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सिर्फ़ मसाला या मुखवास ही नहीं है सौंफ, जानें इसकी पूरी कहानी

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
April 15, 2022
in ज़रूर पढ़ें, ज़ायका, फ़ूड प्लस
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सिर्फ़ मसाला या मुखवास ही नहीं है सौंफ, जानें इसकी पूरी कहानी
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खाने के बाद क्या आपको भी सौंफ खाने की तलब होती है? या फिर आप इसे दिनभर में कभी-भी खा लेना पसंद करते हैं? अच्छा फिर बताइए आपको क्या लगता है, सौंफ कहां से आई? आप भले ही इसे भारतीय समझें, लेकिन यह बात सही है नहीं. तो इसके तार कहां से जुड़े हैं? यह बात जानने के लिए आपको सौंफ की कहानी जाननी होगी.

भारतीय लोग किसी रेस्तरां में खाना खाने जाते हैं तो सबसे आख़िरी में क्या होता है? दिमाग़ के घोड़े दौड़ाइए सोचिए ज़रा…
होता क्या है… बिल आता है. अब भाई जो नान, तंदूरी रोटी, मटर-पनीर, दाल तड़का, कोफ़्ते, मसाला पापड़, रायता और आइसक्रीम आपने उंगलियां चाट-चाट के खाई है उनका पैसा तो भरना ही पड़ेगा न? और पैसा भरने के लिए बिल देखना पड़ेगा… अब आम भारतीय सारे के सारे अम्बानी, अदानी की तरह रईस तो होते नहीं… तो बिल भरने वाला आदमी अपने मन ही मन में कैल्कुलेशन करता है कितनी रोटी का का पैसा लगाया गया, कितने पापड़ मंगवाए थे, आइसक्रीम का ज़्यादा पैसा तो नहीं लगा दिया, टैक्स कितना लगाया गया यानी कुल मिलाकर पैसा सही जोड़ा गया या नहीं. ख़ैर बिल का पोस्टमार्टम करके पैसे तो दे दिए जाते हैं, पर इस बिल के साथ आती है एक और चीज़ और साहब वो होती है एकदम कॉम्प्लिमेंट्री मतलब मुफ़्त. अब दिखने में तो ऐसा ही दिखता है, क्योंकि उसका पैसा अलग से जोड़ा नहीं जाता, पर ये पैसा वसूला जाता है इसमें कोई शक़ नहीं!
हां तो वो चीज़ क्या होती है? वो होती है सौंफ… कभी सादी , कभी सिकी हुई , कभी शक्कर चढ़ी हुई , कभी रंगबिरंगी मीठी , कभी मिश्री के टुकड़ों के साथ तो कभी धनिया दाल के साथ…

यक़ीन मानिए, ये मुफ़्त की सौंफ सबको अच्छी लगती है. वैसे भी आमतौर पर भारतीय घरों में खाने के बाद सौंफ खाने का प्रचलन है ही, अब हो सकता है कुछ लोगों को लगे कि मुखवास के तो भारतीय दीवाने होते ही हैं तो इसलिए सौंफ भी खाते हैं, पर सच ये भी है कि सौंफ में इतने गुण हैं, यह हर दिन खाने के लायक़ भी है. अब देखिए न सौंफ के इन थोड़े से दानों में, पोटेशियम, कैल्शियम, ज़िंक, मैंगनीज, विटामिन सी, आयरन, मैग्नीशियम जैसे तत्व पाए जाते हैं तो यह केवल मुखवास नहीं है.

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सौंफ के फ़ायदे: सौंफ सिर्फ़ मसाला नहीं है, हालांकि सभी मसालों के अपने कई गुण होते हैं, जिनके कारण उन्हें रोज़मर्रा के भोजन में प्रयोग में लाया जाता है. इसी तरह सौंफ के भी कई फ़ायदे हैं. इनमें सबसे प्रमुख हैं- ये ब्लडप्रेशर को कंट्रोल में रखती है, शरीर के अतिरिक्त पानी को बाहर निकलने में सहायता करती है, UTI से बचाती है, खाने को हज़म करने में मदद करती है और गैस, जी मचलना जैसी समस्याओं से निजात दिलाती है, आंखों की रौशनी बढ़ाती है, ख़ून साफ़ करने में मदद करती है और अस्थमा के मरीज़ों के लिए भी सौंफ का सेवन अच्छा माना गया है.

इसी के साथ मिटटी के सकोरे में रात को सौंफ को मिश्री के साथ गला दीजिए और सुबह ये पानी पीकर सौंफ चबा लीजिए तो शरीर की गर्मी छंटने में बहुत मदद मिलती है. बाक़ी भोजन का स्वाद और ख़ुशबू बढ़ाने में इसका योगदान तो है ही.
इसका उपयोग ब्रेड, केक और शरबत बनाने में भी किया जाता है. सौंफ की एक प्रजाति का प्रयोग सब्ज़ी बनाने में भी किया जाता है, सौंफ की पत्तियों का भी प्रयोग धनिया की पत्ती की तरह ख़ुशबू और स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है.

सौंफ का इतिहास: भारत में इसके चाहने वाले भले ही बहुत हैं, पर सौंफ के धागे साउथ यूरोप से जुड़े हैं. टर्की, पैरिस जैसे कई दक्षिण यूरोपीय देशों में इसका प्रयोग 10 वीं शताब्दी में भी किया जाता रहा था. धीरे-धीरे इसकी कई प्रजातियां विकसित होती चली गईं. अफ़गानिस्तान में लम्बे समय से इसका इस्तेमाल ब्रेड में फ़्लेवर लाने के लिए किया जाता रहा. जानते हैं, फ़ेनल का मतलब होता है मेराथन और इसे शुरुआत में मेराथन ही कहा जाता था. इसका पौधा घास की तरह दिखता था इसलिए इसका नाम फ़ेनल पड़ा. धीरे-धीरे जब लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने लगे व्यापार बढ़ने लगा, तब ये भारत तक पहुंची और फिर हर घर की मसालेदानियों में, छोटी-छोटी डिब्बियों में, मुखवास के डिब्बों में, ढाबों की छोटी स्टील वाली कटोरियों में, पंजाबी मसालों के तड़के में, छोटे-छोटे बच्चों की मुट्ठियों में…

जीवन का हिस्सा: सौंफ कभी यादों का हिस्सा नहीं बन सकती, क्योंकि हमेशा से ये ज़िन्दगी का हिस्सा रही है. आप में से किसी ने सौंफ का पौधा देखा होगा तो जानते होंगे की इसमें हल्के पीले रंग के फूल आते हैं. हम जब छोटे थे तो घर के पास एक बड़ी-सी जगह ख़ाली थी, जहां हमने शौक़ से सौंफ उगा ली थी. जब सौंफ के पौधे पर हरी कच्ची सौंफ आने लगी तो घर में हर तरफ उसकी भीनी-सी ख़ुशबू रहती और साथ में आए थे छोटे-छोटे काले मच्छर, जिन्हें मालवा में मोयला कहा जाता था. कच्ची सौंफ का वो स्वाद और वो ख़ुशबू आज भी जैसे रह रहकर याद आती है मुझे. और मैं उन्हीं लोगों में से एक हूं, जिनका सौंफ के बिना एक दिन भी काम नहीं चलता. दिन में कितनी ही बार मैं सौंफ खाती रहती हूं: खाना खाने के बाद भी, भूख लगने पर भी, बोर होने पर भी, ख़ुश होने पर भी और दिमाग़ काम न करे तो भी. तो आप भी बताइए कि क्या हैं आपके सौंफ वाले क़िस्से. जल्द ही मिलेंगे अगले क़िस्सों के साथ…

फ़ोटो: गूगल

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कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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