यह एक ऐसा अभूतपूर्व समय है, जिसने पूरी मानव जाति को कई बातें सिखाईं, वो बातें, जिन्हें हमें शायद पहले ही सीख लेना चाहिए था. पर कहते हैं न जब आंख खुले तभी सवेरा. कोरोना काल में ख़ुद को और औरों को सकारात्मक बनाए रखना सबसे कारगर तरीक़ा है. और ज्योति जैन की डायरी में दर्ज ये अनुभव आपको भी सकारात्मक बनाए रखेगा.
यूं तो मैं आम दिनों में भी अपनी पसंद के सारे काम कर लेती हूं, पर फ़िलहाल के लॉकडाउन में चूंकि बाहर नहीं जाना होता, सो और अतिरिक्त कार्य भी हो जाते हैं, जिनमें बागवानी भी शामिल है. इन दिनों माली भैया नहीं आ रहे, सो पुराने सीज़नल पौधों के सूखते चले गमलों में नए रोपे लगाने बैठी थी. मुझे ध्यान आया कि पिछले दिनों चौकोर गमला माली ने एक ओर रख दिया था, ये कहकर कि उसकी वॉटर लिली सूखकर ख़त्म हो चुकी है. वो मेरा पसंदीदा पौधा है. वॉटर लिली ज़रा-से में फैलकर अपने छोटे-छोटे गोल पत्तों से गमले की सुन्दरता और बढ़ा देती है. मैंने सबसे पहले वही गमला हाथ में लिया. वॉटर लिली सूख चुकी थी.
पर ये क्या…! एक बिल्कुल नन्ही सी, गोल पत्ती उस सूखी मिट्टी से झांक रही थी. मैंने फौरन उसमें पानी डाला. पिछले दस दिन से उसमें पानी बराबर दे रही हूं और आज… उसमें सात पत्तियां निकल आई हैं. और भी कई बिलकुल बूंद जैसी पत्तियां मिट्टी को चीर बाहर आने को उद्यत है. जीजिविषा का एक श्रेष्ठ नमूना…
वर्तमान हालात् के मद्देनज़र ये पूरा वाक़या यूं लगा कि हम ये न सोचें कि ये आख़िरी पत्ता है, बल्कि ये सोचें कि ये वो शुरुआती पत्ता है, जो समय के साथ पूरा गमला हरियाली से भर देगा. यही तो जीवन है!
हम घर में तमाम सुख-सुविधाओं के बाद भी छटपटा रहे हैं… बीमारी का डर कहीं न कहीं इस पत्ते को आख़िरी पत्ता समझ लेने पर मजबूर कर रहा है. लेकिन अपनी ओर से अपने अच्छे कर्म करते रहें. यथासंभव औरों की मदद करते रहें तो नैराश्य के काले बादल छटकर उम्मीदों की किरण अवश्य अपनी ऊर्जा प्रदान करेंगी. हमारे सद्कर्म व सकारात्मकता ही सुख और शांति का उद्गम स्थल हैं. और यही आख़िरी पत्ते को पहला पत्ता बनाते हैं.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट