भगवंत अनमोल का साइंस फ़िक्शन उपन्यास प्रमेय बहुत अलग ढंग से लिखी गई ऐसी कहानी है, जिसमें एक युवा धर्म और विज्ञान के बीच की जंग में फंसा हुआ है. इसमें धरती से ज़्यादा विकसित सभ्यता की कल्पना और धरती के एक युवा की प्रेम कहानी के साथ-साथ धर्म और विज्ञान की पड़ताल भी की गई है. हालांकि यह उपन्यास रुचिकर होने के साथ-साथ कई अनसुलझे सवाल भी छोड़ जाता है, लेकिन इस दिलचस्प उपन्यास को एक बार ज़रूर पढ़ा जाना चाहिए.
पुस्तक: प्रमेय
विधा: उपन्यास
लेखक: भगवंत अनमोल
प्रकाशक: राजपाल ऐंड सन्ज़
मूल्य: 235/-
उपलब्ध: ऐमाज़ॉन
यदि आप साइंस फ़िक्शन पढ़ने में रुचि रखते हैं तो भगवंत अनमोल का उपन्यास प्रमेय आपको ज़रूर पढ़ना चाहिए. इस उपन्यास में दो कथाएं समानांतर चलती हैं, जिनमें से एक कुछ सौ वर्ष पुरानी है तो दूसरी वर्तमान की कहानी है.
इस प्रमेय की परिकल्पना में उपन्यास का नायक सूर्यांश सनातन धर्म में बताई गए तीन सभ्यताओं की परिकल्पना करता है और उनके ज़रिए धर्म को नए कोण से देखने की कोशिश करता है. धार्मिक परिवार में पला-बढ़ा सूर्यांश चूंकि इंजीनियर बनने जा रहा है, उसे धर्म से ज़्यादा विज्ञान पर भरोसा है. यूं तो वह अपनी प्रमेय के निष्कर्ष में विज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ साबित करने की बात सोचता है, लेकिन उसके साथ होने वाली घटनाएं इस प्रमेय के निष्कर्ष को बदल देती हैं.
दो सामानांतर चल रही कथाएं आपकी उत्सुकता को जगाए रखने में कामयाब रहती हैं. उन्हें पढ़ते हुए आप जल्द से जल्द जान लेना चाहते हैं कि दोनों कथाओं का अंत क्या हुआ और आख़िर इस प्रमेय में सिद्ध क्या हुआ. इस लिहाज से यह उपन्यास पठनीय है, रुचि को बनाए रखने में कारगर है. पहली बार जब आप इसे पढ़ते हैं तो कुछ सवालों से घिर जाते हैं, जिनके उत्तर ढूंढ़ने के लिए बतौर समीक्षक मैंने इस उपन्यास को दो बार पढ़ा.
साइंस फ़िक्शन है तो ज़ाहिर है, आप उपन्यास को साइंस की कसौटी पर भी कसना चाहते हैं. इसी क्रम में कुछ सवाल अनसुलझे नज़र आते हैं, जैसे- एक ऐसी सभ्यता, जिसने सौरमंडल की पूरी ऊर्जा का उपयोग करना सीख लिया, विज्ञान को ही अपनी दुनिया और ईश्वर मान लिया है, वह दूसरे हैबिटेबल ग्रहों की खोज करते समय यह जानते हुए भी कि दूसरे ग्रहों के लोगों से उन्हें वायरस संबंधी ख़तरा हो सकता है, अपने यान में कोई स्कैनिंग सिस्टम क्यों नहीं डालती? वह अपने रोबोट को इस तरह प्रोग्राम क्यों नहीं कर पाती कि वह अपने यान में मौजूद दूसरे ग्रह के प्राणी की जानकारी, उनके ग्रह तक पहुंचा सके? और दूसरे ग्रह के किसी एक प्राणी की चेतना के रोबोट में जाने भर से वह रोबोट आख़िर किस तरह उस साइंस को मानने वाले ग्रह के सभी रोबोट्स को अपने साथ मिला कर उनकी पूरी सभ्यता को मिटा सकता है?
कुछ सवाल सूर्यांश के साथ भी छूटते हैं, जैसे- जब वह पहले ही जान चुका है कि अतीत में जाने पर वह कुछ छू नहीं सकता, कुछ बदल नहीं सकता तो वह ख़ुद को अपनी प्रेमिका फ़ातिमा का हत्यारा क्यों मानने लगता है? यदि वह अतीत में जाकर मोबाइल से ख़ुद को मैसेज कर सकता है तो थोड़ा और पहले जा कर फ़ातिमा को मैसेज क्यों नहीं करता है? और अंत समय में जब करता है तो ब्लैंक मैसेज क्यों करता है? उपरोक्त बातों का वैज्ञानिक समावेश कर उपन्यास को और भी चुस्त, और भी साइंटिफ़िक बनाया जा सकता था. लेकिन चूंकि यह फ़िक्शन है, लेखक को अपनी कल्पना की छूट दी जानी चाहिए.
इस प्रमेय का निष्कर्ष यूं तो आपको उपन्यास पढ़ कर ही जानना चाहिए, लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है कि निष्कर्ष आपको संतुष्ट करता है. भगवंत को इस उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार प्राप्त हुआ है, इसकी बधाई देते हुए हम उनसे भविष्य में और भी बेहतर कहानियों की उम्मीद रखते हैं.