, यदि सभी लोगों को शाम सात बजे के पहले घर पहुंचने का फ़रमान है तो उनका देर से आना बर्दाश्त न करें. पर उससे भी पहले आप ख़ुद भी नियत समय पर घर पहुंचें. यदि डिनर सब को डायनिंग टेबल पर बैठ कर ही खाना है तो आप ख़ुद ये लिबर्टी कभी न लें कि आप टीवी देखते हुए खाना खाएंगे. घर के कुछ अनुशासन होने ही चाहिए, लेकिन बच्चे उनका पालन करें, उससे पहले आप किसी रोल मॉडल की तरह उन नियमों का पालन करें. बच्चे ख़ुद ब ख़ुद वे नियम मानेंगे.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट