कुछ कहानियां आपके पास ख़ुद चलकर आती हैं, आप कुछ लिखने बैठते हैं और कोई दूसरी कहानी आपके पास आकर हाथ थाम लेती है और कहती है- ये क्या आज के दिन तो मेरे बारे में बात होनी चाहिए, आज की कहानी कुछ ऐसी ही है. दिवाली पर मैंने मिठाइयां बनाईं, मिठाइयों की बात भी की, पर एक मिठाई की बात ही नहीं हुई, जिसका जन्म ही दिवाली के दिन हुआ. बात शायद इसलिए नहीं हुई कि मैंने भी पहली बार ये कहानी सुनी और मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि मुझे अब तक ये पता नहीं था. और ये कहानी है काजू कतली की…
दिवाली हो, होली हो, राखी हो या बैसाखी हो… हर त्यौहार पर काजू कतली का बोलबाला रहता है और यह हमारे घरों में भी बनती रही है. ये भी सच्चाई है कि त्यौहारों पर जितनी खिल्ली लोग बेचारी सोहन पापड़ी की उड़ाते हैं, उतना ही मोह काजू कतली से जताते हैं. हालांकि पूरे त्यौहार ये बातें भी होती रहती हैं कि बाज़ार में मिलनेवाली आधी काजू कतली तो नक़ली होती है, लेकिन फिर भी काजू कतली से लोगों का मोह कम नहीं होता.
काजू कतली का इतिहास: बड़ी दिलचस्प और पवित्र कहानी है काजू कतली की. कहा जाता है मुगल बादशाह जहांगीर ने 52 सिक्ख धर्मगुरुओं और राजाओं को ग्वालियर के क़िले में बंदी बना रखा था. इन्हीं बंदियों में सिक्खों के छठवें धर्मगुरु गुरु हरगोविन्द जी भी थे. इस क़ैद में बंदियों की हालत बहुत ख़राब थी. अन्दर का माहौल भी अच्छा नहीं था और ना ही साफ़-सफ़ाई थी. गुरु हरगोविन्दजी ने क़ैदियों को अच्छे से रहना और अपने काम ख़ुद करना सिखाया. क़ैदियों और यहां तक कि पहरेदारों को भी स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कई बातें सिखाईं. फिर एक दिन जहांगीर ने आदेश दिया कि गुरु हरगोविन्द जी को रिहा कर दिया जाए और उनके बाहर निकलते समय जो भी क़ैदी उनके वस्त्र को पकड़कर बाहर आ सकें उन्हें भी रिहा कर दिया जाए. कहा जाता है गुरु जी ने 52 कलियों वाला कुर्ता बनवाया, ताकि सारे क़ैदी एक-एक कली को पकड़कर बाहर आ सकें. उनके रिहा होने की ख़ुशी और यादगार के रूप में जहांगीर के ख़ानसामा ने काजू की बर्फ़ी बनाई थी, जो उस दिन पहली बार बनाई गई थी. ये दिवाली का दिन था, जिसे सिक्ख बंदीछोड़ दिवस के रूप में मनाने लगे और इसी दिन हमारी काजू कतली ने भी जन्म लिया.
काजू कतली के कितने रूप: आजकल काजू कतली कई रूप में मिलने लगी है काजू पान, काजू पिस्ता बर्फ़ी, काजू पिस्ता रोल, काजू के एप्प्ल, काजू अंजीर की मिठाई, काजू अंजीर के रोल जैसे कई रूप आपको देखने मिल जाएंगे.
किस्से काजू कतली के: मुझे तो याद नहीं पर मम्मी बताती हैं कि पुराने ज़माने में घरों में औरतें हाथों से थपेड़कर काजू की बर्फ़ी बनाती थीं. बाद में धीरे-धीरे इसे बेलकर बनाया जाने लगा. इसे भी लोग अलग तरह से बनाते हैं. कुछ लोग इसमें रबड़ी या दूध मिलते हैं तो कुछ काजू को भिगोकर, फिर पीसकर बनाते हैं तो कुछ लोग मेरी तरह यानी सूखे काजू का पाउडर बनाकर उसमे चाशनी मिलाकर बनाते हैं.
काजू कतली मेरे घर पर त्यौहारों का अभिन्न हिस्सा है शायद इसलिए भी कि इसे मैं घर पर ही बना लेती हूं और इसमें मिलावट की सम्भावना नहीं होती और शायद इसलिए भी कि ये मेरे बेटे की बेहद पसंदीदा मिठाई है.
इस बार दिवाली का क़िस्सा है. हम मिठाइयां लेने बाज़ार गए. कई तरह की मिठाइयां ख़रीदने के बाद बेटा काजू कतली मांगने लगा. मैंने एक काजू का पैकेट उठाया और कहा “काजू कतली घर पर बनाएंगे.” वहां पास ही एक महिला खड़ी थीं, वो हंसने लगीं. फिर बोलीं,‘‘सच बाज़ार की काजू कतली में डर बना रहता न?’’ मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा, “हां बेटे को पसंद है, पर अभी त्यौहारों पर न जाने क्या मिला हो, इस बात का डर पहले ही लगने लगता तो घर पर बना लूंगी.”
मैंने सोचा भी नहीं था की काजू कतली का जन्म इस तरह हुआ होगा और इसकी कहानी का सम्बन्ध किसी इतनी बड़ी ऐतिहासिक घटना से होगा. इसीलिए तो कहते हैं कई बार क़िस्से हम तक ख़ुद चलकर आते हैं.
अच्छा, अब आप भी बताइएगा कि आपको काजू कतली का कौन-सा रूप पसंद है. इस ईमेल आईडी पर: [email protected]
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट