वीरेन डंगवाल को साधारण मनुष्य का कवि कहा जाता है, वे सच्चे अर्थों में जनकवि कहाते हैं. क्यों कहाते हैं इस बात को जानने के लिए उनकी यही कविता लीजिए, जिसे आप यहां पढ़ने जा रहे हैं. इसमें उन्होंने भारतीय मध्यम वर्ग के जीवन की बेहतरीन झलक दिखाई है.
आ गई हरी सब्ज़ियों की बहार
परांठे मूली के, मिर्च, नींबू का अचार
मुलायम आवाज़ में गाने लगे मुंह-अंधेरे
कौवे सुबह का राग शीतल कठोर
धूल और ओस से लथपथ बेर के बूढ़े पेड़ में
पक रहे चुपके से विचित्र सुगंध वाले फल
फेरे लगाने लगी गिलहरी चोर
बहुत दिनों बाद कटा कोहरा खिला घाम
कलियुग में ऐसे ही आते हैं सियाराम
नया सूट पहन बाबू साहब ने
नई घरवाली को दिखलाया बांका ठाठ
अचार से परांठे खाए सर पर हेल्मेट पहना
फिर दहेज की मोटर साइकिल पर इतराते
ठिठुरते हुए दफ़्तर को चले
भोंदू की तरह
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