आधे और पूरे की व्याख्या करनेवाली ऐसी बेमिसाल कविता आपने शायद ही कभी पढ़ी हो. कवि नरेश सक्सेना की यह कविता पूरी पढ़ें और पढ़ने के कुछ समय बाद दोबारा पढ़ें.
पूरी रात के लिए मचलता है
आधा समुद्र
आधे चांद को मिलती है पूरी रात
आधी पृथ्वी की पूरी रात
आधी पृथ्वी के हिस्से में आता है
पूरा सूर्य
आधे से अधिक
बहुत अधिक मेरी दुनिया के करोड़ों-करोड़ लोग
आधे वस्त्रों से ढांकते हुए पूरा तन
आधी चादर में फैलाते हुए पूरे पांव
आधे भोजन से खींचते पूरी ताक़त
आधी इच्छा से जीते पूरा जीवन
आधे इलाज की देते पूरी फ़ीस
पूरी मृत्यु
पाते आधी उम्र में
आधी उम्र, बची आधी उम्र नहीं
बीती आधी उम्र का बचा पूरा भोजन
पूरा स्वाद
पूरी दवा
पूरी नींद
पूरा चैन
पूरा जीवन
पूरे जीवन का पूरा हिसाब हमें चाहिए
हम नहीं समुद्र, नहीं चांद, नहीं सूर्य
हम मनुष्य, हम…
आधे चौथाई या एक बटा आठ
पूरे होने की इच्छा से भरे हम मनुष्य
कवि: नरेश सक्सेना
संपर्क: 09450390241
Illustration: Pinterest