आज (10 अक्टूबर) विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है और हम सभी जानते हैं कि मानसिक विकार एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जिस पर अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो संपूर्ण स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक असर हो सकता है. स्ट्रेस-एंग्जाइटी के साथ शुरू होने वाली यह दिक़्क़त धीरे-धीरे अवसाद का रूप ले सकती है. युवाओं में अवसाद की बढ़ती समस्या एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम है जिसको लेकर विशेषज्ञ चिंता जताते रहे हैं. सर्जना चतुर्वेदी बता रही हैं कुछ सामान्य मानसिक विकारों के बारे में और यह भी कि इनसे निपटने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है.
हमारा मानसिक स्वास्थ्य ही हमारे जीवन का निर्धारण करता है कि हम अपने जीवन को किस प्रकार व्यतीत करेंगे और किन परिस्थितियों में व्यतीत करेंगे इसीलिए किसी भी व्यक्ति का मानसिक तौर पर स्वस्थ होना उसके शारीरिक स्वास्थ्य से ज़्यादा ज़रूरी होता है. क्योंकि अगर व्यक्ति मानसिक रूप से सक्षम है, स्वस्थ है और उसकी दृढ़ शक्ति औसत से अधिक है तो वह शारीरिक कठिनाइयों के बावजूद अपने लक्ष्य की प्राप्ति आसानी से कर सकता है. वहीं जो शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बाद भी मानसिक रूप से अस्वस्थ है या अवसाद से घिरा है या फिर जिसमें दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी है वह जीवन में पीछे रह जाता है. लेकिन यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि हमारे समाज में जितनी शारीरिक स्वास्थ्य को वरीयता दी जाती है उतनी मानसिक स्वास्थ्य को नहीं दी जाती, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य की तो हमारे समाज में चर्चा भी नहीं की जाती.
आजकल की इस दौड़ती-भागती ज़िंदगी में हर कोई मानसिक दबाव से गुज़र रहा है लेकिन बहुत कम लोग ही इसे अहमियत देते हैं. इस अनदेखी के कारण वह मेंटल स्ट्रेस, डिप्रेशन, एंग्ज़ाइटी से लेकर हिस्टीरिया, डिमेंशिया, और कई तरह के फ़ोबिया का शिकार हो जाते हैं. दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य की महत्ता को समझाने के लिए आज के दिन यानी 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. इसका मक़सद ये है कि लोगों के बीच मानसिक दिक़्क़तों को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके.
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का इतिहास: विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस अथवा वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे को सर्वप्रथम 1992 में वर्ल्ड फ़ेडरेशन के मेंटल हेल्थ नाम की संस्थान ने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया था. इसे यूनाइटेड नेशन्स के उप महासचिव रिचर्ड हंटर और वर्ल्ड फ़ेडरेशन फ़ॉर मेंटल हेल्थ की पहल पर शुरू किया गया था. इस फ़ेडरेशन में 150 से अधिक देश शामिल थे. वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव यूजीन ब्रॉडी ने थीम के साथ इस दिन को मनाने का सुझाव दिया. इसके बाद से ही मानसिक स्वास्थ्य की महत्ता को समझाने के लिए हर साल 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मनाया जाता है. इस दिवस की पहली थीम थी “इंप्रूविंग द क्वालिटी का मेंटल हेल्थ सर्विसेज़ थ्रू आउट द वर्ल्ड” अर्थात वैश्विक स्तर पर मानसिक रोगियों को मिलने वाली मदद के ढांचे को सुधारना और बेहतर करना, ताकि किसी भी प्रकार के मानसिक रोगी को इलाज मिलने में किसी भी प्रकार की अड़चन न आए और उसे भी एक शारीरिक रोगी की तरह ही सामान्य रोगी समझा जाए और उन्हें बेहतर से बेहतर इलाज मुहैया कराया जा सके. इसी दिन वर्ष 2018 में यूनाइटेड किंगडम में पहले सुसाइड प्रीवेंशन मिनिस्टर भी नियुक्त किए गए थे, जिनका काम आत्महत्या की रोकथाम के लिए बेहतर नीतियां बनाना और उन पर कार्य करना था.
मानसिक स्वास्थ्य का हमारी इम्युनिटी पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है. जब हम तनावग्रस्त होते हैं, मानसिक अवसाद से ग्रसित होते हैं हमारे भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता भी क्षीण होती है. हाल के दिनों में तनावपूर्ण जीवनशैली और बदलते परिवेश के कारण हम अपनी सजगता खो बैठे हैं. अत: तनाव, चिंता, अवसाद को हमें जीवन से अनिवार्य रूप से ख़त्म करना ही चाहिए. जब हम ऐसी किसी तनावपूर्ण स्थिति का सामना करते हैं तो हमारा मस्तिष्क प्राथमिक तनाव हार्मोन कॉर्टिसोल स्रवित कर देता है और यह कोर्टिसोल हमारे पाचन, प्रतिरक्षा और नींद सहित शरीर में लगभग सभी आवश्यक प्रक्रियाओं बाधित कर सकता है. अत: हमें हमेशा ही मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सजग होना चाहिए. इसके लिए विभिन्न तरीकों से अपने जीवन को आयाम देना चाहिए और चिंता और तनाव को गुडबाय कहना चाहिए .
इस वर्ष की थीम: “मेंटल हेल्थ इज़ यूनिवर्सल ह्यूमन राइट’’ यह वर्ष 2023 के लिए विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम है, जिसका अर्थ है कि मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है. इस थीम को मनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य यही है कि लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाई जाए कि जिस प्रकार लोग अपनी आज़ादी के अधिकार के लिए लड़ाई करते हैं उसी प्रकार हमेंअपनी मानसिक स्वास्थ्य के प्रति धारणाओं को बदलने की लड़ाई करने की आवश्यकता है, क्योंकि हमारी आज़ादी से भी ज़्यादा ज़रूरी अगर कोई चीज़ है तो वह है हमारा मानसिक स्वास्थ्य. अगर हम मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं रहेंगे तो हम आज़ादी का उपयोग भी सही ढंग से नहीं कर पाएंगे. और हम सभी जानते हैं कि हमारे भारतीय समाज में मानसिक स्वास्थ्य को कैसी दृष्टि से देखा जाता है. यदि कोई व्यक्ति यह बोलता है कि वह अवसाद से पीड़ित है तो उसका समाज में मज़ाक बनाया जाता है. इसी विकृत मानसिकता से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए और मानसिक स्वास्थ्य को हमारे शरीर शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ही एक मूलभूत अधिकार के तौर पर स्थापित करने के लिए इस वर्ष की थीम को लाया गया है.
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रकार: डॉ नम्रता सिंह साइकोलॉजिस्ट एवं काउंसलर, लखनऊ, के अनुसार, हर मानसिक बीमारी को एक ही नज़र से नहीं देखा जा सकता मानसिक बीमारियां कई प्रकार की होती हैं और सभी का इलाज अलग ढंग से किए जाने की आवश्यकता होती है. हर मानसिक बीमारी डिप्रेशन या अवसाद नहीं होती है. आइए कुछ मुख्य मानसिक बीमारियों पर नज़रर डालें-
1. डिप्रेशन: डिप्रेशन या अवसाद एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जो सबसे ज़्यादा देखने को मिलती है. यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें हम दुखी महसूस करते हैं. कभी रोने का मन करता है, कभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं. कभी उदासी छा जाती है कभी शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होने लगती है. जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं लगता और सारी ख़राब स्थितियों के लिए इंसान ख़ुद को ज़िम्मेदार मानने लगता है. ज़िंदगी बोझिल बनने लगती है. इस परेशानी में कुछ लोगो का वज़न बढ़ने लगता है और कुछ का वज़न एकदम से कम होने लग जाता है. नींद की भी परेशानी होने लगती लगती है. कुछ को अधिक नींद आने लगती है और कुछमें नीद आना बहुत कम हो जाता है. किसी काम में मन नहीं लगता, किसी से बात करने का मन नहीं होता. हर वक़्त व्यक्ति नकारात्मक बातें सोचता रहता है. किसी भी काम में मन नहीं लग पाता. बाहर घूमना, पार्टी में जाना, खेल खेलने जैसी गतिविधियां बंद हो जाती हैं. थक हारकर कई बार आत्महत्या करने जैसी जैसी बातें भी दिमाग़ में आती हैं. उस इंसान को लगता है कि उसका जीवन व्यर्थ हो गया है और वो जीवन में अब कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएगा. डिप्रेशन या तनाव से राहत पाने के लिए लोग कई बार शराब का सेवन भी शुरू कर देते हैं. अवसादग्रस्त लोगों के शराब पीने की आशंका अधिक होती है. दीर्घकालिक तौर पर ये रोग के निदान में देरी का कारण बन सकती है. डिप्रेशन बीमारी की शुरू होने की उम्र 15 से 30 साल की मानी जाती है इसलिए 15 से 30 साल के महिला और पुरुषों को अपने मानिसक स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देना चाहिए.
2. स्किज़ोफ़्रेनिया: स्किज़ोफ़्रेनिया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें व्यक्ति को सही और गलत का अंतर समझने में परेशानी होती है. इसमें व्यक्ति कुछ कुछ ऐसी चीज़ें देखता है और सुनता है, जो किसी दूसरे व्यक्ति को दिखाई या सुनाई नहीं पड़ता. ऐसे लोग अपनी भावनाओं को सही ढंग से व्यक्त नहीं कर पाते हैं, ऐसी बातें सोचते या बोलते हैं जो सच नहीं होती या बेकार की होती हैं. इस बीमारी में लोग घर के अंदर रहना पसंद करते हैं, कमरे में अंदर रहना उन्हें अच्छा लगता है. लोगों से घुलना-मिलना बिलकुल पसंद नहीं करते हैं और दूसरे लोगों पर शक करते हैं कि लोग उनके ख़िलाफ़ है और नुकसान पहुंचाना चाहते है .
3. एंग्ज़ाइटी: ये एक ऐसी अवस्था है, जिसमें इंसान को भविष्य की किसी चीज़ को लेकर बहुत ज़्यादा चिंता और डर होने लग जाता है, जिसके कारण शरीर में परिवर्तन होने लग जाते हैं, जैसे – पेट ख़राब रहना, सांस लेने में परेशानी होना, घबराहट होना, जल्दी ग़ुस्सा आना, मुँह सूखना, अपने रोज़ के कामों को ठीक से न कर पाना. कुछ लोगों में एंग्ज़ाइटी अटैक भी देखा जाता है, जिसमें व्यक्ति कुछ समय के लिए बहुत ज़्यादा डर जाता है. ज़्यादा डर महसूस करने के चलते कई बार ठीक से वो कोई काम नहीं कर पाता और असहाय महसूस करता है.
4. ओसीडी: इस बीमारी में हमारे दिमाग़ में कुछ विचार या तस्वीरें जो हमें परेशान करती है वो चलती रहती हैं जिस के कारण तनाव महसूस होने लग जाता है. इस अवस्था को ऑब्सेशन कहते हैं और इस तनाव को कम करने के लिए हम कुछ ऐसी आदतें विकसित कर लेते हैं, जिससे हम इस तनाव से दूर हो सकें, लेकिन तनाव कम करने के प्रयास में हम एक नई परेशानी में फंस जाते हैं, जिसे इसे कम्पल्शन कहते हैं, जैसे – गंदगी का एहसास करके बार-बार अपना हाथ धोना, असुरक्षा और डर की भावना को कम करने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा बार दरवाज़े के तालों को देखना कि ठीक से बंद है कि नहीं, किसी डर को दूर करने के लिए अपने मन में कुछ विशेष बातों या नम्बरों को दोहराना आदि.
कैसे पहचानें मानसिक रोग: विशेषज्ञों के अनुसार मानसिक बीमारियों के कुछ शुरुआती लक्षण इस प्रकार हैं-
खाने की आदतों में परिवर्तन- डिप्रेशन की स्थिति में व्यक्ति की डायट प्रभावित होती है. भूख न लगना, डिप्रेशन या अवसाद का एक शुरुआती लक्षण हो सकता है या तो वे बहुत ज़्यादा खाने लगते हैं या बिल्कुल कम खाने लगते हैं.
मूड स्विंग- डिप्रेशन या तनाव में लोगों के साथ अक्सर मूड स्विंग की समस्या होती है यानी बहुत जल्दी-जल्दी उनका मूड बदल जाता है. इसमें न केवल मनोदशा में नाटकीय बदलाव होता है, बल्कि समग्र दृष्टिकोण, व्यवहार और ऊर्जा स्तर में भी बदलाव देखने को मिलता है. कई बार ऐसे लोगों का मूड इस क़दर तेज़ी से बदलता है कि उन्हें घबराहट के दौरे तक पड़ने शुरू हो जाते हैं.
थकान महसूस करना- हर समय थकान होना भी अवसाद और तनाव का एक गंभीर लक्षण हो सकता है. डिप्रेशन और क्रॉनिक फ़ैटिग सिंड्रोम किसी को बहुत ही थका हुआ महसूस करा सकता है, यहां तक कि रात की अच्छी नींद के बाद भी. कमज़ोरी या थका हुआ महसूस करना भी डिप्रेशन के लक्षण हैं.
नींद के पैटर्न में बदलाव- डिप्रेशन का हमारी नींद से बहुत गहरा संबंध है. डिप्रेशन के कारण नींद की समस्याएं हो सकती हैं. कुछ लोगों को नींद नहीं आती या फिर बहुत नींद बहुत आती है.
आत्मविश्वास में कमी- डिप्रेशन का सामना कर रहे लोगों का आत्मविश्वास बहुत कम हो जाता है और वे अक्सर अपनी ही आलोचना करने लगते हैं. इसके अलावा निराशावादी हो जाते हैं. बीते समय में जो हुआ अक्सर उन बातों को याद करके ख़ुद को कोसते हैं, उनमें तनाव और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है.
बेवजह रोते रहना- डिप्रेशन में महिलाओं के चेहरे पर उदासी तो रहती ही है साथ ही बिना कारण वह रोने भी लगती हैं. इसके अलावा ख़ुद को किसी चीज़ के लिए दोषी भी महसूस करती हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि वह कुछ भी नहीं हैं या कुछ भी नहीं कर सकती हैं.
मानसिक विकार व तनाव मुक्त रहने के सरल उपाय:
• दिनचर्या व्यवस्थित रखें
• सकारात्मक सोच रखें
• कामों को सूचीबद्ध तरीक़े से करें
• अकेले रहने से बचें
• नियमित व्यायाम करें और सुबह शाम टहलें
• अपनी बात कहने की आदत डालें
• कुछ समय अपने आप को दें
• अपनी पुरानी अभिरुचियों को पुनर्जीवित करें
मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और परिवार: जीवन में अगर अपनों का साथ हो तो इंसान हर मुश्किल से लड़ सकता है. यह बात डिप्रेशन या किसी भी अन्य मानसिक स्वास्थ्य की समस्या पर भी लागू होती है, क्योंकि अक्सर लंबे समय तक अवसाद में रहने वाले व्यक्ति अपने आसपास के लोगों और परिजनों से दूरी बना लेते हैं. अपने मन में चल रही उधेड़बुन को किसी के संग साझा नहीं करते हैं. ऐसे में कई बार जब उन्हें कोई रास्ता नहीं समझ आता है तो वह आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लेते हैं या फिर ख़ुद को गंभीर चोट पहुंचा लेते हैं. कई बार घर छोड़कर चले जाते हैं.
अत: सर्वप्रथम तो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने की ज़रूरत है. परिवार में ऐसा सकारात्मक माहौल बनाने की आवश्यकता होती है, जहां चाहे बच्चा हो या बड़ा हर कोई अपने मन की बात को एक-दूसरे से खुलकर कह सके. यह काम जनजागरण, व्यापक जागरूकता और संवेदनशीलता अभियानों के माध्यम से किया जा सकता है. इसमें सरकार, सामाजिक संगठनों और नागरिक समाज के प्रमुख व्यक्तियों की निर्णायक भूमिका होगी. इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य ढांचे के विकास की भी महती आवश्यकता है. यह तभी संभव है जब इसमें पर्याप्त निवेश किया जाए. जीवनशैली और सामाजिक मूल्यों में भी व्यापक बदलाव अपेक्षित है. योग, ध्यान, प्राणायाम जैसी क्रियाएं भी मानसिक स्वास्थ्य में बेहद कारगर साबित हो रही हैं. इनसे मन की शांति के साथ साथ ऊर्जा स्तर में बढ़ोत्तरी होती है व बेहतर निर्णय क्षमता का विकास भी होती है.
नोट: यदि आपको, आपके किसी परिजन या दोस्त को मानसिक स्वास्थ्य के चलते मदद की ज़रूरत है तो हमारी सलाह होगी कि आप चिकित्सकीय परामर्श ज़रूर लें.