हम बतौर लेखक अपनी किताब छपने तक ही सोचते हैं, पर असली काम तो उसके बाद ही शुरू होता है और वह है किताब को पाठकों तक पहुंचाने की जद्दोजहद. देश के अग्रणी हिंदी पब्लिकेशन राजकमल प्रकाशन ग्रुप की किताबों की मार्केटिंग की ज़िम्मेदारी संभालनेवाले अलिंद माहेश्वरी ने बताया कैसे एक लेखक और प्रकाशक मिलकर हिंदी के लिए बेहतर माहौल बना सकते हैं. ‘हिंदी वाले लोग’ में आज अलिंद से ख़ास बातचीत.
यदि आप एक लेखक या हिंदी के विद्यार्थी हैं तो आपको राजकमल प्रकाशन के अलिंद माहेश्वरी का यह छोटा-सा साक्षात्कार ज़रूर पढ़ना चाहिए. लेखकों को अपनी किताब पाठकों तक पहुंचाने के लिए क्या-क्या करना चाहिए? विद्यार्थियों को हिंदी में मौजूद तमाम मौक़ों का लाभ कैसे मिल सकता है? जैसे ज़रूरी सवालों के जवाब आपको मिल जाएंगे.
ऑडियो बुक्स, पॉडकास्ट्स, ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म्स के चलते हिंदी और हिंदी की किताबों को कितना फ़ायदा पहुंचा है?
इसमें कोई दो राय नहीं कि इन माध्यमों से हिंदी की किताबों का प्रचार-प्रसार काफ़ी बढ़ा है. बल्कि हमें कहना चाहिए कि हिंदी भाषा और साहित्य के लिए यह एक नई पहल है. दरअसल इन माध्यमों का प्रयोग एक लेखक या प्रकाशक क्यों करता है, पहले हमें इसे समझ लेना चाहिए.
जब भी कोई लेखक एक किताब लिखता है, तब उसके भीतर कहीं न कहीं यह बात चल रही होती है कि उसकी रचना समाज के हर व्यक्ति तक पहुंचे और पाठक चाहता है कि उसे हर लेखक की सामग्री प्राप्त होती रहे. ऐसे में बतौर प्रकाशक हमारी यह ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है कि हम लेखक और पाठक के बीच एक मज़बूत पुल का निर्माण करें. इसलिए जिन माध्यमों की बात आप कर रहे हैं, ये सब लेखक-पाठक संबंध को मज़बूती प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
दूसरे, आजकल लोगों की व्यस्तता बहुत बढ़ गयी है. लेकिन इसके बावजूद वो किताबों से दूर नहीं होना चाहते. ऐसे में ऑडियो बुक्स या पॉडकास्ट्स वगैरह हमारी बहुत सहायता करते हैं. मसलन सुबह ऑफ़िस जाते हुए अधिकतर लोग अपनी गाड़ियों में ऑडियो बुक्स चलाकर किताब का आनंद लेते हैं. इन माध्यमों का सबसे बड़ा यही फ़ायदा है कि पाठक हमसे दूर नहीं हो पाते.
इतने सारे मौक़े हिंदी के लिए मौजूद हैं, क्या अब हिंदी बेहतर ढंग से मॉनेटाइज़ हो रही है?
यह सच है कि अगर किसी भाषा के चलते लोगों को रोज़गार मिलेगा तो ही वह भाषा और बेहतर ढंग से पनपेगी. हिंदी भाषा में जिस तरह के नित नए माध्यमों का प्रसार बढ़ रहा है, उसे देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि हिंदी भाषा के छात्रों के लिए नए विकल्प दिनोंदिन बढ़ रहे हैं. पहले अक्सर हिंदी भाषी छात्रों के सामने यह सवाल उठता था कि ‘हिंदी पढ़कर क्या करोगे?’ लेकिन अब स्थिति ऐसी नहीं रह गयी है. आप जानते हैं कि मीडिया क्षेत्रों और प्रकाशनों की दुनिया में रोज़ नए रोज़गार के अवसर आ रहे हैं. आप जितने भी बड़े प्लैटफ़ॉर्म्स को देखेंगे तो पाएंगे कि वहां सूचनाएं हिंदी भाषा में भी प्रसारित हो रही हैं. तो ज़ाहिर है कि उस काम के लिए हिंदी भाषा के जानकार लोगों की ही ज़रूरत पड़ती होगी. इन सबको देखते हुए हम कह सकते हैं कि हिंदी के ज़रिए पैसा कमाना अब संभव हो गया है.
हिंदी में रोज़गार के लिए आपके अनुसार कौन-सी बातें ज़रूरी हैं?
जब भाषा के ज़रिए रोज़गार की बात आए तो मैं दोबारा कहना चाहूंगा कि हिंदी भाषी छात्रों को निराश होने की क़तई आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें चाहिए कि भाषा पर उनकी पकड़ मज़बूत हो व साथ ही मार्केट में क्या चल रहा है, इसकी जानकारी हो. अख़बार पर नज़र हो, तमाम पत्रिकाओं पर नज़र हो. यदि वह द्विभाषी हैं तो और भी उत्तम. तमाम संस्थाओं को क़ाबिल युवाओं की ज़रूरत होती है. इन संस्थाओं से जुड़कर वह अपना बेहतर भविष्य बना सकते हैं. द लल्लनटॉप, अमेज़न, गूगल जैसी बड़ी संस्थाएं इसके उदाहरण हैं साथ ही साथ OTT के ज़माने में हर स्क्रिप्ट राइटिंग या ज़्यादातर सिरीज़ और फ़िल्म को हर भाषा में लाने की कोशिश होती हैं, यह भी हिंदी वालों के लिए रोज़गार की बहुत सम्भावनाएं हैं. आपको बस ख़ुद को रोज़ाना मांजना है, आनेवाले किसी भी मौक़े को हाथों-हाथ लेने के लिए तैयार रखना है.
हिंदी लेखन के क्षेत्र में आनेवाले युवाओं को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
देखिए, लेखन और मार्केटिंग दो बिल्कुल अलग चीजें हैं. एक युवा लेखक के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि उसे अपनी साहित्यिक परम्परा का पूरा भान हो. उसे कुछ भी लिखने से बचना चाहिए. चूंकि आजकल सोशल मीडिया का दौर है इसलिए अधिकतर चीज़ें त्वरित तौर पर लिखी जा रही हैं. लेकिन उसका कोई मतलब नहीं रह जाता तबतक जबतक मेहनत और गहन शोध से आपने कुछ न लिखा हो. लिखना एक सतत क्रिया है जोकि अध्ययन द्वारा ही संभव ही हो सकता है. हमारे साहित्य में एक कहावत चलती है कि जो पढ़ता है वही अच्छा लिख सकता है. निरी सस्ती प्रेम कहानियां या कविताएं लिखकर आप अच्छा यश नहीं कमा सकते हैं. जबतक एक लेखक के भीतर ‘क्या लिखा जाए और क्या नहीं’ की समझ नहीं आ जाती तबतक उसे अपने अध्ययन पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए. इसका अर्थ यह कतई नहीं कि वह लिखना ही बन्द कर दे. लिखे ज़रूर लेकिन छपवाने का ख़याल थोड़ा स्थगित करके. चूंकि भविष्य में लोग आपके लेखन से ही आपको जानेंगे, अत: इस काम को पूरी गंभीरता से करना चाहिए.
मार्केटिंग के लिहाज से युवा लेखकों को कौन-सी बात याद रखनी चाहिए?
मार्केटिंग की बात करें तो यह लेखन के बाद एक दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू है. लेखक ने किताब लिख दी, अब उसके आगे क्या? उसकी मेहनत का उसे कैसे लाभ पहुंचे? या उसका जीवन यापन लेखन द्वारा कैसे हो? ये सारे सूत्र मार्केटिंग की ओर हमें ले जाते हैं. यहां एक सीधा सा व्यावसायिक फ़ंडा है, किताब जितनी बिकेगी लेखक और प्रकाशक को उतना ही फ़ायदा पहुंचेगा. हिंदी भाषी लेखकों की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के पीछे एक कारण यह भी है कि वो अपनी ही किताब के प्रचार-प्रसार के लिए आगे नहीं आना चाहते. ऐसा क्यों, इसपर हमें नहीं जाना चाहिए. लेकिन हमें अपने लेखकों को इस पहलू से जागरूक करना चाहिए. आजकल सोशल मीडिया का दौर है, मार्केटिंग के तमाम साधन और माध्यम पूरी तरह से सक्रिय हैं और बतौर प्रकाशक हमें उनका बेहतर उपयोग करना चाहिए और हम करते भी हैं.