हल्की बरसात इनमें स्वाद बढ़ा देती है
आम की क़िस्म उसे ख़ास बना देती है
बात क्या हो रही है आप समझ ही गए हैं और समझे भी क्यों न? मौसम ही ख़ास है अभी और इस ख़ास मौसम में एक ही फल है जो आम होते हुए भी सबसे ख़ास है. चटनी, आम पना, लौंजी, मुरब्बा, अचार से होता हुआ मौसम पूरी तरह आम की दहलीज़ तक पहुंच चुका है…
इस मौसम में घर-घर में मैंगो शेक, आमरस, मैंगो कुल्फ़ी,आम पापड़ का दौर चला आया है. चूसने वाले, काट कर खाए जाने वाले, आइसक्रीम में आम डालकर खाने, श्रीखंड में, फलूदा में आम मिलाने तक “आम” रसोई के हर हिस्से में अपनी जगह बना लेता है इस वक़्त तक. और फिर भारतीय लोगों के जीवन में तो आम के मौसम में सुबह की शुरुआत से लेकर रात तक आम का इतना दख़ल होता है कि यूं लगता है जैसे बिना आम के जीवन, जीवन ही न हो..
बेहतरीन स्वाद ,उम्दा रंग, दिल तक उतर जाने वाली ख़ुशबू और आत्मा को तृप्त कर देने वाला स्वाद ये सभी वो बातें हैं, जो आम को ख़ास बनती हैं. इतना ख़ास कि भारतीय साहित्य, कला, धर्म, इतिहास और आम जीवन में इसने अपना अलग ही स्थान बनाया हुआ है. आम के चाहने वाले आपको पूरे भारत में मिल जाएंगे और इन चाहने वालों के क़िस्से सुनाने वाले भी. ख़ासकर उत्तर भारत में तो आपको आम के इतने क़िस्से मिलेंगे और इतने कद्रदान भी कि आप क़िस्से सुन-सुन के आम के दीवाने हो जाएंगे. और आम की क़िस्मों की तो पूछिए ही मत… 1500 क़िस्म का आम उगाया जाता है भारत में. अब लगाइए बैठकर हिसाब कि एक आम का दीवाना अगर ये सोच ले कि हर दिन उसे आम की नई क़िस्म का लुत्फ़ उठाना है तो सिर्फ़ भारत के आमों का स्वाद चखने में उसे चार साल से ज़्यादा का वक़्त लगेगा! तो बताइए भला, कैसे इस नायब चीज़ का नाम आम रखकर आम शब्द को भी ख़ास बना दिया गया है.
इतिहास के झरोखे से आम: जानते हैं? आम की उत्पत्ति तक़रीबन 5000 साल पुरानी मानी जाती है. राम के वन गमन में, पांडवों के वनवास में, बुद्ध की तपस्या में, हर कहानी में, हर क़िस्से में, हर ऐतिहासिक दस्तावेज़ में आम ने चुपके से अपनी जगह बना ली.
महाभारत में एक प्रसंग आता है जिसमें गौरमुख युध्ष्ठिर से शरद ऋतु में एक पका हुआ आम लाने के लिए कहते हैं. अब साहब समस्या ये थी कि शरद ऋतु यानी कि ठंड वाला मौसम और उस वक़्त पका हुआ आम आएगा कहां से? आज जैसा समय तो था नहीं की कोल्ड स्टोरेज से आम लाकर दे दिया जाए तो क्या किया जाए? तो बुलाया गया लाइफ़ सेवर श्रीकृष्ण को और उन्होंने आकर एक सच बोला तो आम का पौधा उत्पन्न हो गया. अब युधिष्ठिर की बारी थी उन्होंने सच बोला तो ये पौधा पेड़ बन गया. इसी प्रकार भीम, अर्जुन व नकुल ने भी सच बोला और वृक्ष में फल लग गए. सहदेव ने सच बोला तो आम बड़े हो गए और द्रोपदी ने सच बोला तो आम पक गए और युधिष्ठिर सच बोलते हुए परीक्षा में पास हो गए. अब आम की बात तो हुई ही, पर ये सोचिए कि सच का भी कितना महात्म्य है की शरद ऋतु में भी पका आम मिल गया सत्य के बल पर.
कैसे पहुंचा दुनियाभर में: भारतीय इतिहास में तो आम है ही बरसों से और आम का जन्मस्थान भी भारतीय क्षेत्र को ही माना जाता है पर ये सिर्फ़ भारत में ही नहीं दुनिया के कई देशो में पसंद किया जाता है और माना जाता है की एशिया के दूसरे देशों में आम की पहुंच ईसा से चौंथी और पांचवी शताब्दी के समय हुई. जानते हैं, धर्मों ने सिर्फ़ अपना प्रचार नहीं किया, बल्कि उन्होंने अपने साथ भोजन को दूसरे देशों में पहुंचाया. आम भी ऐसे ही जगह-जगह पहुंचा. सबसे पहले बौद्ध धर्म के साथ ये नए स्थानों तक पहुंचा, फिर इस्लाम के आगमन के साथ ये उस समय के इस्लामी देशों तक पहुंचा और फिर मिश्नरियों ने इसे पहले फ़िलिपीन्स और बाद में अन्य देशों तक पहुंचाया. पश्चिमी देशों तक आम को पहुंचाने का श्रेय पुर्तगाली व्यापारियों को जाता है. और आम केऑस्ट्रेलिया पहुंचने की कहानी तो बड़ी मज़ेदार है. ऑस्ट्रेलिया से घोड़े मंगवाए जाते थे, पानी के जहाज की सहायता से अब जब ये घोड़े यहां उतार लिए गए तो एक बार ख़ाली जहाज में आम के पौधे भेजे गए. इस तरह आम ने ऑस्ट्रेलिया में अपनी जगह बनाई.
आम चाहे दुनिया के हर कोने में पहुंच गया और आम के पौधों से पेड़ उगाकर आम चाहे कई देशों ने लगा लिए पर ये सबसे बड़ा सच है कि पौधे एक जगह से दूसरी जगह पहुंच गए, लेकिन मिट्टी, पानी, हवा और रखरखाव के अंतर ने कहीं भी दूसरी जगह उगाए गए आम को भारतीय आम का स्वाद, गंध और रंग नहीं दिया.
क़िस्सा आम का: नाम न कोई यार को पैगाम भेजिए,
इस फस्ल में जो भेजिए, बस आम भेजिए
ये बात तो मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी कह गए हैं. इतने शायर आम के दीवाने हुए हैं कि उनके क़िस्से सुनाने बैठें तो शायद न जाने कितने दिन तक ये क़िस्से चलते ही रहें. पर एक बड़ा मशहूर क़िस्सा है, वो तो सुनाना ही होगा.
एक बार लखनऊ के नवाब ने फ़कीर गोया को लखनऊ छोड़ने का आदेश दिया. गोया साहब भी लखनऊ छोड़ गए कि मैं मलीहाबाद से लखनऊ सिर्फ़ एक घोड़े के साथ आया था और एक घोड़े के साथ ही यहां से वापस जा रहा हूं. अब वापस मलीहाबाद जो पहुंचे तो उन्होंने नवाब को बेहतरीन मलीहाबादी सफेदों की एक टोकरी भेजी. अब नवाब ने जब वो आम चूसे तो उनकी लज़्ज़्त में खो गए. अब नवाब साहब टोकरी ख़ाली नहीं भेजना चाहते थे तो जानते हैं उन्होंने क्या भेजा आम के बदले? उन्होंने भेजे जवाहरात जब ये टोकरी गोया साहब के पास पहुंची तो वो मुस्कुराए और कहा कि हीरे की कद्र जौहरी ही पहचानता है. तो आज से इस सफ़ेदे का नाम जौहरी होगा. तब से मलीहाबादी सफ़ेदे को जौहरी के नाम से जाना जाता है.
यादों की गली से: मेरे बचपन की यादों में आम के बड़े ज़बर्दस्त क़िस्से हैं. और ज़्यादातर क़िस्से ननिहाल से जुड़े हैं. नानाजी के यहां अपने बाग़ के आम बहुत आते थे. एक पूरा कमरा आम से भर दिया जाता था और फिर सुबह, दोपहर, शाम उनमे से पके हुए आम निकाले जाते और उन्हें चूसकर खाया जाता. हम बच्चे तो उस आम के कमरे के इर्द-गिर्द मक्खियों की तरह भिनभिनाते थे. गर्मियों के उस वक़्त इतनी कैरी चूसी जाती की पूरी गर्मी बच्चो के चेहरे पर फोड़े-फुंसियां निकली रहतीं, पर मजाल है कि आम की जागीर पर से कोई अपना हिस्सा छोड़ दे! आम का वो कमरा आज भी मेरी यादों में वैसा का वैसा ही ताज़ा है अच्छा अब और क़िस्से नहीं, पर आपके भी कुछ क़िस्से होंगे न आम से जुड़े? हमें भी बताइएगा न, कुछ बातें कुछ क़िस्से… इस आई डी पर: [email protected]
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट