वर्ष 1964 में आई फ़िल्म हक़ीक़त का यह देशभक्ति गीत कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखा गया था. देश के लिए मर मिटनेवाले सैनिक, देशवासियों और साथी सैनिकों को आगे बढ़कर देश को संभालने की ज़िम्मेदारी लेने के लिए कहते हैं. उन्हें देश की रक्षा करते हुए शहीद होने का अभिमान है और साथ ही यह विश्वास भी कि उनकी शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी. देशभक्ति गीतों में कैफ़ी आज़मी की यह रचना विशिष्ट स्थान रखती है.
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
सांस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बांकपन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने के रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क़ दोनों को रुस्वा करे
वह जवानी जो ख़ूं में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
राह क़ुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले
बांध लो अपने सर पे कफ़न साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
खींच दो अपने ख़ूं से ज़मी पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए न रावण कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
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