काबुली चने का नाम सुनकर क्या आपके भी दिल में कुछ-कुछ होता है? क्या-क्या याद आ जाता है आपको? छोले भटूरे? छोले कुलचे? छोले चावल? मुझे तो आजकल छोले देखकर इन सब के साथ-साथ प्रोटीन का भंडार दिखता है. नहीं समझे? जल्द ही समझ जाएंगे. चलिए आज बात करते हैं काबुली चने वाली…
वेजिटेरियन हैं? प्रोटीन के नाम पर शरीर में कुछ नहीं जाता, ऐसा आपने कितने ही लोगों को कहते सुना होगा. ये सच भी है, क्योंकि वेज फ़ूड में प्रोटीन सच में कम होता है और उससे भी बड़ी बात कि हमारी बदलती जीवनशैली के कारण वैराइटी में कमी आई है, जिसके कारण वेजिटेरियन लोगों को सारे तत्व ठीक ढंग से नहीं मिल पाते. पर यक़ीन मानिए, काबुली चने प्रोटीन और फ़ाइबर का भंडार हैं.
अब आप सोचेंगे कहां ये छोले भटूरे की बात करते-करते प्रोटीन का राग गाने लगी, देखिए चटोरी हूं तो बात तो चटोरेपन की होगी ही, पर साथ में ज़रा स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए तो बुरा ही क्या है?
कहानी काबुली चने की: नाम में क्या रखा है? ये आपने बहुत बार सुना होगा न, पर बात ये है कि नाम से फ़र्क़ तो पड़ता है! अब देखिए भारत में उगने वाले चने का नाम पड़ा काबुली चना तो लोगों को तो यही लगेगा न कि सबसे पहले काबुल से ये चना भारत आया होगा, पर सच ये है कि काबुल यानी अफ़गानिस्तान में तो ये चना न के बराबर उगता है. उगता तो ये भारत में बड़ी मात्रा में है, पर हुआ ये कि बहुत पहले काबुल के लोग भारत में व्यापर करते थे. यहां आसानी से आते-जाते भी थे और यहां रहते भी थे और उस समय ये लोगा बेचा करते थे “चना” और ये चना भारत की ही फसल होती थी. काबुल से आए व्यापारी बस उनका व्यपार करते थे और इसलिए इन चनों का नाम ही काबुली चना पड़ गया
जानिए कहां का है काबुली चना: अब यह चना काबुल का नहीं है तो इसका मतलब ये भी नहीं है कि इसका जन्म भारत में ही हुआ था. लगभग 9000 साल पहले के इसके अवशेष मिडिल ईस्ट में मिले हैं और 7500 साल के आसपास इसकी खेती किए जाने के प्रमाण टर्की में मिले हैं इसलिए इसे टर्की की पैदाइश कहा जाता है. है न ये मजेदार बात कि मनुष्यों ने बर्तन बनाने शुरू किए उसके पहले से चने उगाए और खाए जा रहे हैं.
कहां-कहां खाया जाता है इसे: काबुली चना सिर्फ़ भारत ही नहीं विश्व के लगभग सभी देशों में अलग-अलग रूप में खाया जाता है. हमारे यहां छोले के रूप में तो अमेरिका और यूरोप के देशों में सलाद या सूप के रूप में. वहीं हम्मस भी इसका बेहद प्रचलित रूप है.
चना मसाला और पिंडी छोले: इस कहानी में अब आएगा मज़ा! जानते हैं पिंडी छोले को पिंडी छोले क्यों कहते हैं? क्योंकि इनका जन्म रावलपिंडी, पकिस्तान (तब का भारत) में हुआ था. ये आम काबुली चने की सब्ज़ी या चना मसाला से रंग, टेक्स्चर और स्वाद तीनो में ही अलग होता है. इसमें चाय पत्ती का पानी उबालते समय मिलाया जाता है, जिसके कारण इसका रंग थोड़ा काला होता है और इसे बघारते टाइम इसमें प्याज़, लहसुन, टमाटर नहीं डाला जाता… बस, मसलों का सही मिश्रण होता है, जो इसे स्वाद देता है. मूल रूप से ये चाय पत्ती इस चनों में नहीं डाली जाती थी, बल्कि सूखा आंवला डाला जाता था, जो इनमे रंग और खटाई दोनों लाता है और विश्वास कीजिए कि सूखे आंवले के कारण छोले में जो स्वाद आता है, वो और किसी चीज़ से नहीं आता. आपने किसी पंजाबी दोस्त के घर या पंजाबी रेस्तरां में अगर छोले खाए होंगे तो आपको सूखे आंवले और अनारदाना पाउडर वाले छोले ही खाने मिले होंगे.
अब एक और ट्रिक छोले बनाते समय उसमे थोडा अनारदाना पाउडर डालिए और आप अगर उंगलियां चाटते न रह जाए तो कहिएगा!
रही बात चना मसाला की तो इसमें ग्रेवी वाले चने बनाए जाते हैं, बाक़ी आम घरों में बनने वाले छोले की बेसिक सब्जी तो सबको पता है ही.
क़िस्से छोले वाले: छोले के किस्से कहां नहीं है , छोले टिक्की, छोले भटूरे, छोले पराठे , छोले कुलचे मेरे दिमाग़ में तो हर जगह छोले भरे पड़े हैं सोचती हूं अगर ये छोले न हो तो ज़िन्दगी चले कैसे? पर आपको एक बात बताती हूं, छोलों को केवल तेल, मसालों के साथ मत खाइए. इन्हें गलाकर सलाद के रूप में खाइए, हम्मस के रूप में खाइए ये आपके शरीर से दुनियाभर की कमियां दूर कर देंगे साथ ही स्वास्थ्य कोअच्छा कर देंगे ये तो मानी हुई बात है.
बाक़ी नवरात्रि आ ही रही है तो छोले पूड़ी खाने की कितनी ही यादें हमारे सामने तैरने लगती हैं. वैसे अगर मेरी बात करें तो मैं छोलों के हर रूप की दीवानी हूं, ख़ासकर अमृतसरी छोले कुलचे मेरे फ़ेवरेट हैं. तो आपको छोले किस रूप में सबसे ज़्यादा पसंद हैं, हमें ज़रूर बताइएगा इस आईडी पर: [email protected] और हम जल्द मिलेंगे अगले किसी व्यंजन की बातें लेकर.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट