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Home ज़ायका

कितना जानते हैं आप श्रीखंड का इतिहास ?

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
May 28, 2021
in ज़ायका, फ़ूड प्लस
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कितना जानते हैं आप श्रीखंड का इतिहास ?
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गर्मियों का आना सिर्फ़ मौसम का बदलना नहीं है, भोजन का, जीवन का बदल जाना भी रहा है. याद करके देखिए, बरसों तक हमारे जीवन की गर्मियों की यादें भी अलग हैं. ये शायद इसलिए कि भारतीय परिवेश में गर्मियां पूरी ठसक के साथ आती रहीं और जैसे ही गर्मी आई रसोई में खानपान बदल जाता था. हालांकि ये सर्दियों में भी होता रहा और बरसात में भी, पर गर्मियों की यादें ज़्यादा हैं और इन्हीं यादों में बड़ी याद है दही से बने व्यंजनों की. होली पर दही बड़े से शुरू होकर ये कहानी गर्मी बढ़ते-बढ़ते लस्सी, छाछ, दही-पूरी, मिष्टिदोई (बंगाल) और श्रीखंड तक चली आती है… और श्रीखंड तक आते-आते ये मिठाई में तब्दील हो जाती है.

 

अब जब इस तरह से इस बारे में सोचती हूं तो लगता है कितना व्यवस्थित था हमारा समाज, मौसम के हिसाब से भोजन करने वाला. और महिलाओं और रसोइयों के लिए भी सहिष्णु, आप कहेंगे ये महिलाओं की बात कहां से आई? अच्छा चलिए, सोचकर देखते हैं भरी गर्मी में बड़े-बड़े कड़ाहों में मिठाई नहीं बनाई जा रही, बल्कि घर के आंगन में बैठकर दही में मिश्री मिलाकर मिठाई बना ली गई. सोचकर देखेंगे तो पाएंगे कि गर्मियों में बनने वाले कई व्यंजन ऐसे हैं, जिन्हें बनाने के लिए घर की महिलाओं को चूल्हे के आगे बैठने की ज़रूरत ही नहीं थी. अब वैसे आप ये भी कह सकते है की भारतीय महिलाएं स्मार्ट थीं कि उन्होंने ऐसे व्यंजन ढूंढ निकाले, जिन्हें बनाने में वक़्त कम लगता था और शरीर को ठंडक भी मिलती थी.

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इतिहास के पन्नों से: श्रीखंड भारत की सबसे प्राचीन मिठाइयों में से एक है. फूड हिस्टोरियन और लेखक जशभाई बी प्रजापति और बब्बू एम नायर की वर्ष 2003 में आई किताब “द हिस्ट्री ऑफ़ फ़र्मेंटेड फूड” के अनुसार भारत में श्रीखंड का उल्लेख 500 बीसीई के समय से ही पाया जाता है. पुराने गुजराती साहित्य में भी लम्बे समय से श्रीखंड का उल्लेख शिखरिणी के रूप में मिलता है. संस्कृत ग्रंथों और साहित्य में भी रसाला और शिखरिणी या मर्जारा के नाम से श्रीखंड का उल्लेख मिलता है.
दधिबंध तुल्यसितं त्वार्ध्पयो गालितं शनकै:
मरिचैलाशशिसहितं भवति रसालाभिधम लौके
अर्थात रसाला, शिखरिणी के गुण और लक्ष्य बंधे हुए दही और उसी के बराबर मिश्री/चीनी और उसका आधा दूध मिलाकर, उसमें इलायची और कपूर मिलाकर, जो बनाया जाता है उसे रसाला कहते है. ‘श्रीखंड’ इसी शिखरिणी या रसाला का आधुनिक रूप है, जिसे प्राचीन समय से ही गुजरात और महाराष्ट्र का व्यंजन माना जाता है.

श्रीखंड तेरे कितने रूप: आम तौर पर तो श्रीखंड दही, शक्कर और इलायची पाउडरऔर ज़रा-से केसर का मिश्रण ही है, पर समय के साथ इसके नए फ़्लेवर सामने आते रहे. महाराष्ट्र में जहां इसका आम्रखंड वाला रूप ज़्यादा प्रचलित है, वहीं बंगाल का मिष्टिदोई भी इसका एक रूप मान जा सकता है. बदलते समय के साथ अन्य फलों और अखरोट और दूसरे मेवों यानी ड्राइ फ्रूट्स के साथ इसके कई फ़्लेवर बनाए जाने लगे हैं. स्ट्रॉबेरी के साथ बनाया श्रीखंड भी अलग ही रंगत एवं स्वाद लिए होता है!

कहानियों में श्रीखंड: क़िस्सों-कहानियों का तो ऐसा है कि भारत की कोई भी पुरानी मिठाई हो और उससे पांडवों का कोई सम्बन्ध न हो ऐसा तो मुश्क़िल ही है.अब क़िस्सा ये है कि श्रीखंड का आविष्कार भीम ने किया था. कहा जाता है कि जब भीम अज्ञातवास में थे, तब उन्होंने एक वर्ष के लिए राजा विराट की पाकशाला में रसोइए का काम किया था. उन्हें हमेशा से पाककला में रुचि थी, पर राजकुमार होने के नाते युद्धविद्या और शिक्षा पर ध्यान देना उनके लिए अनिवार्य था. पर वनवास के दौरान उन्हें अज्ञातवास भी भोगना था. कहा जाता है इसी दौरान उन्होंने भोजन सम्बन्धी कई प्रयोग किए और एक दिन दही को बांधकर बने हुए चके में थोड़ी मिश्री मिलाकर उसे खूब मथा और जब वो तैयार हो गया तो उसे चखाया गया श्री के स्वामी श्रीकृष्ण को. और आपने इसे मिठाइयों में श्रेष्ठ की उपाधि देते हुए ‘शिखरिणी’ नाम दिया और दिया एक सुझाव भी दिया कि इसमें थोड़ा केसर भी मिलाया जाए… तो इस तरह से श्रीखंड के आविष्कारक हुए भीम और उसके विकासक्रम और नामकरण में योगदान दिया श्रीकृष्ण ने.

श्रीखंड वाला क़िस्सा: श्रीखंड ख़ुद खाना तो अलग ही बात है, पर “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” में जेठालाल को श्रीखंड पूड़ी का नाम सुनते ही उछलते देखना, बिल्कुल अलग अनुभव है. वहीं दूसरी तरफ़ भिड़े भाई के घर बने आम्रखंड के बारे में देखना-सुनना भी मज़ेदार है. कुल मिलाकर गुजराती परिवार का श्रीखंड और मराठी परिवार का आम्रखंड!
हम जब छोटे थे तो श्रीखंड दो तरह से बनता था: एक घर में दही बांधकर और दूसरा बाज़ार से चका लाकर. इलायची और केसर हमारे घरों में श्रीखंड का अभिन्न अंग रहे. एक और चीज़ जो ज़रूरी तौर पर इसमें डाली जाती थी, वो थी चारोली या चिरौंजी (चना चिरौंजी वाली नहीं ),ये श्रीखंड में अलग ही स्वाद ले आती थी. आम्रखंड से हमारा पाला मुंबई पहुंचने के बाद ही पड़ा. उसके पहले आम्रखंड वाले रूप से हम अनजान थे. जैसे-जैसे बाज़ार बढ़ता गया श्रीखंड के कई फ़्लेवर और रूप सामने आते गए, पर हमें तो आज भी इलायची वाला श्रीखंड सबसे अच्छा लगता है!
अच्छा, अब आप भी हमें बताइएगा कि आपको कौन-सा श्रीखंड पसंद है? और अपना कोई श्रीखंड से जुड़ा क़िस्सा हमें लिख भेजिएगा, इस आई डी पर: [email protected]अगली बार जल्द मिलेंगे, यहीं, इसी कोने पर, चटोरी बातों के साथ…

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

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