बच्चों का बड़ा करने के कोई बने-बनाए नियम या फिर कोई सांचा नहीं आता. अपने बच्चे के स्वभाव, उनकी उम्र और अपनी परिस्थितियों के अनुसार पैरेंटिंग का ये सांचा आपको ही तैयार करना पड़ता है. तभी तो कहते हैं कि बच्चों की परवरिश एक बड़ा काम है. न वहां ज़्यादा सख़्ती चलती है, न नरमी. ऐसे में संतुलन साधना ही पैरेंटिंग की कुंजी है. जहां आप ज़्यादा सख़्त हुए, वहां चीज़ें न सिर्फ़ बिगड़ेंगी, बल्कि आपके बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को नुक़सान भी पहुंचाएंगी. यहां जानिए कि क्यों सख़्त पैरेंट होना बहुत कारगर साबित नहीं होगा.
हम आपको ऐसी सलाह कभी नहीं देंगे कि आपको बच्चों को साथ दोस्ताना संबंध रखना चाहिए, क्योंकि अमूमन बच्चों को जीवन में ढेरों दोस्त मिलेंगे, लेकिन माता-पिता केवल आप ही होंगे. अत: माता-पिता को बच्चों की परवरिश के दौरान हर कुछ बनना पड़ता है. कभी दोस्ताना सलाह देनी होती है तो कभी गलत आदतों को सुधारने के लिए सख़्ती करनी पड़ती है. नियमों का पालन करवाने के लिए पीछे पड़े रहना पड़ता है तो नियम अपनाने पर प्रोत्साहन के तौर पर बच्चों को रिवॉर्ड भी देना होता है. कुल मिलाकर पैरेंटिंग के मामले में यह कहावत बिल्कुल सही है:
अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप
यदि आपको लगता है कि केवल सख़्त पैरेंट बनकर आप बच्चे की परवरिश अच्छी तरह कर पाएंगे और आप ऐसा करते/करती हैं तो जान लीजिए कि बच्चों के साथ ज़रूरत से ज़्यादा सख़्ती करने से उनके व्यक्तित्व का विकास पूरी तरह नहीं हो पाता. यहां हम बता रहे हैं कि क्या हो सकता है, यदि आप बच्चे पर बहुत अधिक सख़्ती करेंगे.
उनका आत्मविश्वास डगमगाएगा: बच्चे यूं भी कोमल मन के होते हैं और यदि आप बच्चे के साथ बहुत अधिक कठोरता से पेश आते हैं तो उनका आत्मविश्वास डगमगा जाता है. यदि उन्हें हर बात के लिए बार-बार फटकार पड़ती रही तो वे बाहर की, अपने दोस्तों की प्रतिस्पर्धी दुनिया का सामना करने में डरेंगे और हम जानते हैं ऐस तो बतौर पैरेंट्स आप कभी नहीं चाहेंगे.
वे बातचीत करने से कतराएंगे: आपकी सख़्ती के चलते वे आपसे बातचीत नहीं करेंगे, न ही अपने मन की बातें शेयर करेंगे. उन्हें यह डर सताता रहेगा कि यदि उनकी कोई बात पैरेंट्स को पसंद नहीं आई तो उनके साथ कठोरता बरती जा सकती है, उन्हें सज़ा मिल सकती है. इससे उनके व्यक्तित्व का विकास बाधित होगा और पैरेंट्स व बच्चे के बीच संवाद की कमी से स्थितियां बिगड़ जाएंगी.
निर्णय लेने में अक्षम होंगे: बच्चों पर ज़रूरत से ज़्यादा कठोरता उन्हें कोई भी निर्णय लेने में अक्षम बनाएगी. जब वे लगातार कठोर अनुशास में रहेंगे, अपनी बात खुलकर नहीं कह सकेंगे तो ज़ाहिर है कि अपने लिए कोई निर्णय लेना उनके बस की बात नहीं रह जाएगी. फिर चाहे बात पसंदीदा खेल की हो, कपड़ों की हो या फिर खाने में उन्हें क्या पसदं है इतना छोटा सवाल ही क्यों न हो.
तनाव में रहेंगे: यदि बच्चों को हर वक़्त इस बात का डर बना रहेगा कि वे जो कुछ भी करेंगे अंतत: अपने पैरेंट्स के ग़ुस्से का शिकार होंगे तो बच्चे हमेशा तनाव में रहना शुरू कर देंगे. इससे स्थितियां इतनी बिगड़ सकती हैं कि उन्हें पैनिक अटैक आने लगे या फिर उनके प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ने लगे.
वे आपसे बातें छुपाएंगे: पैरेंट्स के ज़रूरत से ज़्यादा सख़्ती अपनाने पर बच्चे अपने पैरेंट्स से बातें छुपाने लगते हैं. वे स्कूल, कॉलेज में जो कुछ भी करते हैं उसे अपने माता-पिता के साथ शेयर नहीं करते, बातों को छुपाते हैं, ताकि वे बेवजह की डांट से बच सकें. और यह स्थिति आज नहीं तो कल उन्हें ख़तरे में भी डाल सकती है.
सदा के लिए बिगड़ जाएंगे संबंध: कई बच्चे इस बात को कभी नहीं भूल पाते कि उनके मात-पिता ने बचपन में उनके साथ ज़रूरत से ज़्यादा कठोर रुख़ अपनाया था. वे बड़े होने पर अपने माता-पिता को इस बात के लिए माफ़ नहीं कर पाते और इस तरह आपके अपने बच्चों के साथ संबंध जीवनभर के लिए ख़राब हो सकते हैं.
फ़ोटो साभार: पिन्टरेस्ट