आगामी 24 मार्च और 25 मार्च को दिल्ली में ITO के नजदीक सुरजीत भवन में पहले वैखरी का आयोजन होने जा रहा है. वैखरी साहित्य, राजनीति, सिनेमा, मीडिया, जेंडर और परस्पर रुचि के ऐसे अन्य मुद्दों से जुड़े प्रख्यात व्यक्तित्वों को एक मंच पर लाने की पहल है, जिसमें व्याख्यान, पैनल डिस्कशन, सम्मान समारोह, हिन्दी-उर्दू कविता पाठ एवं क़िस्सागोई जैसे कार्यक्रम होंगे. आयोजन में वक्ताओं से मुखातिब होने के लिए “ऑथर्स कॉर्नर”, विभिन्न प्रकाशनों के स्टॉल और इस देश की संस्कृतिक विविधता को समेटे हस्तकला आदि की प्रदर्शनियां भी शामिल रहेंगी.
‘वैखरी’ का अर्थ है विचारों का उत्सव. इस वर्ष पहला दो दिवसीय वैखरी दिल्ली में आगामी 24 मार्च और 25 मार्च को आयोजित किया जा रहा है. इस समारोह में आम जनता का भाग लेना क्यों ज़रूरी है, यह बात आपको इस मंच की नींव क्यों रखी गई है, यह जानने के बाद अच्छी तरह स्पष्ट हो जाएगा.
यूं पड़ी वैखरी की नींव
विचारों के इस महासमागम की बुनियाद को जानने के लिए ज़रूरी है कि इसके पीछे की कहानी को थोड़ा ठहर कर समझा जाए. नवंबर 2022 का महीना था. इंडिया टुडे ग्रुप की ओर से साहित्य आज तक का आयोजन किया जा रहा था. तीन दिनों तक चले साहित्य आज तक के कार्यक्रम में शिरकत करने हजारों की संख्या में लोग मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में पहुंचे. देश भर के नामचीन साहित्यकार, फिल्म कलाकार और अन्य क्षेत्रों के मशहूर नाम बतौर अतिथि पहुंचे. सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन तभी कुछ लोगों ने कार्यक्रम के स्पॉन्सरशिप पर सवाल खड़े कर दिए. सवाल नैतिकता के आधार पर था. दरअसल साहित्य आज तक का मुख्य स्पॉन्सर पान मसाला की एक कंपनी थी. इसी पर विवाद और बहस शुरू हो गई. यहां से वैखरी के विचार की एंट्री होती है.
जाने-माने लेखक और जम्मू-कश्मीर पर अपनी किताबों के लिए लोकप्रिय अशोक कुमार पांडेय ने इस पर बात करते हुए बताया, ‘‘एक बड़ा साहित्य उत्सव चल रहा था, एक गुटका कंपनी के विज्ञापन को लेकर समर्थन-बहिष्कार की बहसें चल रही थीं. मैंने सवाल उठाया कि जब बड़ी पूंजी के सहारे उत्सव होंगे तो वैचारिक मूल्य भी उन्हीं के होंगे… जन की बात करनी है तो आयोजन भी उसी के संसाधनों से होगा. इसी बहस के दौरान इस महासमागम की योजना बनी और नाम दिया गया वैखरी. ये पूरी बातचीत शुरुआती दौर में सोशल मीडिया पर ही हो रही थी.’’
इसके बाद अशोक कुमार पांडेय ने ही ये बीड़ा उठाया कि जनता के पैसे से जनता के लिए एक आयोजन किया जाए. उन्होंने सोशल मीडिया पर साफ़तौर पर ये भी कहा कि वो ख़ुद इस दौरान मंच पर कहीं नहीं रहेंगे, ताकि कोई सवाल ना खड़ा करे.
जन भागीदारी, जनता का सम्मेलन
वैखरी की बात करते हुए थोड़ा पीछे चलते हैं… ये बात आज़ादी के लड़ाई के वक़्त की है. जब महात्मा गांधी वर्ष 1915 में भारत लौटे तो उन्होंने देखा कि देश में आजादी के लिए संघर्ष तो हो रहा है, लेकिन संघर्ष का कोई भी सिरा सीधे तौर पर जनता से नहीं जुड़ा है. यानी जन भागीदारी के मोर्चे पर ये संग्राम कमज़ोर था. तब गांधी ने स्वतंत्रता की लड़ाई का नया मॉडल दिया. जिसमें जनता अहिंसक आंदोलन के केंद्र में थी. आंदोलन की मशाल सीधे तौर पर जनता के हाथों में थी. ये जन मॉडल था.
जनता यानी पब्लिक यानी लोकतंत्र की सबसे ज़रूरी और मज़बूत कड़ी. फिर याद कीजिए लोकतंत्र की परिभाषा, जो अब्राहम लिंकन ने दी थी और जिसे कक्षा-6 से ही हमें रटवाया गया है- जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा किया गया शासन ही लोकतंत्र है. इसी मॉडल पर राजधानी दिल्ली में एक आयोजन होने जा रहा है. जिसका नाम है- ‘वैखरी’. यानी विचारों का उत्सव. जिसकी हर कड़ी में जनता की मुख्य भूमिका है.
वैखरी के कार्यक्रमों की रूपरेखा
आगामी 24 मार्च और 25 मार्च की तारीख को कैलेंडर पर पिन कर लीजिए. क्योंकि इस दिन दिल्ली में ITO के नजदीक सुरजीत भवन में वैखरी का आयोजन होने जा रहा है. वैखरी साहित्य, राजनीति, सिनेमा, मीडिया, जेंडर एवं परस्पर रुचि के ऐसे अन्य मुद्दों से जुड़े प्रख्यात व्यक्तित्वों को एक मंच पर लाने की पहल है, जिसमें व्याख्यान, पैनल डिस्कशन, सम्मान समारोह, हिन्दी-उर्दू कविता पाठ एवं क़िस्सागोई जैसे कार्यक्रम होंगे. आयोजन में वक्ताओं से मुखातिब होने के लिए “ऑथर्स कॉर्नर”, विभिन्न प्रकाशनों के स्टॉल और इस देश की संस्कृतिक विविधता को समेटे हस्तकला आदि की प्रदर्शनियां भी शामिल रहेंगी. वैखरी का आगाज़ 24 मार्च को दोपहर 2.30 बजे से होगा. आयोजन 25 मार्च तक जारी रहेगा. कार्यक्रम का पूरा शेड्यूल नीचे तस्वीरों में देखें.
कैसे शामिल हुआ जा सकता है?
यदि आप भी वैखरी में शामिल होना चाहते हैं तो आपको बता दें कि इसमें एंट्री के लिए रजिस्ट्रेशन ज़रूरी है. जिसका लिंक नीचे दिया गया है.
रजिस्ट्रेशन लिंक: https://thecrediblehistory.com/vaikhari/
ये हस्तियां भी वैखरी का हिस्सा होंगी
प्रथम वैखरी में अतिथि के रूप में देशभर से कई नामचीन हस्तियां भाग लेंगी, जिनमें शामिल हैं: मराठी कवि, समीक्षक व चिंतक गणेश विसपुते; इतिहासकार प्रो. इरफ़ान हबीब; कवि आलोचक, कला समीक्षक अशोक बाजपेयी; कवि, आलोचक, चिंतक प्रो. अनामिका; लेखक आलोचक व चिंतक प्रो. पुरषोत्तम अग्रवाल; सांसद, राज्यसभा संजय सिंह; पूर्व सांसद, लोकसभा संदीप दीक्षित; पूर्व सांसद, लोकसभा अली अनवर; अध्यक्ष, अखिल भारतीय महिला कांग्रेस नेटा डी’सूज़ा; उपाध्यक्ष एआईडब्ल्यूए जगमती सांगवान; कवि, कथानटी सुमन केशरी; मराठी कवि एवं दलित चिंतक प्रज्ञा दया पवार; फ़िल्म निर्देशक जसपाल सिंह संधू; फ़िल्म कलाकार सुशांत सिंह; कवि, ऐक्टिविस्ट शुभा; फ़िल्म निर्माता पूजा भट्ट और चिंतक, संपादक, कवि हीरालाल राजस्थानी.
वैखरी की सफलता जनता की भागीदारी पर निर्भर करती है. पूरे आयोजन की नींव जनता की भूमिका पर टिकी हुए है. ऐसे में ज़रूरी है कि आम जनता, हमारे-आपके जैसे लोग इसमें शामिल हों, ताकि इस तरह के पब्लिक मॉडल पर आयोजित होने वाले स्वतंत्र कार्यक्रमों को बढ़ावा मिले.