‘भारत में दलित, भारत के दलित’ श्रृंखला में आज सामाजिक चिंतक, लेखक और दयाल सिंह कॉलेज, करनाल के पूर्व प्राचार्य डॉ रामजीलाल बात कर रहे हैं अपने गृह राज्य हरियाणा में वंचित जातियों के बारे में. इस लेख में वे न केवल 2011 की जनगणना के आधार पर दलितों की ज़िलेवार संख्या बता रहे हैं, बल्कि उनमें साक्षरता दर की भी पड़ताल कर रहे हैं. उन्होंने शिक्षित होते दलित वर्ग और अगड़ी जातियों के समीकरण पर भी बात शुरू की है.
हरियाणा में सामाजिक संरचना एवं विभिन्न जातियों के संख्या के बारे में बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार, हरियाणा की जनसंख्या 2.54 करोड़ है. यह जनसंख्या विभिन्न धर्मों और जातियों में विभाजित है. हरियाणा में राजनीतिक दलों के नेताओं तथा अभिजात्य वर्ग के द्वारा बार-बार 36 बिरादरी की बात दोहराई जाती है. परंतु हम इन बुद्धिमान लोगों को यह बताना चाहते हैं कि हरियाणा में 36 बिरादरी नहीं अपितु 134 बिरादरी हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में हिंदू (87.46%), मुस्लिम (7.03%), सिख (4.91%), जैन (0.21%), ईसाई (0.21%), बौद्ध (0.3%) व (0.1%) अन्य धर्मों के अनुयायी रहते हैं. यह धर्म आगे विभिन्न जातियों और उप जातियों में विभाजित हैं.
क्या कहते हैं हरियाणा में दलित वर्ग के आंकड़े?
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में दलित वर्ग की आबादी लगभग 20% है. जबकि समस्त भारत में राष्ट्रीय स्तर पर औसतन दलित आबादी 16.2% है. दलित आबादी के दृष्टिकोण से भारतवर्ष में हरियाणा का पांचवां स्थान है. हरियाणा की 134 बिरादरी में दलित जातियों की संख्या 37 है तथा पिछड़े वर्ग की जातियों की संख्या 78 (ग्रुप ए में 72 तथा ग्रुप बी में 6) है. जातीय जनसंख्या के आधार पर हरियाणा में जाट जाति की संख्या कुल आबादी का लगभग 25% है जबकि अनुसूचित जातियों की संख्या 20 % है . परिणाम स्वरूप अनुसूचित जातियां हरियाणा में दूसरे स्थान पर हैं. इस दृष्टिकोण से बाक़ी जातियों की संख्या 19 है. हरियाणा में विभिन्न जातियों और धर्म, जनसंख्या, संपत्ति, शिक्षा, नौकरी, लिंग इत्यादि के आधार पर बहुत अधिक अंतर पाया जाता है. सन 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में अनुसूचित जातियों की संख्या 51,13,615 की थी. इनमें वाल्मीकि/मजहबी/ मजहबी सिक्ख की संख्या 10,79,685 धानक समुदाय की 5,81272 और चमार समुदाय की संख्या 24,29137 थी. चमार तथा वाल्मीकि तथा धानक जातियों के अतिरिक्त बाकी शेड्यूल कास्ट जातियों की संख्या लगभग 12 लाख है.
हरियाणा में दलित आबादी का प्रतिशत: ज़िले से गांव तक
हरियाणा के दलित आबादी में भी प्रत्येक ज़िले, तहसील और गांव में संख्या के आधार पर अंतर पाया जाता है. 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में दलित आबादी का 78. 5 प्रतिशत गांव में रहता है. एक दलित को हिंदू अथवा सिख धर्म में आस्था रखने वाला होना चाहिए (भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पत्र क्रमांक नंबर 35/1/72 आर यू एस सी टी दिनांक अप्रैल 1976).
हरियाणा में 22 ज़िले हैं और इनमें सर्वाधिक दलित आबादी वाले चार ज़िले हैं जिनमें 30.19 % से लेकर 25.26% दलित आबादी रहती है. यह चार ज़िले सिरसा (30.19%), फ़तेहाबाद (29. 91%), अंबाला (26 . 25%) और यमुनानगर (25. 26%) हैं. 40% से अधिक दलित आबादी वाले हरियाणा में 843 गांव हैं तथा असंख्य गांव ऐसे भी हैं जिनमें दलित आबादी 90% से अधिक है. उदाहरण के तौर पर अंबाला ज़िले में चुगा या चुगना गांव में 99.83 %, चांदपुरा गांव में 99.83%, टोलावली में 99.4 7%, कैथल ज़िले में ठेहवाहरी में 90.23%, भिवानी ज़िले में नगीन ख़ुर्द में 90% तथा औरंगनगर में 90%, पलवल ज़िले में अकबरपुनाटोल में 94. 29 %, करनाल ज़िले में घिसरपड़ी में 96. 97%, रेवाड़ी ज़िले में दूल्हेराकलां गांव में 98% फरीदाबाद में फुलेरा गांव की आबादी 94 .79 प्रतिशत है तथा एक दर्जन से अधिक गांवों की दलित आबादी 100 % है. 100 प्रतिशत दलित आबादी वाले गांव यमुनानगर और अंबाला ज़िलों में हैं. यमुनानगर ज़िले के गुलापुर, खानपुरी व शबुदीनपुर कलां में 100% दलित आबादी है.
हरियाणा में दलित साक्षरता दर और राजनैतिक चेतना
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में कुल साक्षरता दर 76.60 % थी जो 2019 में बढ़कर 85.38 % हो गई. जबकि हरियाणा के अनुसूचित जाति वर्ग की साक्षरता दर सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 56.91% , महिला साक्षरता दर 48.8% तथा उच्च शिक्षा दर 2.3% थी. अन्य शब्दों में लगभग 43% पुरुष तथा 52% महिलाएं दलित महिलाएं और पुरुष निरक्षर थे. यद्यपि हरियाणा में उच्च शिक्षा का सुधार हो रहा है, परंतु सन 2011 की जनगणना के अनुसार 2.3% अनुसूचित जातियों की संख्या ही उच्च शिक्षा प्राप्त थी अर्थात 97.7% अनुसूचित जाति के युवा और युवतियां उच्च शिक्षा से वंचित थे. आर्थिक मजबूरियां इसका मुख्य कारण हैं. अनपढ़ता के कारण अनुसूचित जातियों के पुरुषों, महिलाओं और युवाओं और युवतियों को आर्थिक व राजनीतिक मुद्दों का ज्ञान ना होना एक अभिशाप है. परिणाम स्वरूप राजनीतिक चेतना के अभाव में दलित वर्ग का शोषण जारी है और क्योंकि जब तक दलित वर्ग की साक्षरता नहीं बढ़ेगी तब तक यह शोषण जारी रहेगा. इसलिए दलित वर्गों के युवाओं और युवतियों का शिक्षित होना अति आवश्यक है ताकि वे संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए मांग करें और संघर्ष करने का संकल्प लें.
दलितों की स्थिति में सुधार, फिर भी क्यों बढ़ रहे हैं उनपर अत्याचार?
हरियाणा में भी दलितों के साथ जन्म से मृत्यु तक–श्मशान घाट तक भेदभाव होता है. वर्तमान शताब्दी में दलितों के विरुद्ध हिंसा, अत्याचार एवं मानवीय व्यवहार एवं शोषण मामले, घरों को जलाना, जान से मारना व जि़ंदा जलाना, महिलाओं व युवतियों के साथ बलात्कार व सामूहिक बलात्कार, अभद्र व्यवहार, जाति सूचक गालियां, सामाजिक बहिष्कार, घर व गांव छोड़ने पर मजबूर होना, अपहरण (किडनैप) करना, चोट पहुंचाना, लूटना इत्यादि की वारदातें सामान्य बात हैं. हम हर रोज़ ‘वसुधैव कुटुंबकम’ अथवा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ अथवा ‘हरियाणा एक हरियाणवी एक’ इत्यादि नारे लगाते हैं, परंतु जिस तरीक़े से दलितों के विरुद्ध अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं, उससे प्रतीत होता है की यह नारे बिल्कुल खोखले और अर्थहीन हैं.
आरक्षण के परिणाम स्वरूप दलित वर्ग के बच्चे पढ़ लिख कर सरकारी नौकरियों में प्रवेश कर गए और उनके रहन-सहन, पोशाक तथा अन्य सुविधाओं में परिवर्तन आया. उनके पास तथाकथित उच्च वर्गों की भांति मोटरसाइकिलें, कारें, बढ़िया मकान, बेहतरीन पोशाक इत्यादि के कारण समाज में सम्मान बढ़ने लगा. परंतु यह तथाकथित उच्च वर्गों को सहन नहीं होता, यही कारण है कि वे छोटी-छोटी बातों पर कुंठित भावना और मानसिक रुग्णता के कारण दलितों पर जानलेवा हमला कर देते हैं तथा उनकी महिलाओं और बच्चियों के साथ मानवीय व्यवहार करते हैं. जातिवादी वर्ण व्यवस्था, दलित विरोधी आपराधिक रुग्ण मानसिकता, नौकरशाही व पुलिस का दलितों व दलित महिलाओं, सामान्य महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के विरुद्ध बढ़ता निरंतर दृष्टिकोण, वर्तमान में मुसलमानों और दलितों के विरुद्ध नफ़रती के भाषणों में वृद्धि, समाचार पत्रों व राष्ट्रीय मुख्य धारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा दलितों पर होने वाले अत्याचारों को प्रकाशित न करना अथवा अवहेलना करना और उधर दूसरी ओर ‘हेट स्पीच’ देने वाले लोगों के द्वारा मास मीडिया के साधनों का प्रयोग करके नफ़रत को बढ़ाना, पुलिस के द्वारा केस पंजीकरण करने में आनाकानी करना, शोषक की बजाए पीड़ितों को सताना और शोषण कर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही न करने के कारण दलित विरोधियों का हौसला बढ़ाना, दलित के विरुद्ध अत्याचार अथवा घिनौनी बात करता करने वाले को सजातिय लोगों के द्वारा उसका समर्थन करना इत्यादि दलितों के प्रति अमानवीय व्यवहार के मुख्य कारण हैं. वर्तमान संदर्भ में मूल कारण है कि जैसे-जैसे दलित युवा समाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रो में उन्नति करते चले जाएंगे उसी अनुपात में तथाकथित स्वर्ण जातियां परंपरागत दृष्टिकोण के आधार पर उनसे नफ़रत करती चली जाएंगी.
संदर्भ:
haryana-scbc.govt.in/information/list-of-scheduled-castes
डॉ. रामजीलाल, वंचित अनुसूचित जातियों के संदर्भ में डॉ भीमराव अंबेडकर का दर्शन: एक पुनर्विचार व वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता https://samajweekly.com/dr-bhimrao-ambedkar-in-the-context-of-deprived-scheduled-castes/
फ़ोटो साभार: द प्रिंट और एसबीएस डॉट कॉम डॉट एयू / फ़ोटो का इस्तेमाल महज़ आरेखन के लिए किया गया है.
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में हम दलितों के ख़िलाफ़ होनेवाले अत्याचारों की कुछ घटनाओं का ज़िक्र करते हुए बताने की कोशिश करेंगे कि सरकार व प्रशासन का इन घटनाओं पर क्या रवैया होता है?