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जानिए, कौन है वो शख़्सियत जिसके चलते हम मनाते हैं फ़ादर्स डे

क्या आपको पता है कि क्यों मनाया जाता है फ़ादर्स डे?

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
June 16, 2024
in ओए हीरो, शख़्सियत
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जानिए, कौन है वो शख़्सियत जिसके चलते हम मनाते हैं फ़ादर्स डे
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जब से इंटरनेट आया है, परिवहन के साधन उन्नत हुए हैं, पूरा विश्व जैसे एक ग्लोबल गांव में तब्दील हो गया है. लोगों के बीच, देशों के बीच, उनके त्यौहारों के बीच दूरियां कम हो गई हैं. इसी क्रम में विदेशों में प्रचलित किसी दिन को किसी विशेष रिश्ते या किसी उद्देश्य के लिए समर्पित कर उसे ख़ास बनाने की मुहिम हमारे देश भी पहुंच गई. आज फ़ादर्स डे के दिन अशोक पांडे के इस आलेख को पढ़कर जानें कि आख़िर क्यों मनाया जाता है आज के दिन फ़ादर्स डे. और हां, यह आकलन करना न भूलें कि क्या आप फ़ादर्स डे मनाने लायक़ हैं?

पुरुषों की शराब और जुए की लत के शिकार परिवारों की दुखभरी कथाएं मेरे पहाड़ के हर गांव-गली-मोहल्ले में फैली हुई हैं. संभवतः देश-दुनिया की अधिकतर जगहों में ऐसी कहानियों की इफ़रात पाई जाती होंगी. इसके सबसे बड़े शिकार बच्चे बनते हैं या उनका ध्यान रखने वाली बहनें-मांएं-बीवियां. कभी-कभी सिस्टम इस बात से पसीजने का नाटक करता है और शराब पर बैन लगा देता है. समूचे भारत में यह बैन पिछली दफ़ा वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर लगा था, जो कुछ माह चलने के बाद निबट गया. कहने को तो आज भी देश की चुनिन्दा जगहों पर शराब पीना-बेचना गैरक़ानूनी है लेकिन ऐसे प्रतिबंधों का कितना-कैसा प्रभाव पड़ता है यह एक अलग विषय है.

अमेरिका में शराब के चलन से परेशान आबादी उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत से ही ऐसे प्रतिबन्ध की मांग करती आ रही थी. क़रीब एक सौ बीस साल के आन्दोलनों के बाद वर्ष 1919 में अमेरिका में शराब पीना-बेचना अपराध घोषित किया गया. यह प्रतिबन्ध तेरह-चौदह साल तक चला. इस क़ानून से समाज को कितना फ़ायदा पहुंचा यह ठीकठाक नहीं कहा जा सकता, अलबत्ता अवैध शराब की तस्करी में अभूतपूर्व उछाल आया और अल कैपोन जैसा कुख्यात अपराधी पैदा हुआ.

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मालूम हो कि वर्ष 1890 और वर्ष 1900 के दो दशकों में शराब की लत ने अमेरिका के पुरुषों की बड़ी आबादी को अपनी गिरफ़्त में लिया हुआ था. थोड़ी सी भी परेशानी होती तो आदमी बोतल की तरफ़ भागता था. उब दिनों के “एवरीबडी वर्क्स बट फ़ादर” जैसे प्रचलित लोकगीतों में अक्सर नाकारा बाप के घर लौटने का इंतज़ार कर रहे बच्चों-महिलाओं की छवियों का प्रयोग किया जाता था.

ठीक ऐसे ही माहौल में वर्ष 1898 में जब विलियम स्मार्ट की दूसरी बीवी एलेन का देहांत हुआ तो परिवार में छः बच्चे थे. सबसे छोटा थॉमस सात बरस का था, जबकि सबसे बड़ी सोनोरा सोलह की. विलियम और एलेना अपने विवाह से पहले शादीशुदा रह चुके थे और उन विवाहों से दोनों के तीन-तीन बच्चे और थे. इस तरह एक दर्ज़न संतानों का पूरा ज़िम्मा एक तरह से अकेले विलियम के ऊपर आ गया.

रिटायर्ड सिपाही विलियम के सामने निराश हो जाने और शराबी बन जाने का आसान रास्ता था, लेकिन उसने अपने आप को एक साथ इस बच्चों की मां और पिता दोनों बना लिया और सारा जीवन उन्हें सलीके से पालने में लगाया.

पिता की मेहनत का फल था कि सारे बच्चे ठीक से पढ़-लिख कर अपने-अपने ठिकानों से लगे. सोनोरा ने एक कवि, कलाकार, फ़ैशन डिज़ाइनर और व्यवसायी के तौर पर जीवन में ख़ूब सफलता हासिल की. उसे बार-बार उस दिन की याद आती थी, जब उसकी मां को दफ़नाया गया था. सारे बच्चे उदास थे. मार्च का ठंडा महीना चल रहा था, जब रात को उसका सबसे छोटा भाई मां-मां कहता हुआ घर के बाहर चला गया. पिता उसे अपनी गोदी में उठाकर वापस लाए और आग की बगल में अपनी गोदी में उसे धरे-धरे तब तक लोरियां सुनाते रहे, जब तक की वह सो नहीं गया.

सोनोरा स्मार्ट ने अपने पिता को हमेशा मज़बूत और कर्तव्यनिष्ठ पाया. उसने देखा कि मां की मौत के बाद उन्होंने उन तमाम नई ज़िम्मेदारियों को अपने कन्धों पर लिया, जो अकेले बाप पर आ जाती हैं. उसे पिता का साहस और निस्वार्थ समर्पण भी याद रहा.

उसने बहुत सालों बाद एक इंटरव्यू में कहा था, “मेरे पिता ने हम सब भाई-बहनों को जड़ें भी दीं और पंख भी.”

वर्ष 1905 कोअमेरिका में मदर्स डे मनाये जाने की शुरुआत हुई. इस घटना से प्रभावित होकर सोनोरा ने स्थानीय चर्च में अपने पिता के सम्मान में फ़ादर्स डे मनाए जाने की मांग की. 1910 में उसकी बात मान ली गई. कुछ साल स्थानीय स्तर पर इसे मनाया गया पर जल्द ही सरकार ने हर साल जून के तीसरे इतवार को इसे मनाए जाने को स्वीकृति दे दी. और अब यह एक विश्वव्यापी उत्सव है.

आज के दिन पर कोई गुलदस्ता या उपहार या शुभकामना लेते-देते समय सोनोरा और विलियम स्मार्ट की ख़ूबसूरत और जीवटभरी कहानी को ज़रूर याद करें और ख़ुद को उनके आईने के सामने खड़ा कर यह भी परखें कि आप इस दिन को मनाने लायक इंसान बने हैं भी या नहीं?

फ़ोटो: फ्रीपिक

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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