हमने पहले भी इस बारे में चर्चा की थी कि क्या खानपान का सेक्शुल इच्छाओं से कोई संबंध है? पर इस बार तो हम सीधे आपसे सही पूछ रहे हैं कि क्या आपको लगता है कि आपके नाश्ते का मैस्टर्बेशन यानी हस्तमैथुन से कोई संबंध है? आप भले ही जवाब न दे पाएं, पर इस दुनिया में कई लोग, जिन्हें सेक्स-फ़ोबिक कहा जा सकता है, उन्हें लगता है कि ऐसा है! आज हम खानपान और सेक्स के इसी ‘कनेक्शन’ पर बात कर रहे हैं.
हम में से कई लोग अपने नाश्ते, जैसे- इडली, डोसा और परांठा को मैस्टर्बेशन से जोड़कर नहीं देखेंगे, लेकिन यक़ीन मानिए कॉर्न फ़्लेक्स की खोज करनेवाले जॉन हार्वी केलॉग्स ने बिल्कुल यही सोचा.
इस 19वीं सदी के अमेरिकी डॉक्टर और ऑन्त्रप्रनर ने कॉर्न फ़्लेक्स की खोज ही इस दिमाग़ में इस मुख्य उद्देश्य को लेकर की: ताकि वह किशोर और वयस्क महिला-पुरुषों को मैस्टर्बेशन के ‘‘पाप’’ से बचा सके.
केलॉग्स को भरोसा था कि कॉर्न फ़्लेक्स जैसा बिना मसालेवाला (बेस्वाद!) खाना तरुणवयी युवक-युवतियों के सेक्शुअल जुनून को क़ाबू में रखने के लिए आदर्श रहेगा. आपको बता दें कि ऐसी सोच रखनेवाला केलॉग एक अकेला अमेरिकी ऑन्त्रप्रनर नहीं था. सिल्वेस्टर ग्राहम, जिसने लोकप्रिय अमेरीकी स्नैक, ग्राहम क्रैकर्स को बनाया, उसके दिमाग़ में भी इसी तरह का उद्देश्य था.
दहशत मैस्टर्बेशन की
दरअसल, 19वीं सदी में अमेरिका में मैस्टर्बेशन को लेकर इतनी घबराहट और हर का माहौल था कि कई जल्दी धनवान बननेवाले ऑन्त्रप्रनर्स कई पेटेन्ट उपकरणों के साथ आए, जिनका वादा था कि उनके उपकरण बच्चों को अपने जननांग छूने से रोकेंगे. ऐसा ही एक पिंजरेनुमा यंत्र था, जिसे लड़कों के पीनिस (शिश्न) और स्क्रोटम (अंडकोश) के बीच स्प्रिंग से बांधा जाता था, ताकि जब भी इरेक्शन हो तो अलार्म उसके माता-पिता को इस बात के लिए सतर्क कर दे.
जहां तक केलॉग की बात है तो सेक्शुअल आनंद के प्रति उनका धर्मयुद्ध केवल कॉर्न फ़्लेक्स की खोज तक ही सीमित नहीं रहा. उन्होंने ख़ुद पर इस बात का बोझ भी ले लिया कि वे माता-पिता को इस बात के निर्देश दें कि वे अपने बच्चों को सेक्स का आत्म-आनंद से कैसे रोकें.
ये मुकर्रर हुई सज़ा
अपनी बेस्ट सेलिंग किताब ‘प्लेन फ़ैक्ट्स फ़ॉर ओल्ड ऐंड यंग’ में उन्होंने माता-पिता को सलाह दी कि अपने छोटे लड़कों का खतना (सर्कम्सिशन) करवाएं, वो भी ऐनैस्थीसिया दिलवाए बिना. उनका मानना था कि इससे लड़के मैस्टर्बेशन नहीं करेंगे.
‘‘इस क्रिया में होनेवाला थोड़ा दर्द उनके मन पर यह हितकारी प्रभाव पड़ेगा, ख़ासतौर पर तब, जब इसे उनके सामने किसी दंड की तरह पेश किया जाए…,’’ केलॉग किसी परपीड़क की सी प्रसन्नता के साथ लिखते हैं.
वे पैरेंट्स जो उनके इस अति वाले सुझाव को नहीं मानना चाहते थे, उनके लिए केलॉग के पास एक ‘आसान’ विकल्प था: अपने बच्चे के पीनिस को उसकी फ़ोरस्किन के साथ सिल दीजिए.
और यदि आपको लगता है कि केलॉग केवल युवकों को ही प्रताड़ित करने में दिलचस्पी रखते थे तो आपको बता दूं कि अपनी किताब में उन्होंने छोटी लड़कियों को ख़ुद को छूने से रोकने के लिए सलाह दी थी: उनके क्लिटरिस पर कार्बोलिक ऐसिड लगा दिया जाए.
पूर्वाग्रह दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं
अमेरिका में केलॉग और उनके जैसे अन्य सेक्स-विरोधी ध्वजावाहक इस बात का अच्छा उदाहरण हैं कि कैसे धार्मिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह फ़िज़िशन्स और ऑन्त्रप्रनर्स के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकते हैं.
केलॉग सेवन्थ डे ऐड्वेंटिस्ट को मानते थे, जो हर तरह की सेक्शुअल गतिविधियों और संबधों से परहेज़ करते हैं यहां तक कि शादीशुदा, विषमलैंगिक जोड़ों के बीच के संबंधों से भी.
क्या केलॉग का कोई भारतीय समकक्ष व्यक्ति भी है? वीवॉक्स क्लिनिक में आया एक सवाल यह भी था. हमने वीवॉक्स के एक्स्पर्ट और सेक्शुअल मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर नारायण रेड्डी के सामने यह सवाल रखा, जिन्हें सेक्शुअल हेल्थ पर 5000 घंटों के शिक्षण और ट्रेनिंग का अनुभव भी है.
विशेषज्ञ कहते हैं
डॉक्टर नारायण रेड्डी का कहना है,‘‘यूं तो केलॉग के समकक्ष किसी भारतीय व्यक्ति को ढूंढ़ पाना कठिन है, लेकिन कामेच्छा को कम करनेवाली डायट भारतीय परंपरा का हिस्सा ज़रूर रही है.’’
वे आगे कहते हैं,‘‘ उदाहरण के लिए, सात्विक भोजन, जिसमें लहसुन, प्याज़, मसालों का इस्तेमाल नहीं होता था और जो आयुर्वेदिक सिद्धांतों पर आधारित शाकाहारी भोजन होता था, जिसका उद्देश्य सामान्य रूप से कामेच्छा को कम करना ही था. इसमें मैस्टर्बेशन को रोकने का कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता है. छन्दोग्य उपनिषद के अनुसार सात्विक भोजन करने से मन शुद्ध होता है और हमारी शुद्ध चेतना का हिस्सा बन जाता है. “आहार शुद्धौ सत्त्व शुद्धि:” (7.26.2) के अनुसार शुद्ध मन वाले लोग शुद्ध सात्विक भोजन पसंद करते हैं. इसके साथ ही पूरे प्राचीन भारतीय साहित्य में चुनिंदा भोजन और संयम के साथ भोजन करने पर भी काफ़ी ज़ोर दिया गया है.’’
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट