केदारनाथ सिंह की इस कविता में उन सूत्रों का ज़िक्र है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बोली-वाणी के ज़रिए हमेशा पहुंचाए जाते रहे हैं. ये वे सीखें हैं, जो पिछली पीढ़ी ने व्यावहारिकता की कसौटी पर पहले ही परख ली हैं.
मेरे बेटे
कुंए में कभी मत झांकना
जाना
पर उस ओर कभी मत जाना
जिधर उड़े जा रहे हों
काले-काले कौए
हरा पत्ता
कभी मत तोड़ना
और अगर तोड़ना तो ऐसे
कि पेड़ को ज़रा भी
न हो पीड़ा
रात को रोटी जब भी तोड़ना
तो पहले सिर झुकाकर
गेहूं के पौधे को याद कर लेना
अगर कभी लाल चींटियां
दिखाई पड़ें
तो समझना
आंधी आने वाली है
अगर कई-कई रातों तक
कभी सुनाई न पड़े स्यारों की आवाज़
तो जान लेना
बुरे दिन आने वाले हैं
मेरे बेटे
बिजली की तरह कभी मत गिरना
और कभी गिर भी पड़ो
तो दूब की तरह उठ पड़ने के लिए
हमेशा तैयार रहना
कभी अंधेरे में
अगर भूल जाना रास्ता
तो ध्रुवतारे पर नहीं
सिर्फ़ दूर से आनेवाली
कुत्तों के भूंकने की आवाज़ पर
भरोसा करना
मेरे बेटे
बुध को उत्तर कभी मत जाना
न इतवार को पच्छिम
और सबसे बड़ी बात मेरे बेटे
कि लिख चुकने के बाद
इन शब्दों को पोंछकर साफ़ कर देना
ताकि कल जब सूर्योदय हो
तो तुम्हारी पटिया
रोज़ की तरह
धुली हुई
स्वच्छ
चमकती रहे
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट