कविता हस्तक्षेप में सत्ता की क्रूरता के ख़िलाफ़ हथियार डाले हुए लोगों की दशा बताती है. कविता में एक ऐसी सत्ता का वर्णन है, जिसके विरोध में कुछ भी बोलने के लिए कोई तैयार नहीं है. हर किसी ने उसकी निरंकुशता को स्वीकार लिया है. कवि ने उस समाज के जीते-जागते मनुष्यों की चुप्पी पर तंज किया है, जिस समाज में एक मुर्दा तक हस्तक्षेप करने की क्षमता रखता है.
कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है तो
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहां रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप
वैसे तो मगधनिवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है
मनुष्य क्यों मरता है?
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