टोक्यो ओलंपिक्स के सातवें दिन भारत ने अपना दूसरा मेडल पक्का कर लिया. असम से आनेवाली महिला बॉक्सर लवलीना बोर्गोहेन ने बॉक्सिंग के वेल्टवेट कैटेगरी में चाइनीज ताइपे की बॉक्सर चिन चेन को हराकर टोक्यो ओलंपिक में भारत का एक मेडल पक्का कर दिया है.
कल टोक्यो ओलंपिक्स में एमसी मैरी कॉम की हार भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं थी, वहीं आज सुबह बॉक्सिंग रिंग से ही भारत के लिए ख़ुशख़बरी आई. भारत की बॉक्सर लवलीना बोर्गोहेन ने महिलाओं के 69 किलो (वेल्टरवेट) कैटेगरी के क्वॉर्टरफ़ाइनल में चाइनीज ताइपे की बॉक्सर चिन चेन को 4-1 की करारी शिकस्त देते हुए ओलंपिक खेलों में मेडल हासिल करनेवाली दूसरी भारतीय महिला मुक्केबाज़ कहलाने का गौरव हासिल किया.
कैसे पार पाई लवलीना ने चाइनीज़ ताइपे चुनौती?
क्वॉर्टरफ़ाइनल में लवलीना की प्रतिद्वंद्वी चाइनीज़ ताइपे की खिलाड़ी चिन चेन को लवलीना के खि़लाफ़ मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल थी, क्योंकि वे पहले भी इस भारतीय मुक्केबाज़ को हरा चुकी थीं. हालांकि उस हारे हुए मुक़ाबले में उन्होंने विरोधी की शक्ति से कम अपनी जल्दबाज़ी के ज़्यादा नुक़सान उठाया था. इस बार कोच मोहम्मद कमर अली ने उन्हें हिदायत दे रखी थी कि वेवजह आक्रामक नहीं होना है. लवलीना ने इस सलाह का पालन करते हुए शुरुआत में पॉइंट्स हासिल करने के बाद अंतिम पलों में डिफ़ेंस पर फ़ोकस रखा. आक्रमण और बचाव के उनके संतुलित खेल ने उन्हें विजेंदर सिंह और एमसी मैरी कॉम की स्पेशल लीग में खड़ा कर दिया. वे देश के लिए मेडल जीतनेवाली दूसरी महिला मुक्केबाज़ और कुल मिलाकर तीसरी बॉक्सर बन गईं.
अब तय है भारत का एक मेडल
आमतौर पर अधिकतर खेलों में सेमीफ़ाइनल में हारनेवाले दो खिलाड़ियों को कांस्य पदक के लिए आपसे में मुक़ाबला करना होता है. पर ओलंपिक की बॉक्सिंग प्रतियोगिता में फ़ाइनल में पहुंचने से चूकनेवाले यानी सेमीफ़ाइनल में हारनेवाले दोनों खिलाड़ियों को कांस्य पदक दिया जाता है. लवलीना सेमीफ़ाइनल में पहुंच चुकी हैं सो उनका कांस्य पदक पक्का हो गया है. हालांकि देश को यही उम्मीद है कि वे सेमीफ़ाइनल में तुर्की की खिलाड़ी को हराकर फ़ाइनल में पहुंचें और फिर सोना जीतने की कोशिश करें. लवलीना का सेमीफ़ाइनल मुक़ाबला 4 अगस्त को खेला जाना है, उनके सामने होंगी दुनिया की मौजूदा नंबर एक बॉक्सर बुसेनाज़ सुरमेनेली.
एक किक बॉक्सर के ओलंपिक चैम्पियन बॉक्सर में बदलने की कहानी
23 वर्षीया लवलीना जब 10 साल की थीं, तभी से बॉक्सिंग का प्रशिक्षण ले रही हैं. शुरुआत उन्होंने कोच प्रशांत दास के मार्गदर्शन में मय थाई नामक किक बॉक्सिंग के एक प्रकार से की थी. जहां बॉक्सिंग में केवल मुक्के चलाए जाते हैं, वहीं किक बॉक्सिंग में पैरों का भी इस्तेमाल किया जाता है. किक बॉक्सिंग को आमतौर पर सेल्फ़ डिफ़ेंस के लिए अच्छा माना जाता है, पर बॉक्सिंग का हिंसक स्वरूप होने के चलते ओलंपिक जैसे खेलों में इसे शामिल नहीं किया जाता. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के अधिकारी पदुम बोरो के कहने पर लवलीना ने किक बॉक्सिंग छोड़, बॉक्सिंग में करियर बनाने का फ़ैसला किया और आज नतीजा सबके सामने है.
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