ग़ज़ल हमेशा ही पढ़ने और सुनने वाले के दिल को छू जाती है, क्योंकि सच्चाई, सादाबयानी और साफ़गोई ग़ज़ल का हिस्सा होती है. हनीफ़ इंदौरी दानिश की इस ग़ज़ल में भी आपको आज के समय के सच की झलक ज़रूर ही दिखाई देगी.
झूठ को सच तो मिरे यार बना सकता है
ये हुनर सुन तुझे सरदार बना सकता है
तुझ को भी हक़ है सियासत में चले जाने का
तू अगर रेत की दीवार बना सकता है
ये नया दौर-ए-तरक़्क़ी है यहां सिक्कों से
कोई ख़िर्क़ा कोई दस्तार बना सकता है
मुख़्तलिफ़ रोग की बस एक दवा दे दे कर
ये मसीहा हमें बीमार बना सकता है
ज़ो’म सज्दों का जबीं पर न सजाए फिरिए
ये तकब्बुर भी गुनहगार बना सकता है
होश वालों में ये चर्चा भी बहुत आम हुआ
मुझ को पागल भी मिरा यार बना सकता है
डाल कर ख़्वाब नए अध-खुली आंखों में यहां
शो’बदा-बाज़ भी सरकार बना सकता है
बोझ हो तेरी अना पर जो सहारा ‘दानिश’
वो सहारा तुझे लाचार बना सकता है
ख़िर्क़ा – फ़कीरों का लिबास; दस्तार – पगड़ी; ज़ोम – अहंकार, जबीं – ललाट, माथा; तकब्बुर – ग़रूर, दर्प; शो’बदा-बाज़ – बाज़ीगर
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट