बजट आए यूं तो 10 दिन से ज़्यादा का समय गुजर गया है, लेकिन आम वैतनिक मध्यमवर्गीय बजट के सदमे से अब तक नहीं उबर सका है. उसकी अपनी कई चिंताएं हैं, जिनसे वह जूझ रहा है. इस आलेख में आपको उसकी चिताओं की झलक मिलेगी.
बीते दिनों बजट आया, बहुत सारे इकोनॉमिस्ट और एक्सपर्ट टीवी पर अपनी राय दे रहे थे. मैंने भी एक सैलरीड मध्यम वर्ग के आम आदमी की तरह बजट को समझने की कोशिश की और ये पाया कि जिस तरह पिछले लगभग 10 वर्षों से आम व्यक्ति को मिलने वाले सारे बेनिफ़िट्स को धीरे-धीरे ख़त्म किया जा रहा है. ये बजट उस निरंतर प्रक्रिया का हिस्सा भर है. मैं अपने विचार उन लोगों से शेयर कर रहा हूं, जो मेरी ही तरह मध्यम वर्ग से आते हैं, थोड़ा बहुत इन्वेस्टमेंट में रुचि रखते हैं और जिसके द्वारा वो मध्यम वर्ग से आगे निकलकर उच्च वर्ग में जाने का सपना रखते हैं। पिछले 10 सालो में जो कुछ काम इस सरकार ने किया है, उसकी झलकियां इस प्रकार हैं:
बुज़ुर्ग रेल यात्रियों को रेल यात्रा में मिलने वाली सारी छूट ख़त्म. बज़ुर्ग यात्रियों को 50% तक की छूट रेल यात्री किराए में मिलती थी, जिसे कोरोना काल में ख़त्म कर दिया गया.
गरीब छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति ख़त्म कर दी गई.
छोटी बचतों, जैसे- बैंक एफ़डी और पीपीएफ़ की ब्याज दरों में कटौती की गई.
मध्यम वर्ग थोड़ा-बहुत पैसा म्यूचुअल फ़ंड में बना लेता था, लेकिन वर्ष 2019 में म्यूचुअल फ़ंड में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स की शुरुआत की गई. वर्ष 2019 में शेयर और म्यूचुअल फ़ंड की कमाई पर 10% टैक्स की शुरुआत की गई. अब वर्ष 2024 के बजट में इसे और बढ़ाकर 12.5% कर दिया गया है.
प्रॉपर्टी और रियल एस्टेट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स था, लेकिन इंडेक्सेशन बेनिफ़िट मिलता था… यानी प्रॉपर्टी लेने और बेचने के बीच जितना समय काल था, उसमें जो इनफ़्लेशन की दर थी, उसका बेनिफ़िट दिया जाता था. अब इंडेक्सेशन बेनिफ़िट भी ख़त्म कर दिया है.
पेट्रोलियम प्रोडक्ट में एक्साइज़ ड्यूटी को 300% बढ़ाया गया है. नतीजा जो पेट्रोल रु 70 का मिलता था, वो अब रु100 के ऊपर है. जो डीज़ल 50 का मिलता था अब 90 का है. रसोई गैस जो रु 500 की थी, वो अब 1100 की है.
अब देखते हैं कि कॉरपोरेट कंपनियों को इन 10 वर्षों में क्या मिला? लगभग 16 लाख करोड़ के कॉरपोरेट लोन सरकारी बैंकों से राइट ऑफ़ कर दिए गए. सरकारी बैंकों का पैसा मतलब जनता का पैसा.
कॉरपोरेट कंपनियों का टैक्स 28% से घटाकर 22% कर दिया गया. वर्ष 2014 में सरकार के कुल टैक्स का 35% कॉरपोरेट टैक्स से आता था और लगभग 21% मध्यम वर्ग के इनकम टैक्स से. लेकिन अब स्थिति अलग है, वर्ष 2023 में सरकार के कुल टैक्स कलेक्शन में कॉरपोरेट टैक्स से 26% आता है और आम जनता के इनकम टैक्स से 28%. पहली बार पर्सनल इनकम टैक्स कलेक्शन कॉरपोरेट टैक्स कलेक्शन से आगे निकल गया है.
जब कॉरपोरेट टैक्स घटाया गया तो ये दलील दी गई कि इससे प्राइवेट सेक्टर का इकोनॉमी में निवेश बढ़ेगा, लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ. वर्ष 2014 में प्राइवेट निवेश जीडीपी का 35% था, जो अब घट के 29% रह गया है. सारे उद्योगपतियों ने घटे टैक्स रेट का फ़ायदा उठाकर अपनी बैलेंस शीट ठीक कर ली, सारे लोन चुकता कर दिए.
जीएसटी (GST) की बात न ही की जाए तो बेहतर होगा. वैसे भी GST एक इनडायरेक्ट टैक्स है, जिसका अधिकतर बोझ मध्यम वर्ग ही उठाता है.
सवाल केवल ये नहीं है कि जनता पर टैक्स बढ़ाया गया है, बल्कि सवाल ये भी है कि जनता को मिलने वाली हर सुविधा को धीरे-धीरे ख़त्म क्यों किया जा रहा है?
अगर आप ऊपर लिखे आंकड़ों को देखेंगे तो स्पष्ट है कि मध्यम वर्ग के ऊपर टैक्स का ऐसा मकड़ जाल फैला दिया गया है, जिससे निकालना उसके लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है! उसका सारा पैसा निचोड़ कर कॉरपोरेट को ट्रांस्फ़र किया जा रहा है. उसकी सारे कमाई और बचत के रास्तों पर अब टैक्स का पहरा है.
इधर सोशल मीडिया पर एक उद्योगपति के बेटे की शादी के वीडियो वायरल है. बताया जा रहा है कि शादी का बजट 5000 करोड़ था. इधर मैं अपना बैंक बैलेंस और म्यूचुअल फ़ंड पोर्टफ़ोलियो देख रहा हूं और इस सोच में हूं कि क्या रिटायरमेंट तक अपने बुढ़ापे के लिए एक सम्मानजनक रकम इकट्ठी कर पाऊंगा?
टीवी खोलता हूं तो एक गोदी मीडिया का एंकर चिल्ला रहा है… कावड़ यात्रा पर एपिसोड चल रहा है. बताया जा रहा है कि हिंदू ख़तरे में है. इस न्यूज़ टीवी का मालिक वही उद्योगपति है जिसके बेटे की हाल में शादी हुई है. कई अन्य गोदी चैनल हमेशा की तरह इस बजट को मास्टर स्ट्रोक बताने में व्यस्त हैं।
और मैं राजनीति, कॉरपोरेट और मीडिया के इस खेल को समझने की कोशिश कर रहा हूं…
– एक आम वैतनिक मध्यमवर्गीय
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