कहा जाता है कि कवि समय को पढ़ लेता है. इस बात की सच्चाई को बयान करता हुआ है कवि गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का लिखा यह गीत, जो आज के समय में भी पूरी तरह सही बैठता है.
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए
जिसकी ख़ुशबू से महक जाए पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए
आग बहती है यहां गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहां जाके नहाया जाए
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अंधेरे को उजाले में बुलाया जाए
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूं भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आंसू तेरी पलकों से उठाया जाए
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रुबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए
फ़ोटो: ग्रॉक