शुगर यानी डायबिटीज़ के रोगियों की टेंशन तब बढ़ जाती है, जब कोई उन्हें स्टार्च खाने कहे, लेकिन डॉक्टर दीपक आचार्य की सलाह है कि यदि आपके ख़ून में शक्कर है तो भई, घुइयां खाना शुरू करें. अब आपकी ‘क्यों?’ के जवाब में ही तो उन्होंने यह पूरा आलेख लिख डाला है. इसे पढ़िए और जानिए कि आख़िर अरबी/घुइयां खाने के क्या फ़ायदे हैं!
क्या आपके ख़ून में शक्कर है? तो भई, घुइयां खाना शुरू करें. वैसे सामान्यत: स्टार्च का नाम सुनते ही शुगर के रोगियों की टेंशन बढ़ जाती है. स्टार्च कंज़्यूम करने की सोचकर ही, जिन्हें घबराहट होती है उन्हें घुइयां के बारे में लिखी इस जानकारी को ज़रूर पढ़ना चाहिए. हिंदी भाषी इलाकों में इसे अरबी कहते हैं तो अंग्रेज लोग इसे टारो कहते हैं और दुनियाभर में इसे Colocasia esculenta कहा जाता है.
क्या पाया जाता है घुइयां में?
घुइयां ख़ूब सारे स्टार्च से भरे होते हैं. इसमें दो तरह के कार्बोहाइड्रेट्स पाए जाते हैं. एक होते हैं फ़ाइबर्स और दूसरे होते हैं रेसिस्टेन्ट स्टार्च… और ये दोनों कार्बोहाइड्रेट्स ब्लड शुगर की नकेल कसने के लिए बेहद आवश्यक माने जाते हैं. फ़ाइबर्स और रेसिस्टेंट स्टार्च के बारे में मैंने पहले भी बताया था (यह कच्चे केले और पपीते में भी पाया जाता है) और आज भी बता रहा हूं, ये दोनों कार्बोहाइड्रेट्स हमारे शरीर में जाकर पच नहीं पाते हैं, इन्हें हमारे शरीर सोख नहीं सकता है इसलिए इनका कोई भी असर ब्लड शुगर के स्तर को प्रभावित नहीं करता. रेसिस्टेन्ट स्टार्च भले ही हमारे काम का ना हो, पर हमारे शरीर के भीतर पल रहे उन सूक्ष्मजीवों के लिए भोजन स्रोत बनता है, जो हमारा पाचन को दुरुस्त करते रहते हैं.
ये ब्लड शुगर के रोगियों के लिए ख़ास कैसे है?
घुइयां में फ़ाइबर्स और रेसिस्टेन्ट स्टार्च की अधिकता इसे ब्लड शुगर के रोगियों के लिए ख़ास बनाती है, ख़ासतौर से टाइप 2 डायबिटीज़ के रोगियों के लिए. घुइयां के फ़ाइबर्स और रेसिस्टेन्ट स्टार्च अन्य कार्बोहाइड्रेट्स के डाइजेशन के प्रोसेस को भी कमज़ोर कर देते हैं, जिससे खाना खाने के बाद तेज़ी से बढ़ने वाले ब्लड शुगर पर क़ाबू पाने में काफ़ी मदद मिलती है. यहां एक रिव्यू रिसर्च आर्टिकल का जिक्र करना बेहद ज़रूरी है. ब्राज़ील के एक बड़े अस्पताल के एंडोक्राइन डिवीज़न की एक रिसर्च टीम ने ‘न्यूट्रिशन रिव्यू’ जर्नल में वर्ष 2013 में एक स्टडी पब्लिश की. इस टीम ने करीब 22 हज़ार रिसर्च पेपर्स को खंगाला और उनमें से चुनिंदा 11 क्लीनिकल स्टडीज़ का अध्ययन किया और बताया कि रैंडमाइज़ क्लीनिकल ट्रायल में 600 से अधिक Type 2 डायबिटीज़ रोगियों को फ़ाइबर और रेसिस्टेन्ट स्टार्च से भरे खाद्य पदार्थ देने पर, उनके ब्लड शुगर में काफ़ी कंट्रोल देखा गया.
हमारे यहां परम्परागत रूप में मौजूद है ज्ञान
अब जब क्लीनिकल स्टडी की बात कर ही दी है मैंने तो हमारे गांव-देहातों के खानपान में घुइयां की बात करनी भी ज़रूरी है. ग्रामीण इलाक़ों में, ख़ासतौर से वनांचलों में घुइयां बड़े चाव से खाया जाता है. इसे उबालकर या रोस्ट करके तरकारी बनाई जाती है. इसके पत्तों से भी कई व्यंजन बनाए जाते हैं. आदिवासी हर्बल जानकार इसे ताक़त के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं. आप सुदूर ग्रामीण हिस्सों में जाएं और पता करें कि कितने लोगों को डायबिटीज़ है तो आप ख़ाली हाथ लौटेंगे! मैंने तो अब तक किसी भी आदिवासी ग्रामीण को डायबिटीज़ से त्रस्त नहीं देखा है. जबकि शहर में तो हर चार में से एक व्यक्ति शक्कर की खदान बन चुका है, है कि नहीं?
सेहत टनाटन रखनी है तो यह भी जान लें
पता है, पके हुए या उबले घुइयां में क़रीब 12% रेसिस्टेन्ट स्टार्च होता है, जो इसे Type 2 डियाबेटिक्स के लिए ख़ास बनाता है. मुझे नहीं पता आप सब लोगों में से कितने लोगों को घुइयां पसंद है, पर जब सेहत को टनाटन रखने की बात हो तो सोच और पसंद को बेहतर तो करना ही होगा. डायबिटीज़ दवाओं से खत्म नहीं होगा, इसके साथ जीना सीखना है तो ऐसी लाइफ़स्टाइल अपनाएं, जिससे दवाओं को लेने की आवश्यकता ही ना हो. डायबिटीज़ पर आपने लंबे समय तक क़ाबू पा लिया तो आप इससे बाहर भी आ सकते हैं. तो आप दीपक आचर्य की एक बात गांठ बांध लें, डायबिटीज़ बीमारी नहीं है, एक अलार्म है… वो अलार्म जो बता रहा कि लाइफ़स्टाइल बदल लो, टाइम आ गया है. शुरुआत करने में जितनी देर करोगे, वापसी उतनी देरी से होगी… तो अब देर न करें और घुइयां खोजने निकलें. बात जमी? तो इस आर्टिकल को झटपट शेयर करें, क्या पता कोई यह शुरुआत करने के इंतज़ार में हो…
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट