ये एक अच्छी पहल है कि इन दिनों हमारे देश में तलाक़ को किसी कलंक की तरह देखना कम हुआ है और तलाक़ के बाद दूसरी शादी पर भी पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग में लोगों की भौंहें नहीं चढ़तीं. यदि आप भी दूसरी शादी कर के सौतेले पिता/सौतेली मां बनने जा रहे हैं तो यहां मौजूद हैं कुछ प्रैक्टिकल टिप्स, जो आपको इस भूमिका के लिए तैयार कर देंगे…
पैरेंटिंग यूं भी आसान नहीं है, लेकिन जब किसी पैरेंट के आगे सौतेला यानी स्टेप शब्द जुड़ जाए तो अपने आप ही बने-बनाए ढर्रे पर आपका खाका खींच दिया जाता है. बच्चे और उनके दूसरे परिजन आपसे उम्मीद तो रखते हैं, लेकिन संशय के बड़े से पहाड़ के पीछे से झांकती उम्मीद की यह लौ बहुत ही मद्धम होती है. जैसे-जैसे समय बदल रहा है, यह सोच भी शायद बदले, लेकिन सच तो यह है कि यह अपने आप नहीं बदलेगी. इसके लिए आपको प्रयास करने होंगे, क्योंकि आप महिला हों या पुरुष सौतेल बच्चे आपकी तुलना अपनी सगी मां या सगे पिता से ही करेंगे. कई बार जब आप कुछ अच्छा करने की कोशिश करेंगे तो उस पर भी शक़ किया जाएगा, लेकिन हमें भरोसा है कि यदि आप कुछ मूलभूत बातों का ध्यान रखेंगे तो इस रिश्ते को बख़ूबी निभा ले जाएंगे…
रिश्ते को सहज गति से आगे बढ़ने दें
अच्छी मां या पिता बनने के बारे में आपकी सोच चाहे कितनी ही दृढ़ क्यों न हो, आपका जज़्बा चाहे कितना ही गंभीर क्यों न हो, इस बात की उम्मीद न रखें कि बच्चे आपसे मिलते ही आपको अपना लेंगे. यदि आपको बच्चों की ओर से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही हो तो भी दुखी न हों, क्योंकि किसी के लिए भी रिश्तों को एकदम से अपना लेना आसान नहीं होता. ये ऐसे रिश्ते हैं, जो समय के साथ-साथ गहरे होते हैं इसलिए इन्हें सहज गति से आगे बढ़ने दें. बीच-बीच में आई नकारात्मकता से परेशान न हों. यदि आपने अच्छी नीयत से भी इस रिश्ते को अपनाने में उतावलापन दिखाया तो हो सकता है कि बच्चे और दूसरे परिजन इसे आपका दिखावा या नाटक मान लें और चीज़ें उस तरह सेटल न हो पाएं, जैसा कि आप चाहते थे. अत: बच्चों को अपनाने में ख़ुद भी वक़्त लें और उन्हें भी पूरा वक़्त दें, ताकि वो आपको अपना सकें. कहते भी हैं न- सहज पके सो मीठो होय. जो रिश्ता सहजता से आगे बढ़ेगा वो ज़रूर आप सब के जीवन को मीठा बना देगा.
बहुत ज़्यादा दख़लंदाज़ी न करें
सौतेले पिता या सौतेली मां को चाहिए कि वे अपने सौतेले बच्चों की दुनिया में ज़रूरत से ज़्यादा दख़ल न दें, भले ही वे ऐसा कितनी ही अच्छी नीयत के साथ क्यों न कर रहे हों. आप उनके साथ वास्तविक रहें, उनके पूछने पर उन्हें सलाह दें. यदि चाहें तो उनकी दिनचर्या के मुताबिक़ उनके कुछ काम आसान कर दें, जैसे- यदि उनकी परीक्षाएं चल रही हैं तो पूछ लें कि कहीं उन्हें आपकी मदद की ज़रूरत तो नहीं, यदि उनकी अल्मारी अस्त-व्यस्त हो गई है तो पूछ लें कि क्या उन्हें इसे ठीक करने में आपकी सहायता चाहिए, लेकिन इस तरह के आदेश देने से बचें कि अल्मारी साफ़ कर लो, परीक्षा के लिए अच्छे से पढ़ो वगैरह. बच्चों से अपनी उम्मीदों को वास्तविक रखें और व्यावहारिक मदद की पेशकश करें. यदि वे स्वीकार करते हैं तो ठीक यदि नहीं तो इस बात को दिल पर न लें.
अपने साथी पर बार-बार अपना हक़ न जताते रहें
माना कि आपकी नई-नई शादी हुई है और आप अपने साथी के साथ ज़्यादा समय बिताना चाहते हैं, जैसा कि हर नया कपल चाहता है, लेकिन आपका मामला थोड़ा अलग है, है ना? क्योंकि इसके साथ बच्चे भी जुड़े हुए हैं. इसका यह अर्थ नहीं है कि आपको अपने साथी के साथ समय नहीं बिताना है, बल्कि उनके साथ समय बिताते हुए उन पर जाने-अनजाने बार-बार अपना हक़ जताने से बचना है. क्योंकि यदि आप ऐसा करेंगे तो आपके सौतेले बच्चे आपको अपनी मां या अपने पिता से ख़ुद को दूर करने वाले शख़्स के तौर पर देखेंगे, जो बच्चों के साथ आपके ख़ुशनुमा रिश्ते की राह में सबसे बड़ी बाधा साबित हो सकता है. अत: अपने साथी को पूरा समय दें, उसके साथ अपने रिश्तों को खुल कर जिएं, लेकिन बच्चों के सामने इस बात का प्रदर्शन करने से बचें.
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