आज के गैजेट्स से भरे समय में बच्चों की परवरिश करना आसान नहीं है, चीज़ें उतनी सहज नहीं है, जितनी कि ये तब हुआ करती थीं, जब हम ख़ुद बच्चे थे. पैरेंटिंग भले ही पहले की तुलना में कठिन हो गई हो, लेकिन व्यावहारिक सुझाव उसे आसान बना सकते हैं और यहां हम आपको कुछ ऐसे ही सुझाव देने जा रहे हैं.
नया साल बस आने में ही है, हर वर्ष की शुरुआत पर हम सभी कोई न कोई वायदा ख़ुद से करते हैं, जिसे निभाना भी चाहते हैं. इस बार आप अपनी पैरेंटिंग स्किल्स को दुरुस्त करने का वायदा कीजिए और अपनाइए पैरेंटिंग के ये व्यावहारिक टिप्स, ताकि साल के अंत तक आप इसके नतीजे के रूप में अपने बच्चों का सकारात्मक रूप से बदला हुआ व्यवहार नोटिस कर सकें. आइए जानते हैं, क्या हैं पैरेंटिंग के ये टिप्स…
जो उनसे करवाना चाहते हैं, पहले ख़ुद करें
हम हमेशा चाहते हैं कि हमारे बच्चों में अच्छी आदतें आएं, पर यदि उन्हें इसके बारे में केवल बोलकर समझाया जाएगा तो वे उतनी अच्छी तरह नहीं समझेंगे, जितनी कि तब, जबकि आप उसे ख़ुद कर के दिखाएं. मसलन- यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा रोज़ रात को ब्रश करके ही सोने जाए तो आपको ख़ुद भी रोज़ रात को ब्रश करना होगा; अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा चीज़ें जगह पर रखना सीखे तो आपको भी ऐसा करना होगा, तभी आप उसे सिखा सकेंगे/सकेंगी कि चीज़ें जगह पर रखी जानी चाहिए और यदि आप चाहते हैं कि वो जल्दी सोएं और जल्दी उठें तो आपको भी इसी रूटीन का पालन करना होगा.
उनकी नींद का पूरा ख़्याल रखें
यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा स्वस्थ और ऊर्जावान रहे तो बहुत ज़रूरी है कि आप उसकी नींद पर पूरा ध्यान दें. यदि बच्चों को सही समय पर सोने और उठने की आदत है तो इससे अच्छी तो कोई बात ही नहीं है, लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो यह करना आपको सुनिश्चित करना होगा. सोने जाने का समय नियत कर दें. हां, वीकएंड्स के दौरान इसमें 10-15 मिनट इधर-उधर मायने नहीं रखता, पर एक बार समय पर सोने की आदत लग जाएगी तो नींद ख़ुद ब ख़ुद नियत समय पर खुलने लगेगी. हम तो यही कहेंगे कि सोने का समय तय करने और उसे अमल में लाने के मामले में बच्चों की किसी तरह की जिरह-बहस को बर्दाश्त न करें.
जब उनके साथ समय बिता रहे हों तो पूरा ध्यान उन्हीं पर हो
यूं तो आप कई बार बच्चों के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी लेते/लेती हैं या फिर उन्हें लेकर कहीं बाहर जाते हैं, पर क्या आप इस दौरान वाक़ई उनपर पूरा ध्यान देते हैं? या फिर आपका ध्यान अपने फ़ोन या अपने काम में उलझा रहता है? कई बार आप उनके साथ होते हुए भी उनके साथ नहीं होते, क्योंकि आप मल्टीटास्किंग कर रहे होते हैं. बच्चों को दिनभर में थोड़ा-सा ऐसा समय भी चाहिए होता है, जब पैरेंट्स पूरी तरह उनपर ध्यान दे रहे हों. यदि ऐसा नहीं होता तो वे आपका ध्यान आकर्षित कराने के लिए अलग-अलग तरीक़े ढूंढ़ते हैं, जैसे- जब आप किसी से बात कर रहे हों तो बीच-बीच में बोलना, अपने भाई-बहनों से झगड़ना, चिल्लाना, ज़िद करना या फिर रोना.
यदि आप इससे उन्हें बचाना चाहते हैं तो दिन में 10 मिनट का समय निकालें और केवल बच्चे/बच्चों से ही बात करें. आप कुछ ही दिनों में इस बात का फ़र्क़ महसूस करेंगे/करेंगी कि बच्चे आपसे कितनी जल्दी कनेक्ट करने लगे हैं और आपकी बातों को कितनी तवज्जो देने लगे हैं.
उन्हें घर के छोटे-छोटे कामों की ज़िम्मेदारी दें
कुछ बच्चों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर बच्चे ख़ुद होकर कभी-भी घर के कामों में दिलचस्पी नहीं लेते हैं. ऐसे में आपको उन्हें छोटी-छोटी ज़िम्मेदारियां देकर घर के कामों में सहयोग करने को कहना होगा. हो सकता है वे शुरुआत में इसके लिए साफ़ मना कर दें, लेकिन आपके बार-बार कहने पर वे घर के काम करना सीखेंगे और आपकी मदद करेंगे. इस तरह आप उन्हें धीरे-धीरे सेल्फ़-डिपेंडेंट होने का प्रशिक्षण दे सकते/सकती हैं. छोटी-छोटी लाइफ़स्किल्स सिखा सकते/सकती हैं, जो जीवन में उनके काम आएंगी.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट