हम हर काम दिल से करते हैं, सिवाय दिल की देखभाल के. ऐसा सिर्फ़ हम भारतीय ही नहीं करते, बल्कि वैश्विक आंकड़े भी कुछ ऐसा ही बताते हैं. जैसे-विश्व में होने वाली कुल मृत्यु का 31% केवल हार्ट डिज़ीज़ के कारण होता है. विश्वभर में लगभग 1.3 बिलियन लोग हाइपरटेंशन से ग्रसित हैं. दिल को दुरुस्त रखने के लिए व्यायाम से बेहतर भला और क्या हो सकता है! वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी बता रही हैं, दिल को मज़बूत बनाने में एक्सरसाइज़ की क्या भूमिका है और कैसे कुछ सावधानियां रखकर आप सडन कार्डियक अरेस्ट से बच सकते हैं.
हार्ट अटैक के विभिन्न रिस्क फ़ैक्टर्स जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ और अधिक कोलेस्टेरॉल आदि को कम करने के लिए एक्सरसाइज़ एक महत्वपूर्ण रामबाण है. परंतु अक्सर हम इसके ठीक विपरीत कुछ ऐसी समाचार सुनते हैं कि एक्सरसाइज़ करते हुऐ किसी मशहूर फ़िल्म ऐक्टर या किसी डॉक्टर या जानी मानी शख़्सियत की सडन कार्डियक अरेस्ट से मृत्यु हो गई. तब लगता है कि आख़िर सही क्या है और ग़लत क्या? आज हम यही जानने की कोशिश करेंगे की एक्सरसाइज़ का हार्ट की हेल्थ से क्या संबंध है एवम क्यों केवल कुछ लोगों के लिए एक्सरसाइज़ जानलेवा साबित होती है लेकिन उन्हें छोड़कर बाकी सभी के लिए हार्ट के लिए लाभदायक होती है.
एक्सरसाइज़ कैसे हार्ट के लिए हेल्दी होती है तथा हार्ट अटैक को कम करती है
हाई ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड शुगर और हाई कोलेस्टेरॉल हार्ट की कोरोनरी आर्टरीज़ में कोलेस्टेरॉल के थक्कों के जमा होने का प्रमुख कारण होते हैं. ऐसे थक्के के जमा हो जाने से हार्ट की ब्लड वेसल्स ब्लॉक हो जाती हैं, एवम हार्ट अटैक का ख़तरा बढ़ जाता है. मध्यम स्तर की 20 मिनट नियमित एक्सरसाइज़ इन तीनों प्रमुख कारणों को कम करती है, एवम ब्लड वेसल में थक्का जमा होने से बचाती है. नियमित एक्सरसाइज़ से ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहता है, इन्सुलिन रेसिस्टेंस कम होता है जिससे ब्लड शुगर कंट्रोल होती है साथ ही LDL (बैड कोलेस्टेरॉल) के ब्लड वेसल में जमाव को कम करती है एवम HDL (गुड कोलेस्टेरॉल) को बढ़ाती है.
हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट
सबसे पहले हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में अंतर जानना काफ़ी ज़रूरी है. जब हार्ट की ब्लड वेसल में कोलेस्टेरॉल के थक्के फट जाते हैं तो अचानक ब्लड वेसल पूरी तरह बंद हो जाती है एवम हार्ट की मसल्स को ब्लड सप्लाई नहीं हो पाती ना ही ऑक्सीजन मिल पाती जिससे वो हिस्सा क्षतिग्रत होना शुरू हो जाता है. इसे हार्ट अटैक कहते हैं.
सडन कार्डियक अरेस्ट हार्ट अटैक नहीं होता. इसमे हार्ट के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में अचानक गड़बड़ हो जाने से हार्ट की धड़कन अनियमित एवम अनियंत्रित हो जाती है. जिससे धड़कनें ख़तरनाक तरीके से काफ़ी तेज़ (200-250) हो जाती हैं इस अवस्था को वेंट्रिकुलर फ़िब्रिलिशन कहते हैं. हार्ट सही ढंग से पम्पिंग नही कर पाता, जिससे शरीर के सभी अंगों में ब्लड का प्रवाह सही तरीक़े से नहीं हो पाता. ब्रेन में ब्लड का प्रवाह रुकने के कुछ मिनटों में ही इंसान बेहोश हो जाता है. और अगर इस अवस्था मे तुरंत एमरजेंसी इलाज़ चालू न किया जाए तो मृत्यु निश्चित होती है.
अत्यधिक एक्सरसाइज़ और कार्डियक अरेस्ट
मध्य युवावस्था में जिन्हें पहले हार्ट अटैक हो चुका है या कार्डियोमायोपैथी यानी हार्ट की मसल्स की कमजोरी होती है या हार्ट अटैक होने के जरूरी रिस्क फ़ैक्टर जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, ज़्यादा कोलेस्टेरॉल, स्मोकिंग, मोटापा आदि हो. ऐसे लोगो में जो कि आम तौर पर गतिहीन ज़िंदगी जीते हैं, अगर वो अचानक से अत्यधिक या माध्यम स्तर की भी एक्सरसाइज़ चालू कर दें तो उनके हार्ट की ब्लड वेसल में कोलेस्टेरॉल का थक्का अचानक फट सकता है एवम हार्ट अटैक हो सकता है. इस अवस्था में छाती में तेज़ दर्द होता है और अगर सही समय पर मेडिकल सहायता मिल जाए तो इन्हें बचाया जा सकता है.
दुर्लभ परिस्थिति में हार्ट अटैक से कार्डियक अरेस्ट हो सकता है. ये केवल शारीरिक ही नहीं कई बार इमोशनल स्ट्रेस से भी हो सकता है. एमरजेंसी इलाज़ में कार्डिओ पल्मोनरी रिससिटेशन यानी चेस्ट कंप्रेशन, छाती को ज़ोर से एवं तेज़ी से बार-बार दबाना जिससे पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन फेफड़ों व ब्रेन में पहुंच पाती है, जब तक कि हार्ट की धड़कन नॉर्मल नहीं हो जाती. वेंट्रिकुलर फ़िब्रिलिशन की अवस्था में मशीन के माध्यम से इलेक्ट्रिकल शॉक दिया जाता है, जिससे हार्ट की धड़कन को दोबारा नॉर्मल करने का प्रयास किया जाता है. इस तरह की मशीनें जिन्हें ऑटोमेटेड इलेक्ट्रिकल डेफ़िब्रिलेटर कहा जाता है, आजकल पब्लिक प्लेसेस पर लगाई जाती है. आजकल सभी जिम में इन्हें लगाया जाता है. साथ ही आम लोगों को इसके बारे में जागरूक किया जाता है ताकि अगर कभी किसी के भी साथ इस तरह की स्थिति हो जाए तो इसका उपयोग करके उस व्यक्ति की जान बचाई जा सके.
एमरजेंसी में इन सबके साथ ही कुछ जीवनरक्षक दवाएं, धड़कनों को नियमित व नियंत्रित करने वाली दवाएं, साथ ही ब्लड प्रेशर बढ़ाने वाली दवाएं दी जाती हैं.
सडन कार्डियक अरेस्ट के लक्षण और किन लोगों को है सबसे अधिक ख़तरा
कुछ व्यक्तियों को अपनी हार्ट की धड़कनें एकदम से बढ़ती हुई महसूस होती हैं और साथ ही चक्कर आने लगते हैं. ये ही वो लक्षण हैं, जो कि हार्ट की धड़कनों में होने वाली इस डिज़ीज़ के लिए अलर्ट कर देते हैं. पर हर बार इस तरह के प्रारंभिक लक्षण आएं ये ज़रूरी नहीं. लगभग 50% केसेस में बिना किसी प्रारंभिक लक्षण के सडन कार्डियक अरेस्ट हो जाता है.
रिस्क फ़ैक्टर
1. 75% सडन कार्डियक अरेस्ट ऐसे व्यक्तियों में होता है जिनको पहले हार्ट अटैक आ चुका हो और हार्ट की पम्पिंग कैपेसिटी 35% से कम हो चुकी हो.
2. हार्ट अटैक के पहले 6 महीने में सडन कार्डियक अरेस्ट की संभावना सबसे ज़्यादा होती है.
3. सडन कार्डियक अरेस्ट कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ में सबसे ज़्यादा देखने को मिलता है इसलिए हार्ट डिज़ीज़ के सभी रिस्क फ़ैक्टर जैसे धूम्रपान, अल्कोहल का सेवन, व्यायाम नहीं करना, जंक फूड का सेवन भी इसके लिए इसके रिस्क को बढ़ा देते हैं.
4. कुछ जन्मजात हार्ट की बीमारियों में भी सडन कार्डियक अरेस्ट की संभावना काफ़ी ज़्यादा होती है, जैसे ब्रूगाडा सिंड्रोम, ARVD, लॉन्ग QT सिंड्रोम, हाइपरट्राफ़िक कार्डियोमायोपैथी आदि.
5. हार्ट फ़ेलियर वाले मरीज़ जिनमे हार्ट की पम्पिंग कैपेसिटी 30% से कम होती है उनमें सडन कार्डियक अरेस्ट की संभावना 6-9 गुना ज़्यादा होती है.
6. कुछ तरह की हार्ट की मांसपेशियों की बीमारी जिन्हें कार्डियोमायोपैथी कहते हैं उनमें सडन कार्डियक अरेस्ट की संभावना काफ़ी ज्यादा पाई जाती है.
7. कई बार गुर्दो की बीमारी के कारण शरीर मे इलेक्ट्रोलाइट के असंतुलन के कारण विशेषतः पोटैशियम की अधिकता के कारण भी सडन कार्डियक अरेस्ट देखा जाता है.
8. कुछ तरह की दवाओं के सेवन से भी सडन कार्डियक अरेस्ट का ख़तरा काफ़ी बढ़ जाता है इसीलिए अक्सर ये सलाह दी जाती है कि कोई भी दवा खासकर ऐंटीबायोटिक चिकित्सक परामर्श के बिना कभी न लें.
पहचान, जांच और उपचार
सडन कार्डियक अरेस्ट अक्सर अपेक्षाकृत युवावस्था में देखने को मिलता है. अतः उन सभी व्यक्तियों को, जिनमें हार्ट की धड़कनें अनियमित एवम अनियंत्रित महसूस होती हों, हार्ट डिज़ीज़ के कारण जिनके हार्ट की पम्पिंग कैपेसिटी 35% या उससे कम रहती हो, जिनको पहले कभी एक बार भी सडन कार्डियक अरेस्ट का दौरा पड़ चुका हो या जिनकी फ़ैमिली में इस तरह की कोई मृत्यु हो चुकी हो, ऐसे सभी व्यक्तियों को अपने कार्डियोलॉजिस्ट से मिलकर अपना पूरा हार्ट चेकअप करवाना चाहिए. ECG, इकोकार्डियोग्राफ़ी, स्ट्रेस टेस्ट, हॉल्टर टेस्ट, हार्ट की MRI आदि कुछ जांचों के माध्यम से हम इन संभावित मृत्यु के कारणों को समय रहते पहचान व्यक्ति की जान बचा सकते हैं.
उपचार
ऐसे सभी संभावित मरीजों में, जिनमें सडन कार्डियक अरेस्ट की रिस्क काफ़ी ज़्यादा हो उनमें एक ख़ास क़िस्म की मशीन जिसे AICD (ऑटोमेटेड इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डीफ़िब्रीलेटर) कहते हैं लगाई जाती है. ये एक किस्म का पेसमेकर होता है, जो कि हार्ट की अनियंत्रित एवम अनियमित धड़कनों को पहचानाता है, एवं जब भी सडन कार्डियक अरेस्ट की अवस्था आती है, तुरंत इलेट्रिकल शॉक देकर हार्ट की धड़कनों को नियमित कर देता है, जिससे अचानक मृत्यु को रोक दिया जाता है. ये एक किस्म का कंप्यूटर होता है जिसमे हार्ट की धड़कनों का पूरा डेटा होता है साथ ही धड़कनों की गड़बड़ी के सभी दौरे रिकॉर्ड हो जाते हैं. जिससे कार्डियोलॉजिस्ट बाद में देखकर आवश्यक दवाओं का उपयोग करके उचित इलाज करते हैं.
इस के अलावा हार्ट की इलेक्ट्रिकल सर्किट की जांच जिसे इलेक्ट्रो फ़िज़ियोलॉजिकल स्टडी कहते हैं, उससे हार्ट की एब्नॉर्मल इलेक्ट्रिकल सर्किट को जांच करके उसे रेडियो फ्रीक्वेंसी से ठीक किया जाता है.
इनपुट्स साभार: डॉ हेमन्त चतुर्वेदी, फ़ेलो अमेरिकन कॉलेज ऑफ़ कार्डियोलॉजी, वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ, इटरनल हॉस्पिटल, जयपुर
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