किसी भी बीमारी को कम करने के लिए ये ज़रूरी है कि उसके बारे में अच्छे से समझा जाए, उसके बारे में अधिक से अधिक लोगों को आसान भाषा में एवम आसान तरीक़ों से समझाया जाए ताकि उसकी जागरूकता प्रभावी रूप से फैल जाए. हार्ट की देखभाल के डिजिटल तरीक़ों के बारे में बताकर वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी विश्व हृदय दिवस पर यही काम हमारे पाठकों के लिए कर रही हैं.
टेक्नोलॉजी ने हमारी जीवनशैली को बदलकर रख दिया है. इसने हमारी ज़िंदगी को आसान बनाया है, पर इसका दूसरा पहलू यह भी है कि टेक्नोलॉजी के चलते हम शारीरिक रूप से कम ऐक्टिव रह गए हैं. इसका नतीजा है बीमारियां. हम कह सकते हैं कि टेक्नोलॉजी ने हमें बीमार भी बनाया है. इस हार्ट डे पर वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ हेमन्त चतुर्वेदी हमें बता रहे हैं कि कैसे हम इसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके अपने दिल का ख़ास ख़्याल रख सकते हैं.
डिजिटल हेल्थ का उपयोग कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ की जागरूकता, रोकथाम एवम प्रबंधन के लिए उपयोग में कैसे लिया जा सकता है.
आज के डिजिटल युग में जबकि लगभग सभी काम डिजिटल हो गए हैं, वहां कार्डियोवैस्कुलर हेल्थ के लिए भी इसका उपयोग शुरू हो चुका है. इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल डिवाइस के विकास से e हेल्थ तथा m हेल्थ विकसित हुई है. टेलीमेडिसिन, वेयरेबल डिवाइस, सेंसर्स और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की सहायता से बेहतर तरीक़े से कार्डियक केयर को प्रदान किया जा रहा है. इसके कुछ प्रकार निम्न हैं
1. m हेल्थ
मोबाइल का हेल्थ केयर में उपयोग एक नई क्रांति है. ख़ासकर के टेक्स्ट मैसेज एवम वॉट्सऐप के विकसित होने से इमरजेंसी हार्ट डिज़ीज़ के इलाज में काफ़ी सहायता हो गई है. उदाहरण के लिए किसी भी व्यक्ति को चेस्ट में दर्द होने पर वो निकट के किसी भी डायग्नोस्टिक सेंटर या उपलब्ध चिकित्सकीय सुविधा से ECG, x ray करवाकर उसे तुरंत वॉट्सऐप के माध्यम से किसी भी हृदय रोग विशेषज्ञ तक सेकेंड्स में भेज सकता है. अपने ब्लड प्रेशर पल्स जैसे वाइटल्स अपने विशेषज्ञ को साझा कर सकता है.
ख़ासकर कोरोना काल में जबकि लॉक डाउन सोशल डिस्टेंसिंग के कारण जब व्यक्तिगत रूप से हम डॉक्टर्स के पास नहीं जा पा रहे थे, उस समय भी m हेल्थ ने काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
एक और क्षेत्र जिसमें m हेल्थ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है वो है न्यूट्रीशन एवम डाइट. आजकल स्मार्ट फ़ोन्स में काफ़ी तरह के ऐप उपलब्ध हैं, जो कि हेल्दी हार्ट के लिए हेल्दी डाइट के बारे में टिप्स देते हैं एवम लोगों को अपनी कैलोरी कंट्रोल के बारे में जागरूक करते हैं.
m हेल्थ के दायरे में फ़िटनेस एवम एक्सरसाइज़ भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. स्मार्ट मोबाइल में बड़ी आसानी से हेल्दी हार्ट के लिए ज़रूरी एक्सरसाइज़ का शेड्यूल उपलब्ध है. कोई भी इनसे अपने हार्ट के लिए अपना वर्क आउट चुन सकता है.
2. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस कार्डियोलॉजी में बड़ा वरदान साबित हुई है. ख़ासकर ऑटोमैटिक इमेजिंग, क्वॉलिटी इंप्रूवमेंट एवम संभावित रिस्क को बताने में इसका काफ़ी योगदान रहा है.
3. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस e हेल्थ
सडन कार्डियक अरेस्ट जिसमें अचानक से हार्ट की धड़कनों में अनियमितता के कारण हार्ट का धड़कना बंद हो जाता है, इसी अवस्था में अनायास मृत्यु को रोकने के लिए ऑटोमेटेड ICD डिवाइस हैं, जो कि बैटरी के माध्यम से चलती हैं, जो हार्ट की धड़कनों को सतत रूप से निगरानी में रखती हैं एवम ज़रूरत पड़ने पर इलेक्ट्रिक शॉक देकर धड़कन को नियमित करती हैं.
कभी-कभी हार्ट का इलेक्ट्रिक सिस्टम ख़राब हो जाता है, जिससे वो सुचारू रूप से हार्ट को पम्प नहीं कर पाता है. इसी अवस्था में पेसमेकर जैसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को उपयोग में लाया जाता है, जो बैटरी से चलता है, एवम ज़रूरत पड़ने पर हार्ट को धड़कन प्रदान करता है. हार्ट फ़ेलियर वाले मरीज़ों में जिनमें हार्ट की पंपिंग कम हो जाती है, उनमें भी CRT जैसी कंप्यूटराइज़्ड डिवाइस उपयोग में आती है, जिससे हार्ट की धड़कनों को सिंक्रोनाइज किया जाता है एवम पंपिंग क्षमता बढ़ाई जाती है.
इन सबके अलावा इलेक्ट्रॉनिक मेडिक रिकॉर्ड के विकसित हो जाने से आजकल लगभग सभी मरीजों का मेडिकल रिकॉर्ड अच्छे से स्टोर और मेंटेन होता है जिससे कभी भी, कहीं भी रिकॉर्ड मिल जाता है.
4. वेयरेबल डिवाइस
ऐसे मरीज जिनका हार्ट काफ़ी क्षतिग्रस्त हो चुका है, जिसकी पंपिंग क्षमता काफ़ी ज़्यादा कम हो चुकी है, एवम जिनमें हार्ट ट्रांसप्लांट के अलावा और कोई उपाय नहीं बचता. इस तरह के मरीजों को ट्रांसप्लांट के माध्यम से नया हार्ट मिलने तक अपनी जि़ंदगी को सुचारू रूप से चलाने के लिए पोर्टेबल हार्ट जिसे LVAD भी कहते हैं, उपयोग में लाया जाता है. उसे शरीर में प्रत्यारोपित करके उसकी बैटरी को मरीज वेयरेबल डिवाइस की तरह इस्तेमाल करते हैं.
वेयरेबल ग्लोव्स भी आ चुके हैं, जिन्हे चेस्ट पर लगाने से हार्ट की धड़कन को ब्लूटूथ के माध्यम से कंप्यूटर पर दूर भी देखा जा सकता है.
5. टेलीमेडिसिन
आज भी आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हमारे देश के कई शहरों व गांवों में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में टेलीमेडिसिन का उपयोग एक वरदान से कम नहीं है. इस माध्यम से स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की सुविधा छोटे जगहों के लोगों को भी आसानी से मिल पाती है. साथ ही दूर दराज़ के इलाक़ों में भी जटिल रोगों का डायग्नोसिस एवम निदान काफ़ी आसान हो जाता है.
साथ ही कई संस्थाओं ने स्वेच्छा से निशुल्क टेलीमेडिसिन की सुविधाएं लोगों के लिए भी शुरू की हैं, जिससे कई लोग लाभान्वित होते हैं.
6. सेंसर्स
हार्ट की धड़कनों में गड़बड़ी धड़कनों के ज़्यादा या कम हो जाने को पहचानने का काम इलक्ट्रॉनिक सेंसर्स के माध्यम से किया जाता है. जिन्हे हॉल्टर मॉनिटरिंग कहा जाता है. ये बैटरी के माध्यम से चलते हैं, एवम इलेक्ट्रोड के ज़रिए हार्ट के प्रत्येक पल की धड़कनों को रिकॉर्ड करते हैं. 24 से 48 घंटों के लिए हॉल्टर उपयोग में लाया जाता है एवम इससे ज़्यादा समय के लिए जैसे 1 हफ़्ते तक धड़कनों की जांच के लिए ELR एवम 6 महीने तक जांच के लिए ILR जैसी सेंसर्स डिवाइस का उपयोग किया जाता है.
आजकल मोबाइल में एवम स्मार्ट वॉच में हार्ट रेट सेंसर्स जैसे ऐप आने लग गए हैं, जिनकी मदद से कोई भी अपने हार्ट की पल्स रेट जान सकता है. साथ ही हार्ट की धड़कन नियमित हा या अनियमित ये भी पता लगा सकता है. अनियमित धड़कनों के कारण अक्सर हार्ट में ब्लड गाढ़ा हो जाता है, एवम इसमें ख़ून के काफ़ी छोटे-छोटे थक्के बन जाते हैं, जो कि ब्रेन स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं. इसलिए समय रहते अगर धड़कनों की अनियमितता जांच ली जाए तो ख़ून पतला करने की दवाई देकर ब्रेन स्ट्रोक के रिस्क से बचा जा सकता है.
7. हार्ट हेल्थ कैलकुलेटर एवम रिस्क स्कोर
एक आम आदमी अपने हार्ट की हेल्थ के बारे में जानने को उत्सुक रहता है. अब डिजिटल हेल्थ के माध्यम से ये काफ़ी आसान हो चुका है. इस कई हार्ट हेल्थ कैलकुलेटर उपलब्ध हैं, जिनमे कोई भी अपने शरीर के वाइटल, हाइट वेट जैसे कुछ प्रश्नों के जवाब देकर अपने हार्ट की हेल्थ जान सकते हैं. इसी तरह कुछ रिस्क स्कोर्स भी बनाए गए हैं, जो कि स्मार्ट फोन्स में उपलब्ध हैं, जिनकी सहायता से आने वाले हार्ट के जोखिम को समय रहते पहचान कर अपनी जीवनशैली बदल कर है उन्हें कम कर सकते हैं.
8. आर्टिकल, इंटरव्यू एवम वीडियो
विभिन्न समाचार पत्र कई वर्षों से अपनी ज़िम्मेदारी काफ़ी अहम तरीक़े से निभाते आ रहे हैं. उनमें छपने वाले हेल्थ अवेयरनेस आर्टिकल समय-समय पर लोगों को जागरूक करते रहते हैं. साथ ही आजकल प्रमुख समाचार पत्र मोबाइल पर ऑनलाइन उपलब्ध होते हैं, जिससे उनकी पहुंच का दायरा बढ़ चुका है. प्रमुख हार्ट स्पेशलिस्ट के इंटरव्यू, एक्सपर्ट ओपिनियन एवम उनके वीडियो ऑनलाइन आसानी से समय पर उपलब्ध होने से लोगों में हार्ट डिज़ीज़ के प्रति जागरूकता काफ़ी बढ़ चुकी है.
इनपुट्स साभार: डॉ हेमन्त चतुर्वेदी, वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ, इटरनल हॉस्पिटल, जयपुर