इन दिनों एकल परिवारों का चलन है और कोविड महामारी के बाद अब तो घर के हर छोटे-बड़े सदस्य के हाथ में मोबाइल फ़ोन है. इंटरनेट का कनेक्शन भी घर-घर में हैं. हर किसी की दुनिया अपने फ़ोन तक सिमटने लगी है. ऐसे में एक ही घर के सदस्यों के बीच भी बातचीत न के बराबर होती है. लेकिन संवाद की कमी से रिश्तों के बीच स्नेह और संबंधों की प्रगाढ़ता में कमी आने लगती है. बात यहीं तक होती तो भी ठीक था, लेकिन संवाद की इस कमी से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ने लगा है. यदि आप चाहते/चाहती हैं कि आपके परिवार में ऐसा न हो तो यह आलेख आपको ज़रूर पढ़ना चाहिए.
कुछ समय पूर्व मोबाइल पर एक संदेश बहुत वायरल हुआ था. संदेश कुछ यूं था कि एक हॉल में सपरिवार सब बैठे हैं. सब के हाथ में मोबाइल है. किसी को किसी से मतलब नहीं है.आज यह स्थिति अमूमन हर परिवार की है. सभी अपने कार्यों में व्यस्त, बचा हुआ समय मोबाइल पर…
क्या आपको याद है पिछली बार सभी एक साथ कब मिल बैठे थे, कब ठहाके लगाए थे या कब आपस में गपशप की थी? नहीं ना! बस यही बदलाव ज़िंदगी के कितने ही मायने बदल गया है हमने इस पर ग़ौर भले ही न किया हो, लेकिन युवाओं के डिप्रेशन और अवसाद के जो बढ़ते मामले हैं, उनके पीछे संवाद की कमी भी एक बड़ा कारण है. संवाद की कमी की वजह से ही घर के सदस्यों को ऐसा महसूस होने लगा है कि उनके बीच आपसी दूरियां बढ़ने लगी हैं, हर इंसान मन में अकेलेपन के बोझ को ढोता रहता है और मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ाने लगा.
वर्ष 2017 में आईसीएमआर द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि देश में 4.57 करोड़ लोग अवसाद यानी डिप्रेशन जैसे मानसिक विकार और 4.49 करोड़ लोग बेचैनी से पीड़ित हैं. इस रिसर्च के अनुसार, देश में कुल 19.7 करोड़ लोग या यूं कहें कि हर सातवां भारतीय किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी से ग्रस्त है.
आप आज से बस कुछ दशक पूर्व का अपना जीवन याद कीजिए क्या तब ऐसी स्थितियां थीं? आपको अपने मन के भीतर से यही जवाब मिलेगा कि ऐसा नहीं था. फिर क्या वजह है कि आजकल मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामले ज़्यादा सामने आ रहे हैं?
कुछ दशक पूर्व ही तो संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवारों का बोलबाला बढ़ा है. इन एकल परिवारों में गिनती के तीन या चार सदस्य रह गए. उसमें भी यदि पति-पत्नी दोनों कामकाजी हुए तो आपस में मिल बैठने के अवसर भी कम ही मिल पाते हैं. इस पर संचार के बढ़े हुए साधनों ने सभी को स्वयं तक सीमित कर दिया है.
यही वजह है कि परिवार का कौन सा सदस्य किन परिस्थितियों से गुज़र रहा है, किसी को पता नहीं चलता. समस्या गंभीर होने पर जब तक यह बात पकड़ में आती है, तब तक वह सदस्य कई तरह की मानसिक बीमारियों की चपेट में आ चुका होता है. यदि परिवार के सदस्य पहले ही दिन का कुछ समय साथ बिताने को एक नियम सा बना लेते, एक-दूसरे से मन की बात कह लेते तो यह स्थिति आने ही नहीं पाती. आइए जान लेते हैं कि किस तरह आपसी संवाद से हम इस तरह की स्थितियों से बच सकते हैं:
* परिवार एकल हो तब भी परिवार के सभी सदस्य आपस में बातचीत करते रहें. एक-दूसरे से उनके हालचाल जानते रहें.
* अगर पत्नी पति पत्नी कामकाजी हैं तो बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर बराबर नज़र रखें. स्कूल में पैरेंट्स मीटिंग हो तो कोशिश कर के साथ-साथ जाएं.
* कुछ अच्छा करने पर एक दूसरे को प्रोत्साहित जरूर करें.
* दिन का एक खाना फिर चाहे वो नाश्ता, लंच या डिनर कोई भी क्यों न हो साथ में खाएं और दिनभर की में किस के साथ क्या हुआ इसकी जानकरी दें और लें भी.
* वीकेंड आपस में मिल कर बिताएं. ऐसा ना हो कि बच्चे अपने दोस्तों के साथ आप अपने.
* चाहें तो घर के सभी सदस्य योग या एक्सरसाइज़ साथ में कर सकते हैं.
* जब भी आपस में बात करने बैठें कोशिश करें कि सभी सदस्य मोबाइल से दूरी बनाए रहें, वरना एक बोलेगा दूसरा मोबाइल में गुम रहे तो ऐसी बातचीत के कोई मायने नहीं रह जाते हैं.
* यदि किसी वजह से भोजन साथ में नहीं कर सकते हैं तो कोई ऐसा समय तय करें जब सभी सदस्य साथ हैं और एक-दूसरे से जुड़ी बातों पर चर्चा करें.
* कभी कभी साथ में घूमने निकल जाएं इस बहाने नज़दीकियां बढ़ती हैं.
फ़ोटो : फ्रीपिक