वर्षों पहले लिखी अदम गोंडवी की छोटी-सी रचना ‘घर में ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है’ आज के सामाजिक और राजनैतिक हालात पर कटाक्ष है. सत्ता के दबाव में ख़बरों को दिखाने और छुपाने वाले तमाम लोगों से यह कविता पूछती है, आख़िर उन्हें सबकुछ चंगा कैसे दिख रहा है?
घर में ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दूं धूप फाल्गुन की नशीली है?
भटकती है हमारे गांव में गूंगी भिखारन-सी
सुबह से फ़रवरी बीमार पत्नी से भी पीली है
बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में
मैं जब भी देखता हूं आंख बच्चों की पनीली है
सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास वो कैसे
मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है
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