देसी अंदाज़ में दुनिया की बात करनेवाले कवि रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की कविता दुनिया मेरी भैंस कुछ स्वार्थी लोगों द्वारा समाजिक समरता को बिगाड़ने की चालबाज़ी की ओर इशारा करती है.
मैं अहीर हूं
और ये दुनिया मेरी भैंस है
मैं उसे दुह रहा हूं
और कुछ लोग कुदा रहे हैं
ये कउन (कौन) लोग हैं जो कुदा रहे हैं?
आपको पता है
क्यों कुदा रहे हैं?
ये भी पता है
लेकिन एक बात का पता
न हमको है न आपको न उनको
कि इस कुदाने का क्या परिणाम होगा
हां …इतना तो मालूम है
कि नुक़सान तो हर हाल में ख़ैर
हमारा ही होगा
क्योंकि भैंस हमारी है
दुनिया हमारी है!
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