कई बातें साल-दर-साल सुनते हुए हमारे ज़ेहन में बस जाती हैं, कुछ ऐसा ही घर में कैक्टस लगाना, जिसे अमूमन अच्छा नहीं माना जाता. लेकिन एक समय ऐसा भी आता है कि हमारा जीवन हमारे ज़ेहन में बसी इन बातों की सच्चाई हमारे सामने उधेड़ कर रख देता है. ऐसा ही कुछ हुआ जिया के जीवन में, जिसे आप यह कहानी पढ़ कर ही जान सकेंगे.
फ़्लैट में जगह ही कितनी होती है जो बड़े पेड़, लता बेल को पनाह मिले? हां, कुछ बोनसाई प्लांट्स और नन्हे कैक्टस से जिया ने अपनी बालकनी सजा रखी है. ऑफ़िस के रास्ते में पौधों की नर्सरी है. सप्ताह में एक बार वहां जाने का शगल पाल रखा है उसने.
“ये कांटों का जंजाल क्यों लगा रखा है मधु? जिया को तो कौड़ी की अक्कल नहीं है पर तेरी मति को क्या हुआ?” शुभ-अशुभ पर गहन श्रद्धा रखने वाली जिया की दादी जब भी आतीं, कैक्टस और बोनसाई के गमलों पर क्रूर ग्रह आ जाते.
“दादी, प्लांट्स तो मैंने लाए और आप मम्मी पर ग़ुस्सा कर रही हो, ये कैसी बात है?” जिया ने उत्तर दिया. दादी की हर सही-ग़लत बात पर मौन रहने की मम्मी की फ़ितरत, जिया को बिल्कुल पसंद नहीं थी.
“ज़ुबान और कर्म, दोनों ही अलग हैं तेरे लड़की. अपनी मर्ज़ी का, दूसरी जाति का लड़का ख़ुद ही ढूंढ़ लाई है, वहीं जाकर ज़ुबान की कैंची से सास को कतरना.” बम की तरह फट पड़ी थीं दादी.
जिया कुछ बोलती उसके पहले ही मधु ने, होंठों पर उंगली रखकर, सिर हिलाकर उसे बहस करने से रोक दिया.
जिया अपने कमरे में जाकर ऑफ़िस के लिए तैयार होने लगी. मम्मी की तबियत पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं है. सिर घूमना, थकान और कमज़ोरी ज़्यादा महसूस होती है.
“मम्मी, अब मैं भी काम करने लगीं हूं और खानेवाली रखी जा सकती है. आप आसपास पता करो या मैं आनलाइन कुछ संस्थाओं से बात करूंगी.” पिछले सप्ताह जिया ने अपनी मम्मी से कहा था और इसके तुरंत बाद गांव से दादी का आगमन हो गया.
सास के रहते कोई बहू कभी बूढ़ी हो सकती है, नहीं… बीमार पड़ने का हक़ तो होता ही नहीं. सो बस… कुक की बात को थैले में डालकर मम्मी ने खूंटी पर अटका दिया और लग गईं हैं रसोई में.
मम्मी के हाथ के खाने का स्वाद लाजवाब होता ही है. परिवार के बाहर भी लोग उनकी तारीफ़ करते हैं. ये तारीफ़ें हौसला ज़रूर बढ़ा देती हैं, पर बढ़ती उम्र भी कम नहीं है जो वापस पैर खींचने लगती है.
अनूप. जिया के सपनों का राजकुमार. बस, परीकथाओं के राजकुमार की तरह उसकी ज़िंदगी और परिवार में आ गया. ऑफ़िस में मिला, जान-पहचान बढ़ी और बात परिवारों को राजी करने तक बढ़ गई.
प्रेम, कहने-सुनने में ढाई आखर का शब्द है, लेकिन यदि किसी को हो गया तो वह लाखों विघ्नों से घिर जाता है. अनूप और जिया, बहुत अलग अलग परिवेश के दो प्राणी. अनूप, अपनी मां और नानी के साथ बड़ी सुंदर सोसायटी के चार बेडरूम फ़्लैट में रहता है.
“इतने बड़े फ़्लैट में सिर्फ़ तीन ही लोग अनूप. घर ख़ाली-सा नहीं लगता?” जिया ने सहज ही पूछ लिया था.
“तीन नहीं चार लोग हैं, तुम कैस्पर को तो भूल ही जाती हो.” अनूप ने बताया.
“ओह! हां.” जिया की सोच में अनूप के घर का पालतू कम ही आता था. अपने वन बेडरूम फ़्लैट में, जब गाँव से दादी, चाचा आ जाते तो गद्दे ज़मीन पर डालकर सोने वाली बात याद आ गई.
अनूप को जिया का व्यवहार, स्वभाव, पढ़ाई-लिखाई और काम सीखकर आगे बढ़ने की ललक भा गई थी. वरना अपनी मां और नानी को इस रिश्ते के लिए मनाना, उसके लिए कोई आसान खेल नहीं था.
“मेरी मां, थोड़े तेज़ स्वभाव की हैं, क्योंकि उन्होंने मुझे अकेले ही बड़ा किया है. नानी हमारे साथ ही रहतीं हैं. मां के अलावा कोई और संतान नहीं थी उनकी.” अनूप ने बताया और फिर जिया ने अनूप के बाबा के बारे में पूछा.
“बाबा और मां की कभी बनती नहीं थी, मेरी चार साल की उम्र में ही वे अलग हो गए. बाबा बहुत अच्छी बांसुरी बजाते थे. रविन्द्र संगीत से प्रेम था उन्हें.” कई बार अनूप का पितृ स्नेह से वंचित मन, अपने बाबा की संगीत लहरियों में गुम हो जाता.
“जिया, आज लेट नहीं हो रही है तू?” मम्मी की आवाज़ से चौंक कर जिया ने घड़ी की ओर देखा.
“बाप रे! सुबह समय का पता ही नहीं चलता.” मम्मी की ओर देखकर जिया बोली, “आप टिफ़िन मत बनाना, मैं अनूप के साथ कैंटीन में लंच कर लूंगी. पिछले कुछ दिनों से हम दोनों अपने-अपने प्रोजेक्ट में इतने व्यस्त हैं कि मिल ही नहीं पाते.” कहती हुई जिया बाथरूम में घुस गई.
“मम्मी, इस शनिवार डॉक्टर का अपॉइंटमेंट लेती हूँ, आपका हेल्थ चेकअप करवाना है.” नीला सलवार सूट पहनकर जिया ने मधु से कहा और बरामदे में बैठे पापा, दादी को हाथ दिखाती बाहर निकल गई.
“अब 9: 20 की लोकल नहीं मिली तो फिर आफ़त.” शेयर रिक्शा की गति पर वैसे विश्वास है जिया को येन केन प्रकारेण समय पर पहुंचा ही देगा स्टेशन. हाथ में पकड़े फ़ोन पर अनूप को मैसेज किया कि आज लंच पर मिलते हैं और उसके उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही सामने लटके बड़े बोर्ड को देखने लगी. एक बड़े हॉस्पिटल में, महिलाओं के पूरे शारीरिक जांच के पैकेज लिखे थे. आटो की तेज़ गति से पूरा तो नहीं पढ़ पाई जिया परंतु हॉस्पिटल का नाम गूगल करने लगी.
ऑफ़िस पहुंचकर काम में व्यस्त हो गई अब लंच का सोचती कि फ़ोन बजने लगा.
‘पापा का फ़ोन, इस समय?’ जिया का मन अस्थिर हो गया.
“हेलो पापा, आज इस समय कैसे फ़ोन किया आपने?” जिया ने कह तो दिया पर सोचने लगी कि क्या पापा उसको कभी भी फ़ोन नहीं कर सकते.
“जिया, तेरी मम्मी को चक्कर आ गया था, गिर पड़ी थी रसोई में. अभी अपनी सोसायटी के पास वाले शर्मा डॉक्टर के पास लाया हूं.” पापा की आवाज़ में मम्मी के प्रति चिंता, प्रेम सुनाई दे रहा था.
“मैं अभी आती हूँ पापा. आप संभाल कर मम्मी को घर ले जाना.” कहती हुई अपना लैपटॉप बंद करके, लॉकर में रख, जिया तेज़ी से बाहर निकल गई.
“जिया, ऐसे अचानक कहाँ जा रही हो?” साथी नवीन ने पूछा.
“नवीन, मम्मी की तबियत अचानक ख़राब हो गई है. पापा का फ़ोन आया था. मुझे तुरंत जाना है.” जिया की आंखों के सामने मम्मी का चेहरा घूम रहा था.
उस शाम मम्मी को लेकर उसी बड़े हॉस्पिटल में गए, जहां ब्लड टेस्ट, एक्सरे, सोनोग्राफ़ी और भी बहुत सी जांच हुई.
एक्सरे और सोनोग्राफी की रिपोर्ट तुरंत आ गई और डॉक्टर ने जो बताया उसे सुनकर पापा ने बाजू की दीवार थाम ली. जिया की आंखों से लगातार आंसू बहने लगे.
“कल कुछ और रिपोर्ट सुबह आ जाएंगी, हमें परसों ही मधु जी के ब्रेन का ऑपरेशन करना पड़ेगा. कुछ ट्यूमर्स फैल गए हैं जितनी जल्दी निकाल लें, बेहतर होगा. देर हुई तो ब्रेन के काम में ये ट्यूमर तकलीफ़ देंगे.” डॉ की आवाज़, दीवारों से टकराकर पापा और बेटी के कानों में गूंजने लगी.
पता नहीं कैसे तीनों घर वापस आए. मम्मी के ऑपरेशन की ख़बर पर, दादी की प्रतिक्रिया जिया और पापा को नागवार गुज़री.
“कहती थी ना कांटें मत बोओ घर में, सुनता कौन है? कमाऊ लड़की है सो जो जी में आए करे.” दादी के लाए रिश्ते को नकार कर, अनूप से रिश्ता करने की बात का बदला वो शब्दों के बाण चला कर ले रहीं हैं.
“अम्मा, क्या बात करती हो? जिसकी तबियत ख़राब है वो आपकी बहू है, इस घर की कर्ताधर्ता है वो अम्मा.” आज जिया ने देखा पापा का गला भरभरा गया था और उन्होंने दादी के सामने मम्मी का हाथ थाम लिया. सहारे, प्रेम की इस पकड़ में बंधे दोनों की आंखें भीग रहीं थी.
रात कैसे बीती, किसी को कुछ होश नहीं. गूगल पर मम्मी की एक्सरे रिपोर्ट पर लिखे शब्दों को सर्च करने पर जिया समझ गई कि इस बीमारी से लड़ने के लिए पूरे परिवार को तैयार होना पड़ेगा. अपनी जिम्मेदारियों को महसूस करके, जिया ने कमर कस ली. अब पापा-मम्मी के सामने कभी नहीं रोएगी वो, ऐसा निश्चय करके थोड़ी सी देर के लिए आराम करने लगी.
अगले दिन अनूप भी आ गया, हॉस्पिटल की प्रक्रिया शुरू हो गई और डॉक्टर के बताए अनुसार तय समय में ऑपरेशन किया गया. ऑपरेशन थिएटर में जाते समय मम्मी की आंखों में, अपने से ज़्यादा अपने परिवार कि चिंता मचल रही थी. अनूप का हाथ थाम कर शायद एक मौन निवेदन कर रहीं थी वो.
तीन दिनों के बाद, ट्यूमर के बायोप्सी की रिपोर्ट भी आ गई और आगे की प्रक्रिया करना ज़रूरी बताया.
मम्मी को कुछ बातें, चेहरे याद नहीं आ रहे थे और पापा उन्हें पुराने ऐल्बम दिखा कर याद दिला रहे थे.
“कुछ माह ऐसा हो सकता है. मस्तिष्क में सारे केंद्र, नाड़ियां और ख़ून की वाहिनियों के कारण ये ऑपरेशन जटिल होता है. पेशेंट को सामान्य होने में समय लग सकता है.” डॉक्टर ने बात साफ़ की.
कुक लगा ली गई और जिया ने भी अपनी छुट्टियां बढ़ा दीं. रेडिएशन और कीमो थेरेपी के लिए मम्मी को तैयार करना चालू था.
आज सुबह मम्मी पापा को चाय देकर, जिया जब प्लांट्स में पानी डालने लगी तो उसके कानों में दादी की आवाज़ गूंजने लगी.
“सचमुच, ये कैक्टस ही अपशगुनी हैं. सच कहती थी दादी, इन्हें उखाड़ फेंकती हूं.” बड़बड़ाती हुई जिया ने एक गमले को हिलाया और मधु ने रोक दिया.
“बीमारी मेरी, इस पौधे का क्या कसूर बेटा, मत उखाड़ हरे भरे पौधे को.” और जिया रुक गई.
“पिछले कुछ दिनों से अनूप नहीं आया जिया, उसके घर सब ठीक तो है ना?” पापा ने पूछा.
“मैंने मैसेज तो किया था, देखती हूं.” कहकर जिया ने फ़ोन चेक किया. मैसेज पढ़ा तो था उसने, पर जवाब नहीं दिया.
जिया ने फ़ोन लगाया, फ़ोन भी कट कर दिया.
बेटी के चेहरे की चिंता, मां बाप भांप गए. दो दिन बाद से कीमो थेरैपी चालू होने वाली है और उसके परिणामों से डॉक्टर ने उन्हें परिचित करवा दिया था.
“अभी उसके सामने उसकी मां ही प्राथमिकता है और अनूप तो उस पर जान छिड़कता है, कहीं व्यस्त होगा.” मन ही मन सोचती वह घर के कामों में लग गई.
कीमो के दो डोज़ के बाद उसके प्रभाव शुरू हो गए और अब दादी भी आ गई थीं. ज़िंदगी भर की कड़वी जुबां अब पूरी तरह से मौन थी. मम्मी के पास बैठकर हाथ सहलाती, माथा दबाती दादी ने सास शब्द के मायनों में नया अर्थ भर दिया.
“हेलो अनूप, मैंने कितनी बार तुम्हें फ़ोन किया. सब ठीक है ना घर पर?” कई दिनों के बाद अनूप ने फ़ोन उठाया और जिया सबकुछ पूछ पड़ी.
“मैं आंटी बोल रहीं हूं जिया. अनूप की मां.” उधर से आवाज़ आई.
“नमस्ते आंटी. अनूप कहां है? बहुत दिनों से फ़ोन भी बंद है और मिलने भी नहीं आया. मम्मी पापा भी याद कर रहें हैं.” न जाने कैसे एक ही प्रवाह में बोल गई जिया.
“फ़ोन बंद था उसका जिया. देखो जिया, अनूप मेरा इकलौता बेटा है. मैं नहीं चाहती कि उसको आगे कोई परेशानी हो.” एक दबंग आवाज़ आई.
“मैं समझी नहीं आंटी.” जिया ने कहा.
“तुम्हारी मां को कैंसर हो गया, तुम अपने परिवार की ज़िम्मेदारी मेरे बेटे पर लाद दोगी. फिर ये बीमारी वंश से आ गई तो अनूप क्या जीवन भर तुम्हारी भी सेवा करेगा? हमें अब यह रिश्ता मंज़ूर नहीं है.” गर्म शीशे से शब्दों को कानों तक पहुंचा कर उन्होंने फ़ोन रख दिया.
सिर पर हाथ रखकर, वहीं रखी कुर्सी पर धम्म से बैठ गई जिया.
“इतनी पढ़ी-लिखी महिला, ऐसा सोचती है. इस बीमारी से पीड़ित रोगी के परिवार में शादी नहीं होती क्या? कैसी अवधारणा है, कैसी सोच है?”
मन मस्तिष्क में जैसे ज्वार आ गया. विचारों के मंथन से निष्कर्ष कुछ भी नहीं आ रहा था.
एक घंटे बाद मम्मी को सेब का जूस बनाकर दिया और उनसे नज़र मिलते ही सिसकने लगी जिया.
मम्मी के कमज़ोर, थके हाथ उसके बालों में घूमने लगे. थरथराती उंगलियो से भी वो, बिटिया के गालों पर बहती हर एक बूंद को सोख लेना चाहती थीं.
शाम को बालकनी के कैक्टस जिया को देख मुस्कुराने लगे. गुस्से से उनकी ओर बढ़ती जिया ने देखा कि दो तीन गमलों में, मोटा डंठलनुमा भाग बाहर आ रहा है. मोटी, काँटेदार पत्तियों के बीच से बाहर आते डंठल से, छोटी छोटी कलियाँ झांक रही हैं.
जिया का हाथ रुक गया. आज कैक्टस में फूल के आसार दिखे हैं.
“जिया…” अनूप की आवाज़ से चौंक पड़ी जिया.
नीचे बाइक खड़ी करके, वह सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर आया.
“जिया, मैंने मां को समझाने की बहुत कोशिश की परंतु उन्होंने अपनी कसम देकर मुझे बांध रखा था. आज तुम्हारे फ़ोन के बाद, मैंने साफ़ कह दिया कि कैंसर किसी को भी हो सकता है, यह वंश से नहीं चलता. कल मुझे या आपको हो गया तो क्या दुनिया हमें छोड़ देगी?” अनूप भावावेश से कांप रहा था.
अनूप का हाथ पकड़े जिया, उसे बालकनी के उस गमले तक ले गई, जहां दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत फूल खिलने को तैयार है.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट