टोक्यो में चल रहे पैरालंपिक खेलों में भारत के शानदार सफ़र में हरियाणा मूल के सुमित अंतिल का गोल्ड मेडल भी ख़ास रहा. पुरुषों के भाला फेंक के एफ़ 64 वर्ग के फ़ाइनल मैच में सुमित ने एक के बाद एक कुल तीन विश्व कीर्तिमान स्थापित किए.
टोक्यो पैरालंपिक में कल भारत ने दो गोल्ड मेडल्स जीते. जहां पहला गोल्ड शूटिंग में अवनि लखेड़ा ने जीता, वहीं दूसरा गोल्ड मिला भाला फेंक प्रतियोगिता के एफ़ 64 वर्ग में. इस मेडल को हासिल करनेवाले सुमित अंतिल ने फ़ाइनल मैच में छह बार भाला फेंका और उस दौरान तीन बार नया विश्व रिकॉर्ड बनाया.
छह प्रयासों में सुमित ने बनाए तीन विश्व रिकॉर्ड
23 वर्षीय सुमित अंतिल ने एफ़ 64 वर्ग के भाला फेंक प्रतियोगिता में जब पहली बार भाला फेंका तो उनके भाले ने 66.95 मीटर की दूरी तय की. यह नया विश्व रिकॉर्ड था. इस वर्ग में पिछला विश्व रिकॉर्ड था 62.88 मीटर का, जो कि ख़ुद उन्होंने ही वर्ष 2019 में बनाया था. अगले प्रयास में सुमित का भाला 68.08 मीटर की दूरी पर गिरा, यानी नया विश्व रिकॉर्ड. उसके बाद के दो प्रयासों में सुमित 65.27 और 66.71 की दूरी तक भाला फेंक पाए. अब तक तो उनका गोल्ड मेडल लगभग पक्का हो गया था. पर अपने पांचवें प्रयास में उन्होंने इसी मैच के दौरान दूसरी बार बनाए अपने वर्ल्ड रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 68.55 मीटर दूरी तक भाला फेंकने में क़ामयाबी हासिल की. उनका अंतिम थ्रो फ़ाउल रहा.
मज़े की बात यह रही कि सुमित ने जिस स्टेडियम में भाला फेंक में गोल्ड मेडल हासिल किया है, उसी स्टेडियम में नीरज चोपड़ा ने भी अपना ओलंपिक गोल्ड मेडल हासिल किया था. नीरज की तरह सुमित ने भी अपने पहले प्रयास से ही मैच पर अपना दबदबा बनाए रखा.
पहलवान बनने की इच्छा और वह सड़क दुर्घटना
हरियाणा मूल के सुमित अंतिल बचपन से ही खेलों में नाम कमाना चाहते थे. उनकी इच्छा पहलवान बनकर देश का नाम रौशन करने की थी. वे इसके लिए ट्रेनिंग भी ले रहे थे, पर वर्ष 2015 में 17 साल की उम्र में एक सड़क दुर्घटना ने उनके इस सपने को चकनाचूर कर दिया. दरअसल सुमित की बाइक को एक ट्रैक्टर ट्रॉली ने टक्कर मार दी थी, जिसके बाद उनका एक पैर घुटने के नीचे से काटना पड़ा था.
कई महीनों तक अस्पताल के बिस्तर पर पड़े रहे सुमित को वर्ष 2016 में नकली पैर लगवाया गया. वैसे सुमित का पूरा जीवन ही संघर्ष करते हुए बीता है. जब उनकी उम्र महज़ सात साल की थी तो उनके सिर से पिता का साया हट गया था. एयरफ़ोर्स में कार्यरत पिता की मृत्यु के बाद उनका और उनकी तीन बहनों के लालन-पालन की ज़िम्मेदारी उनकी मां के कंधों पर आ गई थी.
पहलवानी के बाद भाला फेंक की ओर रुझान
नकली पैर लग जाने के बाद सुमित ने एक बार फिर खेलों से जुड़ने का फ़ैसला किया. स्पोर्ट्स अथॉर्टी ऑफ़ इंडिया के कोच वीरेन्द्र धनखड़ ने उन्हें राह दिखाई. कोच नवल सिंह ने उन्हें भाला फेंक का प्रशिक्षण दिया. सुमित को भाला फेंक में पहली बड़ी क़ामयाबी वर्ष 2019 के वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मिली, जहां उन्होंने सिल्वर मेडल अपने नाम किया था.
सुमित की सफलता के बारे में बताते हुए उनके कोच नवल सिंह ने बताया कि अपने खेल के स्तर को बेहतर करने के लिए सुमित सामान्य खिलाड़ियों के साथ प्रैक्टिस किया करते हैं. वे नीरज चोपड़ा और शिवपाल सिंह जैसे भारत के चोटी के खिलाड़ियों के साथ अभ्यास करते हैं. टोक्यो ओलंपिक्स से पहले ऐथलेटिक्स की इंडियन ग्रांप्री प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था, जिसमें सुमित ने सामान्य खिलाड़ियों के साथ प्रतियोगिता में भाग लिया था. उस प्रतियोगिता में नीरज चोपड़ा और शिवपाल सिंह भी थे. सुमित ने तब 66.43 मीटर की दूरी तक भाला फेंककर सामान्य ऐथलीट्स के टूर्नामेंट में पैरा ऐथलीट का नया विश्व रिकॉर्ड बनाया था.