यदि आप भी यह सोचते/सोचती हैं कि पुरुषों और महिलाओं में एक से अधिक लोगों के प्रति सेक्शुअल आकर्षण क्यों होता है? तो अनुपमा गर्ग का यह आलेख पढ़ें, जिसमें वे कई सेक्शुअल टर्म्स का ज़िक्र करते हुए बता रही हैं कि एक से अधिक लोगों के प्रति सेक्शुअल आकर्षण महसूस करना स्त्री व पुरुष दोनों के लिए ही स्वाभाविक सी बात है.
यह आलेख उन लोगों के लिए है, जो पॉलिएमोरी (polyamory) या एक से ज़्यादा साथियों के प्रति आकर्षण या उनके साथ रिलेशनशिप को लेकर उहापोह में रहते हैं. ये प्रश्न अलग अलग तरीक़े से पूछा जाता है, बार बार पूछा जाता है, मर्दों और औरतों दोनों के द्वारा पूछा जाता है, अलग अलग परिपेक्ष्य में पूछा जाता है अत: इसकी बात करना ज़रूरी है.
सबसे पहले ज़रा जानते हैं पॉलिएमोरी होता क्या है. पॉलिएमोरी का अर्थ है ‘बहुप्रेमी प्रथा’ किसी व्यक्ति के एक साथ कई प्रेम सम्बन्ध होना या एक साथ एक से ज़्यादा प्रेमसंबंध रखने की इच्छा होना. यह शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है – ग्रीक मूल का “पॉली” (जिसका अर्थ है “कई”) और लैटिन मूल “एमोरी” (जिसका अर्थ है “प्रेम”). पॉलिएमोरी एक जेंडर न्यूट्रल शब्द है, जिसे महिलाओं, पुरुषों या समलैंगिक समुदाय के लोगों यानी सभी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
इस शब्द से मिलता जुलता एक और शब्द है- पॉलिगमी (Polygamy) यानी ‘बहुविवाह’. यदि कोई पुरुष एक से अधिक पत्नियां रखे तो उसे पॉलिजनी (polygyny) कहेंगे और यदि कोई महिला एक से अधिक पति रखे तो उसे पॉलिएन्ड्री (polyandry) कहेंगे.
इन परिभाषाओं के कुछ उदाहरण हमें धार्मिक ग्रंथों में मिलते हैं. उन्हें उद्धृत करने का उद्देश्य सिर्फ़ ऐसे उदाहरण देना है, जिनसे हम सामान्यतः वाक़िफ़ हैं. इन उदाहरणों का उद्देश्य भावनाओं को आहत करना नहीं है. इन परिभाषाओं के अनुसार यदि हमें हिन्दू महाकाव्यों में उदाहरण देखने हों तो महाभारत में तीनों ही उदाहरण मिल जाते हैं. इस नज़र से महाराज पांडु और अर्जुन पॉलिजनस (polygynous) थे, महारानी द्रौपदी पॉलिएन्ड्रस (polyandrous) और ब्रज की कुछ गोपियां पॉलिएमोरस (polyamorous) और श्रीकृष्ण पॉलिएमोरस भी थे और पॉलिजनस भी थे. ऐसे और ग्रंथों में और भी कई उदाहरण मिल जाएंगे. इसी तरह मुस्लिम धर्म में मुहम्मद साहब की एक से अधिक पत्नियों का होना उन्हें पॉलिजनस बनाता है.
अब वापस आ जाते हैं आज के परिप्रेक्ष्य पर… यदि ध्यान से देखें तो पॉलिएमोरी और पॉलिगमी के बीच प्रमुख अंतर केवल सामाजिक स्वीकार्यता का है. क्योंकि विवाह एक सामाजिक तौर पर स्वीकार्य संस्था है, इसलिए कुछ धर्मों, समुदायों, देशों, में पॉलिगमी स्वीकार्य है. लेकिन पॉलिएमोरी यानी सिर्फ़ एक से ज़्यादा साथियों के साथ सम्बन्ध होना (विवाहेतर भी हो सकते हैं ऐसे सम्बन्ध), अधिकतर समाजों में आज भी अस्वीकार्य है.
ऐसे में इसे देखने का एक आयाम ये भी हो सकता है कि क्या पुरुषों का पॉलिएमोरस होना महिलाओं के या समलैंगिक लोगों की तुलना में अधिक स्वीकार्य है? लेकिन इस आलेख में हम पॉलिएमोरी के धार्मिक, सामाजिक, या क़ानूनी पहलू नहीं देखेंगे, क्योंकि इस आलेख का उद्देश्य सिर्फ़ ये डिस्कस करना है कि पॉलिएमोरी क्या है और लोग एक से अधिक पार्टनर्स की इच्छा क्यों करते हैं?
पॉलिएमोरी से जुड़े मिथक
पॉलिएमोरी और उसे प्रैक्टिस करने वाले लोगों को लेकर बहुत से मिथक हैं. मसलन –
1. पॉलिएमोरस लोग सिर्फ़ सेक्स चाहते हैं, वे प्रेम नहीं कर सकते.
2. पॉलिएमोरी का अर्थ चीटिंग है.
3. पॉलिएमोरस लोग चरित्रहीन होते हैं.
4. पॉलिएमोरस लोग ग्रुप सेक्स, स्विंगिंग, आदि भी करते हैं.
5. पॉलिएमोरस लोग कमिटमेंट नहीं कर सकते.
6. समलैंगिक या LGBTQIA+ लोग स्ट्रेट लोगों से अधिक पॉलिएमोरस होते हैं.
7. सभी पॉलिएमोरस लोग पॉलिगमस भी होते हैं.
एक वाक्य में इन सब मिथकों के लिए इतना कहना भर काफ़ी है कि ये सिर्फ़ मिथक हैं, सच्चाई नहीं . लेकिन अगर थोड़ा गहराई में देखें तो हम समझ पाएंगे कि पॉलिएमोरी नेचुरल है, चाहे वह हमें नार्मल भले ही न लगे. जीव जगत में बहुत सी प्रजातियां हैं, जहां यह पॉली (poly) बिहेवियर देखने को मिलता है. उनमें से कई प्रजातियां लम्बे और स्थायी सम्बन्ध नहीं बनातीं और सिर्फ़ प्रजनन के समय साथी ढूंढ़ती हैं, कुछ प्रजातियां लम्बे, स्थायी सम्बन्ध भी बनाती हैं. इससे यह मतलब तो साफ़ है कि एक से अधिक साथी की चाह अप्राकृतिक तो नहीं है. ये कोई भटकाव, उलझन, कमाल की बात, भूख या अतृप्ति, आदि नहीं है.
जहां तक सामान्यता का प्रश्न है, इवॉलूशनरी साइकोलॉजी पढ़ते समय ये देखने को मिलता है, कि मनुष्य के लिए क्या सामान्य है, यह बहुत सी बातों पर निर्भर करता है. उसके आसपास का माहौल, उसकी परिस्थितियां, उसका सामाजिक ढांचा, और भी बहुत कुछ. हमें यह भी देखना होगा कि किस समाज में महिलाओं की स्थिति क्या है, सेक्स को ले कर कितनी और कैसी भ्रांतियां हैं, पारिवारिक, और वैवाहिक ढांचे कैसे हैं और वहां का क़ानूनी ढांचा किस चीज़ से प्रभावित हुआ है.
किसी देश में सिविल लॉ है या कॉमन लॉ, या रिलीजस लॉ है ये तो एक बात है, दूसरी बात ये भी है, कि जब पूर्ववर्ती औपनिवेशिक राज्यों में नियम क़ानून बने तो उन पर किस विचारधारा, किस धर्म, किस प्रकार की नैतिकता, दर्शन आदि का प्रभाव अधिक पड़ा. ये प्रभाव बहुत हद तक निर्धारित करेंगे कि लोग सेक्स, संबंधों, विवाह, और ऐसे अन्य अनेक मुद्दों से कैसे डील करेंगे.
इसके बाद ये भी देखना होगा कि हम शादी, और सेक्स को एक-दूसरे के पूरक की तरह देखते हैं या नहीं. यदि हां तो हम पॉलिगमी को शायद फिर भी समझ पाएं, पॉलिएमोरी को नहीं समझ पाएंगे. इसी तरह यदि हम संस्कार और निष्ठा की क़ीमत पर आज़ादी और स्वतंत्रता की बलि चढ़ाएंगे तो हमारे लिए ये समझना मुश्किल होगा कि पॉलिएमोरी सेक्शुअल, इमोशनल, सोशल स्पेक्ट्रम पर एक विशिष्ट प्रकार का व्यवहार सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि हम उसके प्रति सहज नहीं हैं.
हमें समलैंगिकों और पुरुषों में पॉलिएमोरी अधिक इसलिए दिखती है, क्योंकि हमने नैतिक अवधारणाओं में समलैंगिकता या LGBTQIA+ को अनैतिक, अप्राकृतिक आदि समझा हुआ है और महिलाओं की सेक्शुऐलिटी को परदे के पीछे दबा-छुपा कर रखा हुआ है. हमें पॉलिएमोरी का मतलब धोखा (चीटिंग) या चरित्रहीनता इसलिए लगता है क्योंकि हमने नैतिकता के पैमानों में ईमानदारी को नीचे और सामाजिक स्वीकार्यता को ऊपर रखा हुआ है.
पॉलिएमोरी का अर्थ ये नहीं कि किसी को सेक्स ही चाहिए. इसका मतलब ये भी नहीं कि वे अपने एक पार्टनर से असंतुष्ट हैं या प्रेम नहीं करते. इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि कुछ लोग एक से अधिक लोगों से प्रेम कर सकते हैं, उसे निभा पाते हैं, बिना झूठ-सांच किए और ऐसा करना भी चाहते हैं.
पॉलिएमोरी में जो सबसे ज़रूरी चीज़ है, वो है नैतिकता (ethics). पॉलिएमोरी तभी निभाई जा सकती है जब सहमति यानी कंसेन्ट और संवाद यानी कम्यूनिकेशन पर पूरा ज़ोर दिया जाए. रिलेशनशिप में जितने भी लोग शामिल हैं, उन सबको पता हो कि वे इकलौते साथी नहीं हैं और उसके बावजूद उनकी रज़ामंदी हो.
सारे पॉलिएमोरस लोग विवाह नहीं करना चाहते, लेकिन ये इसलिए नहीं है कि वे कमिटमेंट से डरते हैं या भागते हैं. ये इसलिए भी है कि क़ानूनी तौर पर पॉलिएमोरी प्रैक्टिस करने का कोई ऑप्शन उन्हें न दे कर, इस समाज ने उनके लिए विवाहित होते हुए एक से अधिक लोगों से प्रेम करने का रास्ता ही बंद कर रखा है. विवाह का प्रेशर किसी भी पॉलिएमोरस व्यक्ति का दम कितना घोट सकता है इसकी कल्पना करना भी कभी कभी मुश्किल है. ये ऐसी चीज़ है जैसे किसी मीट खाने वाले का विवाह किसी वैष्णव, या जैन परिवार में हो जाए.
सभी पॉलिएमोरस लोग सिर्फ़ सेक्स नहीं चाहते. रिलेशनशिप्स के कई फ़्रेमवर्क्स होते हैं. अलग-अलग लोगों की रिलेशनशिप नीड्स अलग-अलग होती हैं. लेकिन इस पर विस्तार से बात करने के लिए हमें प्रेम, सेक्स, रिलेशनशिप्स में फ़र्क़ करना समझना और सीखना होगा. उसके बाद जब हम उसे सिंगल पार्टनर के परिप्रेक्ष्य में समझ पाएंगे, तब उसे पॉली के रिफ़रेन्स में समझना भी आसान हो पाएगा. इसलिए अगली बार जब लगे कि यह महिला चरित्रहीन है क्योंकि इसके दो प्रेमी हैं या ये आदमी लफंगा है क्योंकि ये लड़कियां घुमाता है, थोड़ा रुकें, थोड़ा सोचें.
सोच कर देखें, क्या यह संभव नहीं है, कि आप पॉलिएमोरस लोगों के बारे में बिना जाने, बिना समझे, कुछ भी जजमेंट पास कर रहे हैं? क्या यह संभव नहीं है कि इनके सभी पार्टनर्स को पता हो? क्या ये संभव नहीं है कि सेक्स के बावजूद या सेक्स के बिना भी, कुछ लोग एक-दूसरे को बहुत चाह सकते हैं, पसंद कर सकते हैं और कि यह नॉर्मल या कम से कम प्राकृतिक तो बिलकुल हो सकता है?
मैं यह नहीं कह रही कि सबको पॉलिएमोरस होना चाहिए. मैं ये भी नहीं कह रही कि पॉलिएमोरी सही है या ग़लत. मैं उससे सम्बंधित क़ानून पेंच जानने का दवा तो बिल्कुल भी नहीं कर रही . मैं सिर्फ़ ये कह रही हूं, कि ये नैसर्गिक है, कई जगह सामान्य भी है और ये व्यक्तिगत चुनाव है. इस तरह का जीवन जीने के लिए भी ईमानदारी और संवाद की उतनी ही, बल्कि अधिक आवश्यकता है, जितनी कि सिर्फ़ एक साथी के साथ जीने के लिए.
नोट: पॉलिएमोरी एक आलेख का विषय नहीं इसलिए इस पर आगे भी आलेख आएंगे. तब तक के लिए विचार, विमर्श, प्रश्न आमंत्रित हैं. आप अपने सवाल [email protected] पर भेज सकते हैं.
फ़ोटो साभार: पिन्टरेस्ट