पैरेंटिंग जितनी चुनौतीभरी होती है, उतनी ही दिलचस्प भी. अभी आप बच्चों के रोज़मर्रा की बातों के, विज्ञान से जुड़े छोटे-छोटे कौतूहल के पीछे की सच्चाइयों से उन्हें रूबरू करा ही रहे होते हैं कि उनके सवाल बदलने लगते हैं. तरुणाई में बच्चे अपने शरीर में हो रहे परिवर्तनों से परेशान होते हैं और वे अपने साथियों के शरीर के बदलावों को भी नोटिस कर रहे होते हैं. ऐसे में बहुत संभव है कि आपसे सेक्स से जुड़े कुछ ऐसे सवाल पूछ लें, जिनके जवाब को लेकर आप इस पसोपेश में पड़ जाएं कि ये इसे कैसे बताऊं? यहां हम ऐसी ही स्थिति से निपटने के बारे में बता रहे हैं.
शायद आपको अच्छी तरह याद हो कि जब आप छोटे थे, तब परिजनों के साथ टीवी देखते समय यदि कॉन्ट्रासेप्टिव्स या सेनैटरी नैप्किन्स के विज्ञापना आ जाते थे तो तुरंत ही चैनल बदल दिया जाता था. पर बावजूद इसके इन चीज़ों के बारे में जानने की आपकी उत्सुकता और बढ़ जाती थी. और हो भी क्यों न? जीवन की जिन आम सच्चाइयों से पैरेंट्स अपने बच्चों को दूर रखना चाहते हैं, उन्हें जानने की इच्छा और प्रबल होने लगती है. दरअसल, माता-पिता को चाहिए कि बच्चों की उम्र और उनकी समझ के अनुसार उन्हें ज़िंदगी की इन चीज़ों, इन सच्चाइयों के बारे में धीरे-धीरे बताते चलें. यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो बच्चे सेक्स से जुड़ी जानकारियां कहीं और से हासिल करेंगे… और फिर आप जान भी नहीं पाएंगे कि उन्होंने इसे लेकर कैसी जानकारी पाई है? सही या ग़लत. हो सकता है कि ग़लत जानकारी पाने के बाद वे ख़ुद कुंठित हो जाएं या किसी दूसरे व्यक्ति को कुंठा का शिकार बना दें.
अत: बहुत ज़रूरी है कि बतौर पैरेंट्स समय-समय पर बच्चों द्वारा पूछे गए सेक्स संबंधी सवालों के सही जवाब आप उन्हें, उनकी उम्र के मुताबिक़ देते रहें. यहां जानिए ऐसा करने का सही तरीक़ा…
उनके किशोरावस्था में आने का इंतज़ार न करें
यह वो ग़लती है जो अक्सर तमाम भारतीय पैरेंट्स कर जाते हैं. किशोरावस्था से थोड़ा पहले ही बच्चों में हॉर्मोनल बदलाव होने लगते हैं, शारीरिक और भावनात्मक सोच के स्तर पर भी वे बदलने लगते हैं. अत: इस बात की जानकारी उन्हें आठ से दस वर्ष की उम्र से देना शुरू करना होगा. ख़ासतौर पर लड़कियों को, क्योंकि इस उम्र के बाद कभी-भी उनके पीरियड्स शुरू हो सकते हैं. उन्हें इसके लिए तैयार किया जाना बहुत ज़रूरी है. वहीं लड़कों को वेट ड्रीम्स के बारे में न बताया जाए तो वे भी बहुत असहज महसूस कर सकते हैं.
यदि इसे विज्ञान के नज़रिए से समझा जाए तो किशोर होते बच्चों के दिमाग़ के भीतर तरह-तरह के हॉर्मोन्स असर डाल रहे होते हैं, जिनमें एस्ट्रोजेन, टेस्टोस्टेरॉन और प्रोजेस्टेरॉन मुख्य हैं. इसकी वजह स बच्चों की निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ता है, वे कन्फ़्यूज़्ड रहते हैं. यदि यह बात उन्हें पहले ही मालूम होगी तो वे अपनी किशोर अवस्था को सही तरीक़े से हैंडल कर पाएंगे.
उनके सवालों के जवाब दें
यदि वे कोई ऐड्वर्टाइज़्मेंट देख कर या कुछ पढ़ कर आपसे सेक्स के बारे में कोई सवाल पूछें तो उनके सवालों को न तो टालें और ना ही अनसुना करें. क्योंकि यदि आप उन्हें इसका जवाब नहीं देंगे तो ऐसा बिल्कुल नहीं है कि उन्हें पता नहीं चलेगा. आजकल के बच्चे हर सवाल का जवाब इंटरनेट पर ढूंढ़ने में पारंगत हैं. और उनके हाथ कौन-सी लिंक आ लगेगी यह पता करना आपके लिए आसान नहीं होगा. अत: आप उम्र के मुताबिक़ उन्हें उनके सवालों के सही जवाब दें. सेक्स और अंतरंगता को लेकर उन्हें अंधेरे में न रखें.
याद रखें कि एक बार में छुट्टी नहीं मिलेगी
यदि आपको लगता है कि एक बार आपने घुमा-फिरा कर उन्हें सही बात बता दी तो आपको छुटकारा मिल गया तो आप ग़लत हैं. सेक्स और सेक्शुऐलिटी पर बच्चे/बच्चों से आपकी बात रुक-रुक कर लगातार चलती रहेगी, तभी वह उन्हें सही दिशा देगी. अपने शरीर को समझने के लिए आप उन्हें कोई किताब दे सकते हैं. बातों ही बातों में आप लड़कियों और लड़कों दोनों को ही कॉन्ट्रॉसेप्टिव के बारे में बता सकते हैं. सेक्शुअल रिश्तों में रज़ामंदी यानी कन्सेन्ट की अहमियत समझा सकते हैं.
उन्हें यह समझाना भी आपका ही काम होगा कि तरुणाई में किसी पर क्रश हो सकता है, आपका दिल भी टूट सकता है, लेकिन इन चीज़ों से उबर आना ज़रूरी है. उन्हें यह बताया जा सकता है कि सेक्शुअल रिश्तों के लिए आपका एक उम्र पर आ जाना ज़रूरी है. दूसरे की भावनाओं का ख़्याल रखना ज़रूरी है. पीयर प्रेशर में आकर कोई ग़लत काम करने से बचना ज़रूरी है.
बच्चा कुछ बताए तो सुनें, जज न करें
यदि अपने शरीर या सेक्शुऐलिटी के बारे में आपका बच्चा कुछ पूछे या बताए तो उसे सुनें. जज न करें. आख़िर जीवन की इस सच्चाई को जानने से उसका जीवन आसान होगा और पैरेंट्स अपने बच्चों का जीवन आसान ही तो करना चाहते हैं. यह बात बहुत मायने रखती है कि इस मसले पर उनकी सोच या अनुभव क्या है या फिर वे क्या जानना चाहते हैं, क्या बताना चाहते हैं, उसे वैसा का वैसा ही समझा जाए. उन्हें पूरी तरह सुना जाए और उसके बाद ही उनकी उत्सुकता का समाधान किया जाए.
कई बार बच्चे अख़बारों में या ख़बरों में बलात्कार जैसी घटना के बारे में सुन कर इसके बारे में आपसे पूछना चाहते हैं, पर झिझकते हैं. ऐसी किसी घटना के सामने आने पर आप ख़ुद ही उनसे पूछ सकते हैं कि इस ख़बर से तुम क्या समझते/समझती हो? फिर लड़की है तो उसे बताया जा सकता है कि इस तरह की घटनाओं से कैसे बचा जा सकता है, कैसे फ़ास्ट डायल पर पुलिस या पैरेंट्स का नंबर रखना है; ऑटो/टैक्सी का नंबर नोट करना है; अपनी रक्षा के लिए क्या किया जा सकता है वगैरह. और लड़का है तो उसे समझाया जा सकता है कि यह महिला-पुरुष के रिश्तों का सबसे विभत्स रूप है और इससे किस तरह लड़कियों को शारीरिक और मानसिक आघात पहुंचता है; यदि वे किसी युवती या महिला के साथ ज़बर्दस्ती होते देखें तो किस तरह उसका विरोध करना है, सबसे पहले पुलिस को कॉल करना है, ख़ुद की भी रक्षा करनी है और उस युवती की भी रक्षा करनी है.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट