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चेतिए, क्योंकि आज के लोकतंत्र में बतौर मतदाता आपको ठगा जा रहा है!

जागरूक नागरिक तो इस बात को संजीदगी से महसूस कर रहे हैं और आप?

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
February 1, 2024
in ज़रूर पढ़ें, नज़रिया, सुर्ख़ियों में
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चेतिए, क्योंकि आज के लोकतंत्र में बतौर मतदाता आपको ठगा जा रहा है!
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बीते कुछ वर्षों से आम मतदाता के मत का भरसक दुरुपयोग कर, उसके साथ तोड़-मरोड़ का खेल करते हुए सत्ता हासिल करने की कवायद में आम आदमी के वोट का बेजा मखौल उड़ाया जा रहा है. लोकतंत्र के इस बिगड़े हुए स्वरूप में ऊपरी जामा भले ही लोकतंत्र का दिख रहा हो, लेकिन है यह हाइजैक तंत्र. इस हाइजैक तंत्र को लाने में देश की वर्तमान सबसे बड़ी पार्टी का योगदान सबसे बड़ा है. लोकतंत्र के इस रूप से आम वोटर को ठगा जा रहा है और जागरूक मतदाता इस बात को महसूस भी कर रहे हैं. पढ़ें, यह आकलन.

लोकतंत्र में कहा जाता है कि आम आदमी के पास बतौर मतदाता सबसे बड़ी शक्ति होती है कि वह अपने नुमाइंदों को चुनकर विधानसभा/संसद में भेजता है और ये नुमाइंदे जनता का ध्यान रखते हुए शासन चलाते हैं. कहा तो यह भी जाता है कि लोकतंत्र यानी जनता द्वारा, जनता के लिए किया जाने वाला शासन. पर आज के समय में यह बात कितनी सही है? क्या आज बतौर मतदाता लोकतंत्र में आम आदमी लोकतंत्र में अपनी शक्ति को महसूस कर पा रहा है?

लोकसभा चुनाव के नतीजे में एक पार्टी का बहुमत होने के बावजूद हर राज्य में हर प्रकार से सत्ता में बने रहने के लालच में मतदाता के मत का जिस तरह अपमान किया जा रहा है, वह आज से पहले इस पैमाने पर कभी दिखाई नहीं दिया. चूंकि कई राज्यों में राज्य सरकारों को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और राज्य सरकार को चलाने के लिए यह ज़रूरी हो गया कि गठबंधन किया जाए तो इस गठबंधन को टूल बनाते हुए देश की सबसे बड़ी पार्टी ने लोकतंत्र को हाइजैक ही कर लिया है. वे हर राज्य, हर केंद्र शासित प्रदेश की सत्ता में बने रहने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का खुला इस्तेमाल करते हुए आम वोटर को ठगने का काम कर रहे हैं.

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अभी कल यानी 31 जनवरी को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मनी लॉन्डरिंग के मामले में गिरफ़्तार किया गया और उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. ज़ाहिर है, ऐसा होना भी चाहिए था. भ्रष्टाचार करने की छूट किसी को भी नहीं दी जा सकती, भले ही वह आम आदमी हो या मुख्यमंत्री या फिर प्रधानमंत्री. इस लिहाज़ से तो क्रेंद्र सरकार का यह क़दम तर्क संगत ही है. लेकिन है यह भी राज्य की मौजूदा सरकार को गिराकर किसी तरह अपना वर्चस्व स्थापित करने की क़वायद. जिसमें आम नागरिक के वोट का तिरस्कार करना भी छुपा हुआ है. अन्यथा महाराष्ट्र में ऐसे ही आरोप झेल रहे और जांच का समाना कर रहे तब विपक्षी नेता और अब वर्तमान उप मुख्यमंत्री अजीत पवार भी सलाखों के पीछे होते. लेकिन भाजपा में शामिल होते ही उनके सारे आरोप धुल गए. यही नहीं छगन भुजबल, जो विपक्ष में रहते हुए जेल में थे अब भाजपा के साथ आते ही उनके केस से जुड़ी फ़ाइलें खो गईं. ये बातें बताती हैं कि भाजपा के साथ रहने वाले नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, जांच करने लायक भी नहीं माने जाएंगे और अन्य पार्टियों के नेताओं पर लगे आरोपों पर जांच भी होगी और कार्रवाई भी होगी. क्या यह जनता को भरमाना नहीं है?

परसों 30 जनवरी 2024 को चंडीगढ़ के मेयर के लिए हुए चुनाव में भी हाइजैक तंत्र हावी हुआ. चंडीगढ़ नगर निगम में कुल 35 सीटे हैं. जिसमें भाजपा के कुल 14 पार्षद थे और एक पार्षद अकाली दल का था. चंडीगढ़ की सांसद भाजपा की किरण खेर हैं, जिनका वोट भी इसमें शामिल हुआ. इस तरह भाजपा के पास कुल 16 वोट थे और विरोधी गठबंधन आम आदमी पार्टी के 13 व कांग्रेस के कुल सात पार्षदों को मिलाकर इनके पास कुल 20 वोट थे. ज़ाहिर है, इस गठबंधन का मेयर बनना लगभग तय ही था. लेकिन जहां भाजपा को 16 वोट मिले, वहीं आम आदमी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के 8 वोटों को पीठासीन अधिकारी ने अमान्य करार दे दिया और इस तरह भाजपा के मेयर की जीत सुनिश्चित करवा दी गई. आम आदमी ने पार्टी इस इलेक्शन में धांधली का आरोप लगाते हुए इसे दोबारा करवाने के लिए अदालत का रुख़ किया है.

चार ही दिन बीतें हैं 28 जनवरी 2024 को बिहार में भी इसी तरह का खेल खेला गया और तत्कालीन राजद-जदयू गठबंधन के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस गठबंधन को अलविदा कहकर भाजपा के साथ एक बार फिर गठबंधन कर लिया और नौंवी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. इससे पहले नितीश कुमार ने 16 नवंबर वर्ष 2020 में भाजपा (एनडीए) के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी और बीच में 10 अगस्त 2022 को एनडीए का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन किया और राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. कुल मिलाकर यह कि प्रदेश की जनता चाहे, जिसे जिताए, गठबंधन का खेल खेलते हुए नेता और पार्टियां अपनी सरकार बनाए रखती हैं. क्या यह आम जनता के वोट का मखौल उड़ाना नहीं है?

मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी, भाजपा से आगे थी. उसने सरकार बनाई भी, लेकिन 15 महीनों बाद जोड़-तोड़ की राजनीति करते हुए भाजपा मध्य प्रदेश की सत्ता पर क़ाबिज़ हो गई. इसी तरह के कई प्रयास राजस्थान की पिछली कांग्रेस सरकार को गिराने के भी किए गए थे और उससे पहले गोवा में भी खींचा-तानी करके भाजपा ने अपनी सरकार बनाई थी.

महाराष्ट्र में वर्ष 2019 में हुए चुनावों के बाद भी सत्ता पर क़ाबिज़ होने के लिए भाजपा ने कई बार जोड़-तोड़ की. पहली बार देवेंद्र फड़नवीस मुख्यमंत्री और एनसीपी से बगावत करके आए अजीत पवार ने अफ़रा-तफ़री में उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और यह सरकार महज़ 80 घंटे चली. इसके बाद बनी उद्धव ठाकरे वाली महाविकास आघाड़ी, जिसमें एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना ने गठबंधन कर लिया. मज़े की बात यह है कि इस सरकार में भी अजीत पवार उप मुख्यमंत्री बने. जून 2022 में जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत कर, भाजपा के साथ गठबंधन किया और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, इसके तीन ही दिनों बाद एनसीपी से एक बार फिर बगावत करके आए अजीत पवार ने तीसरी बार उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. यह कहना ज़रूरी है कि यहां भी सत्ता पाने की चाहत में भाजपा ने उठा-पटक की.

चुनावों के मामले में बॉलिवुड का एक गाना बड़ा प्रसिद्ध रहा है- ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है. आम लोगों के एक-एक वोट की बदौलत अतीत में हमारे देश में न जाने कितनी पार्टियों की सरकारें बनती और गिरती रही हैं, लेकिन यह बात तब की है, जब राजनीतिक पार्टियों में नैतिकता बाक़ी थी. लोकतंत्र में इसी नैतिकता की बदौलत जनता का वोट ताक़तवर माना जाता था. अत: पब्लिक का सब कुछ जानना मायने भी रखता था. लेकिन आज के समय में जब राजनीतिक पार्टियों (ख़ास तौर पर सत्ता में मौजूद) में नैतिकता नहीं बची और खुले आम ख़रीद-फ़रोख्त, सीबीआई-ईडी का डर दिखाकर केवल सत्ता पाने की भूख बनी हुई है आम वोटर ख़ुद को ठगा सा महसूस कर रहा है. वह चाहे किसी को भी वोट दे, लेकिन सत्ता की मलाई खाने के लिए राजनेता आपस में मन मुताबिक गठजोड़ करके या बनी हुई सरकार को तोड़कर अपने फ़ायदे की सरकार बना लेते हैं और वोटर के पास उन्हें ताकते रहने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता, क्योंकि अगले चुनाव तो पांच बरस बाद ही आएंगे.

और एक नई परेशानी तो यह भी है कि पांच साल में आने वाले इन चुनावों में दिए गए अपने वोट को लेकर आम आदमी आश्वस्त भी नहीं है कि उसने यह वोट जिस नेता या पार्टी को दिया है, वह उसे ही मिला है या नहीं. ईवीएम में हैकिंग और उनसे छेड़छाड़ की ख़बरें आम हो रही हैं. साथ ही, जगह-जगह ईवीएम मशीनों के पकड़े जाने की ख़बरें भी दिखाई व सुनाई देती हैं. यह अलग बात है कि मेन स्ट्रीम मीडिया इन बातों को तवज्जो नहीं देता है, लेकिन इससे इतर ईवीएम की हैकिंग व असमय आवाजाही की ख़बरें यूट्यूब, फ़ेसबुक, एक्स आदि पर बाकायदा देखने मिल जाती हैं. ऐसे में मतदाता ख़ुद को बेतरह ठगा हुआ महसूस करता है. हालांकि यह राहत की बात है कि कुछ वकील ईवीएम हैकिंग को लेकर सजग हुए हैं और उन्होंने इसके विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद की है. इससे उम्मीद जागी है कि शायद आम वोटर लोकतंत्र में अपनी ताक़त वापस पा सकेगा.

फ़ोटो साभार: फ्रीपिक

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शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

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