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आख़िर कहां से हिंदुस्तान में आया हलवा?

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
May 1, 2021
in ज़रूर पढ़ें, ज़ायका, फ़ूड प्लस
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आख़िर कहां से हिंदुस्तान में आया हलवा?
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‘‘हलवा समझे हो क्या?’’ हिंदी फ़िल्मों में बहुत सुन लिया होगा अब तक यह आप सबने. और मतलब इसका शायद यही रहा होगा कि हमें हलवे जैसा नाज़ुक न समझो, हम मज़बूत इंसान हैं. और इस ज़िक्र से तो अब आप भी समझ ही गए होंगे कि आज क़िस्सा है हलवा का.

हलवा जितना कंफ़्यूज़िंग शब्द है, उतना ही लाजवाब भी. अब आप कहेंगे इसमें कन्फ़्यूज़ करने वाला क्या है? तो समझ लीजिए कि ज़रूरी नहीं कि आपने हलवा बोला तो सामने वाला मिठाई समझेगा या घरों में बनने वाला सामान्य हलवा… वैसे भारत में तो प्रदेश, प्रदेश में इसका अंतर दिखाई पड़ेगा. मुम्बई में ये बॉम्बे हलवा भी हो सकता है, पर मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान या उत्तर प्रदेश में वही हलवा होगा, जो मीठा तो होता पर जमी हुई मिठाई नहीं होता.

हलवा बनता पचासों तरह का है. तरह-तरह के आटे से बनने वाला (गेहूं का आटा, बेसन, राजगिरा, रागी इत्यादि), सूजी से बनने वाला, दालों वाला,फल और सब्जियों का हलवा (गाजर, लौकी, सेब, आलू, कद्दू),नट्स से बनने वाला,खसखस वाला और कॉर्न फ़्लोर से बनाया जानेवाला और बर्फ़ी की तरह जमाए जाने वाला हलवा भी.

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तुर्की में जन्मा था हलवा हमारा: जानते हैं क्या कि हलवा शब्द की उत्पत्ति अरबी के शब्द हल्व से हुई है. कहा जाता है तुर्की में तेरहवीं शताब्दी के आसपास दूध खजूर को मिलाकर एक व्यंजन बना, जिसे हल्व कहा गया. बाद में ऑटोमन साम्राज्य के समय तो वह के राजा ने तरह-तरह के हलवे बनाने के लिए एक अलग पाकशाला बनवाई, जहां हलवे बनाए जाते थे.
इन हलवों में मुख्य बात ये थी चाशनी बनाई जाती थी/है और उसमें नट्स का अलग-अलग तरह का पाउडर या फिर आटा मिलाया जाता है और फिर उसे जमाया जाता है (कुछ-कुछ हमारी बर्फ़ी की तरह, पर बिल्कुल वैसा नहीं).
मिस्र यानी इजिप्ट में इसे हलावा कहते हैं और कुछ ट्रफ़ल या कहिए हमारे लड्डू के शेप का बनाया जाता. यूक्रेन से होता हुआ ये हल्व अमेरिका 19 वीं सदी की पहली शताब्दी में पहुंचा. ब्रूकलिन में इसकी सबसे पहली दुकान खोली गई.

भारत में कहां से आया: आप कहेंगे भारत में आया कैसे, का क्या मतलब? ये तो यहां था ही. नहीं जनाब, ये हमारा नहीं है. कहा जाता है कि ये मुग़लों के साथ आया दिल्ली और वहीं से पूरे देश में फैला. दूसरी तरफ़ लखनऊ के भोजन विशेषज्ञ हलीम अकबर अपनी किताब “गुजिश्ता लखनऊ” में ज़िक्र करते हैं कि भारत में हलवा अरब से पर्शिया होता हुआ आया. हां, सूजी के हलवे की कहानी थोड़ी अलग है. इसने भारत में प्रयोगात्मक रूप में जन्म लिया पर बना ये भी बाहर से हलवा आने के बाद.

भारत में कथा पूजा वाला हलवा: बड़ी मज़ेदार बात है न कि हमारे कितने ही व्रत त्योहारों में सत्यनारायण कथा में भोग के रूप में हलवा चढ़ाया जाता तो समझ लीजिए कि सत्यनारायण भगवान की कथा भी भारत मे हलवा के प्रचलन के बाद ही शुरू हुई. हमारे किसी भी आदि ग्रंथ में हलवा या इस तरह के मीठे या इसके भोग का ज़िक्र नही मिलता. हां, लापसी का उल्लेख अवश्य मिलता है. इसी तरह देखा जाए तो नवरात्रि में जो हलवा, पूड़ी बांटा जाता है वो चलन भी बहुत पुराना नहीं है.
आज मैं सारे हलवों की बात नहीं करूंगी क्योंकि पूरे विश्व में तरह तरह के हलवे बनाए जाते हैं,और सारे हलवों का रूप, भारत में हलवा कहे जाने वाले व्यंजन जैसे नहीं होते. वो पोस्ट शोधपरक होगी और व्यंजन वाली पोस्ट उसके लिए मुफ़ीद जगह नहीं है.

आटे के हलवे की बात: हां, तो आज बात होगी आटे के हलवे की, जिसे महाराष्ट्र में लोग शीरा कहते हैं और हमारे मध्य प्रदेश में हलवा. मीठे में फटाफट बन जाने वाला ये हलवा बहुत पौष्टिक भी होता है, छोटे बड़े व्रत, त्योहार, पूजा उत्सव में घर घर में ये हलवा बनाया जाता और कुछ नहीं तो ठंड के दिनों में सुबह के नाश्ते में हलवा-पापड़, घी, नट्स और शक्कर की मिठास से भरा ये हलवा कई लोगों की पसंद है.
कुछ लोग हलवा कच्ची शक्कर और पानी मिलाकर भी बनाते हैं, स्वाद में वो भी अच्छा होता है (खाना कौन-सा ख़राब होता साहब, बनानेवाले कि मेहनत होती) पर स्वाद के हिसाब से मुझे मेरी मम्मी का सिखाया पकी शक्कर और पानी का हलवा बेहतर लगता है. पर ये मेरी पसंद है और मेरी आदत भी समझ लीजिए.आप अपनी मम्मी वाला बनाकर खाइए उसमें भी क्या गुरेज़. चीज़ खाने लायक़ बननी चाहिए बाकी तो सब माया है.

हम कैसे बनाते हैं आटे का हलवा: हालांकि हलवे की रेसिपी के कितने ही ब्लॉग मिल जाएंगे, पर मैं इसे मीठे पानी से बनाती हूं, जिसके कारण स्वाद में फ़र्क़ आता है इसलिए रेसिपी बताती चलती हूं.
तो एक कढ़ाई में आधा कटोरी (लगभग) घी डालिए और फिर घी पिघलने पर और घी डालिए (आप चाहें तो पहले एक चौथाई कटोरी घी डालिए फिर बाद में बढ़ा लीजिए), एक कटोरी आटा, इसे अच्छे से मिलाकर सेकना है. अब दूसरी तरफ़ एक बर्तन में आटे के बराबर शक्कर लीजिए (1 कटोरी या थोड़ी और ज़्यादा अगर आप मीठा ज़्यादा खाते हों तो सवा कटोरी ले लीजिए) और आटे का दोगुना पानी (2 कटोरी) मिलाकर एक अच्छा उबाल लीजिए. और शक्कर गल जाने दीजिए, इसमें डालिये थोड़ा सा इलायची पाउडर.
दूसरी तरफ़, जब आटा अच्छी तरह ब्राउन सिक जाए तो उसमें डालिए कटे हुए काजू-बादाम. फिर तैयार शक्कर का पानी इसमें मिलाएं और लगातार चम्मच से हिलाएं, कुछ डेढ़-दो मिनिट में ये गाढ़ा हो जाएगा. इसे कुछ देर और सेकिए और फिर किशमिश डालिए. और गर्मागर्म हलवे का पापड़/पोहे/समोसे/भजिए/पूड़ी या जो मन भाए उसके साथ आनंद लीजिए.
अब जो-जो लोग इस रेसीपी से हलवा बनाएं वो हमें भी बताएं कि कैसे लगा हलवा.
बाक़ी कमेंट, लाइक, शेयर का ऑप्शन तो सबके लिए है ही.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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