गांधीवादी विचारधारा के कवि कहे जानेवाले सोहन द्विवेदी अपनी देशभक्ति की कविताओं और गीतों के लिए जाने जाते थे. इस कविता में उन्होंने बिना किसी डर अहिंसा के पथ पर चलते जाने की बात की है.
न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
रहे समक्ष हिम-शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए जन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
घटा घिरी अटूट हो,
अधर में कालकूट हो,
वही सुधा का घूंट हो,
जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो
गगन उगलता आग हो,
छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपने फाग हो,
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
चलो नई मिसाल हो,
जलो नई मिसाल हो,
बढ़ो नया कमाल हो,
झुको नहीं, रुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
अशेष रक्त तोल दो,
स्वतंत्रता का मोल दो,
कड़ी युगों की खोल दो,
डरो नहीं, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
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