• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब कविताएं

मोचीराम: धूमिल की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
October 11, 2023
in कविताएं, ज़रूर पढ़ें, बुक क्लब
A A
मोचीराम: धूमिल की कविता
Share on FacebookShare on Twitter

धूमिल की रचनाओं में लंबी कविता ‘मोचीराम’ की विशेष जगह है. जूते की मरम्मत करनेवाला एक आदमी समाज के हर तबके और हर तरह के लोगों के ख़बर रखता है. बातचीत के लहज़े में लिखी यह कविता भारतीय समाज और सोच को काफ़ी हद तक बयां करती है.

रांपी से उठी हुई आंखों ने मुझे
क्षण-भर टटोला
और फिर
जैसे पतियाये हुए स्वर में
वह हंसते हुए बोला
बाबूजी सच कहूं-मेरी निगाह में
न कोई छोटा है
न कोई बड़ा है
मेरे लिए, हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने
मरम्मत के लिए खड़ा है

और असल बात तो यह है
कि वह चाहे जो है
जैसा है, जहां कहीं है
आजकल
कोई आदमी जूते की नाप से
बाहर नहीं है
फिर भी मुझे ख़्याल रहता है
कि पेशेवर हाथों और फटे जूतों के बीच
कहीं न कहीं एक आदमी है
जिस पर टांके पड़ते हैं,
जो जूते से झांकती हुई अंगुली की चोट छाती पर
हथौड़े की तरह सहता है

इन्हें भीपढ़ें

grok-reply-1

मामला गर्म है: ग्रोक और ग्रोक नज़र में औरंगज़ेब

March 24, 2025
इस दर्दनाक दौर की तुमको ख़बर नहीं है: शकील अहमद की ग़ज़ल

इस दर्दनाक दौर की तुमको ख़बर नहीं है: शकील अहमद की ग़ज़ल

February 27, 2025
फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024

यहां तरह-तरह के जूते आते हैं
और आदमी की अलग-अलग ‘नवैयत’
बतलाते हैं
सबकी अपनी-अपनी शक्ल है
अपनी-अपनी शैली है
मसलन एक जूता है:
जूता क्या है-चकतियों की थैली है
इसे एक आदमी पहनता है
जिसे चेचक ने चुग लिया है
उस पर उम्मीद को तरह देती हुई हंसी है
जैसे ‘टेलीफ़ून’ के खम्भे पर
कोई पतंग फंसी है
और खड़खड़ा रही है
‘बाबूजी! इस पर पैसा क्यों फूंकते हो?’
मैं कहना चाहता हूं
मगर मेरी आवाज़ लड़खड़ा रही है
मैं महसूस करता हूं-भीतर से
एक आवाज़ आती है-‘कैसे आदमी हो
अपनी जाति पर थूकते हो’
आप यकीन करें, उस समय
मैं चकतियों की जगह आंखें टांकता हूं
और पेशे में पड़े हुए आदमी को
बड़ी मुश्किल से निबाहता हूं

एक जूता और है जिससे पैर को
‘नांघकर’ एक आदमी निकलता है
सैर को
न वह अक्लमन्द है
न वक़्त का पाबन्द है
उसकी आंखों में लालच है
हाथों में घड़ी है
उसे जाना कहीं नहीं है
मगर चेहरे पर
बड़ी हड़बड़ी है
वह कोई बनिया है
या बिसाती है
मगर रोब ऐसा कि हिटलर का नाती है
‘इशे बांद्धो, उशे काट्टो, हियां ठोक्को, वहां पीट्टो
घिस्सा दो, अइशा चमकाओ, जूत्ते को ऐना बनाओ
…ओफ्फ़! बड़ी गर्मी है’
रुमाल से हवा करता है,
मौसम के नाम पर बिसूरता है
सड़क पर ‘आतियों-जातियों’ को
बानर की तरह घूरता है
गरज़ यह कि घण्टे भर खटवाता है
मगर नामा देते वक़्त
साफ़ ‘नट’ जाता है
शरीफ़ों को लूटते हो’ वह गुर्राता है
और कुछ सिक्के फेंककर
आगे बढ़ जाता है
अचानक चिंहुककर सड़क से उछलता है
और पटरी पर चढ़ जाता है
चोट जब पेशे पर पड़ती है
तो कहीं-न-कहीं एक चोर कील
दबी रह जाती है
जो मौक़ा पाकर उभरती है
और अंगुली में गड़ती है

मगर इसका मतलब यह नहीं है
कि मुझे कोई ग़लतफ़हमी है
मुझे हर वक़्त यह ख़याल रहता है कि जूते
और पेशे के बीच
कहीं-न-कहीं एक अदद आदमी है
जिस पर टांके पड़ते हैं
जो जूते से झांकती हुई अंगुली की चोट
छाती पर
हथौड़े की तरह सहता है
और बाबूजी! असल बात तो यह है कि ज़िन्दा रहने के पीछे
अगर सही तर्क नहीं है
तो रामनामी बेंचकर या रण्डियों की
दलाली करके रोज़ी कमाने में
कोई फ़र्क़ नहीं है
और यही वह जगह है जहां हर आदमी
अपने पेशे से छूटकर
भीड़ का टमकता हुआ हिस्सा बन जाता है
सभी लोगों की तरह
भाष़ा उसे काटती है
मौसम सताता है
अब आप इस बसन्त को ही लो,
यह दिन को तांत की तरह तानता है
पेड़ों पर लाल-लाल पत्तों के हजा़रों सुखतल्ले
धूप में, सीझने के लिए लटकाता है
सच कहता हूं-उस समय
रांपी की मूठ को हाथ में संभालना
मुश्क़िल हो जाता है
आंख कहीं जाती है
हाथ कहीं जाता है
मन किसी झुंझलाए हुए बच्चे-सा
काम पर आने से बार-बार इन्कार करता है
लगता है कि चमड़े की शराफ़त के पीछे
कोई जंगल है जो आदमी पर
पेड़ से वार करता है

और यह चौकने की नहीं, सोचने की बात है
मगर जो ज़िन्दगी को किताब से नापता है
जो असलियत और अनुभव के बीच
ख़ून के किसी कमज़ात मौक़ पर कायर है
वह बड़ी आसानी से कह सकता है
कि यार! तू मोची नहीं, शायर है

असल में वह एक दिलचस्प ग़लतफ़हमी का
शिकार है
जो वह सोचता कि पेशा एक जाति है
और भाषा पर
आदमी का नहीं, किसी जाति का अधिकार है
जबकि असलियत है यह है कि आग
सबको जलाती है सच्चाई
सबसे होकर गुज़रती है
कुछ हैं जिन्हें शब्द मिल चुके हैं
कुछ हैं जो अक्षरों के आगे अन्धे हैं
वे हर अन्याय को चुपचाप सहते हैं
और पेट की आग से डरते हैं
जबकि मैं जानता हूं कि ‘इन्कार से भरी हुई एक चीख़’
और ‘एक समझदार चुप’
दोनों का मतलब एक है
भविष्य गढ़ने में ,‘चुप’ और ‘चीख’
अपनी-अपनी जगह एक ही क़िस्म से
अपना-अपना फ़र्ज अदा करते हैं

Photo for Illustration purpose only. Photo Credit: Pinterest

Tags: Aaj ki KavitaAntara Class 11DhumilDhumil PoetryDhumil’s poem MochiramDhumil’s Poem Mochiram SummaryHindi KavitaHindi KavitayeinHindi KavitayenHindi PoemKavitaMochiram by Dhumilअंतरा कक्षा 11अंतरा की कविताएंआज की कविताकविताधूमिलधूमिल की कविताधूमिल की कविता मोचीरामधूमिल की कविता मोचीराम का अर्थमोचीरामहिंदी कविता
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

Butterfly
ज़रूर पढ़ें

तितलियों की सुंदरता बनाए रखें, दुनिया सुंदर बनी रहेगी

October 4, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)
क्लासिक कहानियां

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
ktm
ख़बरें

केरल ट्रैवल मार्ट- एक अनूठा प्रदर्शन हुआ संपन्न

September 30, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.