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Home ओए एंटरटेन्मेंट

फ़िल्म काला पत्थर का वह गाना जिसे लोगों ने ज़्यादा नहीं गाया

जय राय by जय राय
December 28, 2021
in ओए एंटरटेन्मेंट, रिव्यूज़
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फ़िल्म काला पत्थर का वह गाना जिसे लोगों ने ज़्यादा नहीं गाया
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हम भारतीयों के जीवन में संगीत का क्या महत्व है, इसपर काफ़ी कुछ लिखा बोला जा चुका है. हमारे अपने संगीत प्रेमी और लेखक जय राय उन भूले बिसरे गीतों पर लेखों की एक सिरीज़ शुरू कर रहे हैं, जो बेहद प्यारे और मिनिंगफ़ुल होने के बावजूद उतने मशहूर नहीं हो सके, उतनी मक़बूलियत नहीं हासिल कर पाए, जिसके वे हक़दार थे.

अच्छे-बुरे, मशहूर-गुमनाम को हम ब्लैक-ऐंड वाइट की तरह कैटेगराइज़ नहीं कर सकते. यानी जो अच्छा है, वह हमेशा मशहूर ही होगा और बुरा हमेशा गुमनाम हो जाएगा, ज़रूरी नहीं है. ख़ासकर फ़िल्मी संगीत के बारे में यही देखा गया है. आपने महसूस किया होगा कि जिस गीत को प्रसिद्धि मिल जाती है, उसे बहुत दिनों तक याद रखा जाता है. पर ऐसा नहीं है कि जो गाने लोगों की ज़ुबां पर चढ़े हों, केवल वही अच्छे रहे हों. हमारी फ़िल्मों के इतिहास से हमें यह पता चलता है कि गुज़रे हुए दौर में या वर्तमान में भी बहुत सारी फ़िल्मों के अनगिनत बेहतरीन गाने प्रसिद्धि ना मिलने के कारण, ज़्यादा सुनाई नहीं देते. देखिए, इसका एक कारण यह हो सकता है कि आम जनता सिर्फ़ उसी गीत को गुनगुनाना या सुनना पसंद करती है, जिसका मतलब एकदम आसानी से समझ में आ जाए. रोमैंटिक, दर्द भरे गीत, ख़ुशी के जश्न वाले गीत, प्यार के इज़हार वाले गीतों के अलावा कभी-कभी फ़िल्म की कहानी के अनुसार ऐसे गीतों की ज़रूरत पड़ती है जो एक साथ फ़िल्म की कई कहानियों को जोड़ें और फ़िल्म की सेंट्रल कहानी को मज़बूती दें. इसका एक बेहतरीन उदाहरण है फ़िल्म काला पत्थर का गीत ‘जग्गेया-जग्गेया’ जिसे महेंद्र कपूर ने गाया है. याद कीजिए कि आपने इस बेहतरीन गाने को आख़िरी बार कब और कहां सुना था? या फिर किसी ने आपसे इस गीत की चर्चा की क्या?

व्यापार के हिसाब से वर्ष 1979 बॉलीवुड के लिए क़ामयाब साल रहा था. इस साल सुहाग, जानी दुश्मन, गोलमाल जैसी कई अन्य फ़िल्मों ने लोगों का बेहतरीन मनोरंजन किया था. फ़िल्म काला पत्थर ने ठीक-ठाक कमाई की थी और उस दौर के प्रतिष्ठित फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड में उसे कई कैटेगरी में नॉमिनेशन मिला था. फ़िल्म के डायरेक्टर थे यश चोपड़ा, कहानी थी सलीम-जावेद की. चूंकि हम इसके गीत की बात करने जा रहे हैं तो बता दें कि इसके लिए गीत लिखे थे साहिर लुधियानवी ने और संगीत दिया था राजेश रोशन ने. फ़िल्म की कहानी कुछ यूं है-विजयपाल सिंह (अमिताभ बच्चन) मर्चेंट नेवी में कैप्टन थे. एक हादसे के चलते उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है. अपने अपराधबोध से मुक्ति पाने के लिए विजय कोयला खदान में आम मज़दूर की तरह काम करना शुरू करते हैं और गुमनाम ज़िंदगी जीना शुरू करते हैं. पर हम अपने अतीत से चाहे कितना भी भाग लें, बीती बातें चुपचाप हमारा पीछा करती रहती हैं. आगे बहुत कुछ होता है, कई और किरदार हैं. सबकी ज़िंदगियां किस तरह आपस में जुड़ती-उलझती हैं. इस कॉम्प्लेक्स संबंध को फ़िल्म ख़ूबसूरती से दिखाती है.
ख़ैर हमें बात करनी थी फ़िल्म के एक शानदार, लेकिन तुलनात्मक रूप से गुमनाम गीत जग्गेया-जग्गेया की. सारे काम छोड़कर एक बार इत्मीनान से इस गाने को सुनें, हमारा दावा है की यह गाना सुनने के बाद आपका स्वयं को और दुनिया को देखने का नज़रिया बदल जाएगा. आपको ख़ुद से और दुनिया के सारे लोगों से प्यार हो जाएगा. हो सकता है पंजाबी पुट वाला यह गीत आपको समझने में कठिन लगे, पर फिर वही बात आंखें बंद कीजिए और शब्दों को समझने नहीं, महसूस करने की कोशिश कीजिए. इस तरह बिना दिमाग़ पर ज़ोर डाले आपके सामने प्यार और उसकी रुहानी पवित्रता से भरी एक दुनिया होगी. गीत के बोल कुछ इस तरह हैं

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इश्क़ और मुश्क़ कदे न छुपदे
ते चाहे लख छुपाइये
ओए, अखां लख झुकाके चलिये
ते पल्ला लख बचाइये

इश्क़ और मुश्क़ कदे न छुपदे
ते चाहे लख छुपाइये
अखां लख झुकाके चलिये
पल्ला लख बचाइये

इश्क़ है सच्चे रब दी रहमत
इश्क़ तों क्यूं शर्माइये
चढ़दे चंद ने चढ़के रहना
हो, चढ़दे चंद ने चढ़के रहना
कान्नू पर्दे पाइये, कान्नू पर्दे पाइये

जग्गेया जग्गेया जग्गेया, कदे
इश्क़ छुपण नैयों लगेया

हो हो हो हो …
आ आ आ आ आ …

दुनिया दी इस भीड़ दे अंदर
हां ते, दुनिया दी इस भीड़ दे अंदर
जे कोई अपणा पाइये
अपणे नूं खुशकिस्मत कहिये
रब दा शुकर मनाइये
दिल बदले दिल मिलें ते यारा …
हो …

होये, दिल बदले दिल मिलें ते यारा
सौदा झट चुकाइये
अम्बर ते जो स्वरग बसे, ओए
अम्बर ते जो स्वरग बसे
ओ धरती ते लै आइये
धरती ते लै आइये

जग्गेया जग्गेया जग्गेया, कदे
इश्क़ छुपण नैयों लगेया

होये… कदे इश्क़ छुपण नैयों लगेया
हो… कदे इश्क़ छुपण नैयों लगेया
होये… कदे इश्क़ छुपण नैयों लगेया

ओ दुनिया चार दिनां दा मेला
दुनिया चार दिनां दा मेला
ओ दुनिया चार दिनां दा मेला
हो, मत्थे बल न पाइये
हो, मत्थे बल न पाइये
होये, कौण भले कौण मन्दे जग विच्च
कौण भले कौण मन्दे जग विच्च
सबणा नाल निभाइये
सबणा नाल निभाइये …

जग्गेया जग्गेया जग्गेया, सान्नू
कौल ऐ सच्चा लगेया
जग्गेया जग्गेया जग्गेया, सान्नू
कौल ऐ सच्चा लगेया

पापां दी इस नगरी अंदर
किस दे ऐब गिनाइये
अपणे अंदर जद-जद तकिये
अपणे अंदर जद-जद तकिये
ओ … ओ … ओ …
अपणे तों शर्माइये …
अपणे तों शर्माइये

जग्गेया जग्गेया जग्गेया, सान्नू
कौल ऐ सच्चा लगेया
जग्गेया जग्गेया जग्गेया, सान्नू
कौल ऐ सच्चा लगेया

इस गीत की शुरुआत होती है एक ढाबे से. रात का वक़्त है, बरसात हो रही है. गानेवाले पंजाबी युवक की भूमिका में है परीक्षित साहनी. आवाज़ है महेंद्र कपूर की. हाथ में डफली और एक लम्बे अलाप के बाद गीत की शुरुआत होती है. इस गीत की शुरुआत से लेकर अंत तक कोई भी लाइन आपको फ़िज़ूल की नहीं लगेगी. सबसे बड़ी बात इसे ध्यान से सुनते समय, आप इस गीत को ख़तम करते-करते थोड़ा तो ज़रूर बदल गए होंगे. गाने की हर लाइन का मतलब मानवता के हिस्से जाता है. इश्क़ दुनिया की ऐसी चीज़ है, जिसे कोई नहीं छिपा सकता. आप लाख नज़रें नीचे करके चलिए, लेकिन जिस दिन आपको इश्क़ होगा, उस दिन पूरी दुनिया जान जाएगी. यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है फिर अगर आप किसी और दुनिया की कल्पना करते हैं जो इससे भी सुंदर है तो ठीक वैसी दुनिया इस धरती पर बनाइए. दुनिया में जब तक आप किसी से मिलेंगे नहीं, तब तक आप अकेले हैं. दुनिया की इस भीड़ में जो भी आपको अपना लगे, उसे पाकर ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत समझिए और भगवान का शुक्र अदा करिए की कोई तो है आपके लिए इस दुनिया में. किसी के मिलने से ही आपका अकेलापन जाएगा. आपकी इस दुनिया में चार दिन की कहानी है आप इस बात पर ज़ोर देकर अपने माथे पर बल ना डालिए की कौन बुरा है और कौन अच्छा. आप किसी के ऐब मत गिनिए. आप हर बार ख़ुद के अंदर झांकिए और ख़ुद को और अच्छा बनाइए, यह दुनिया और सुंदर हो जाएगी. अब कहने को तो यह एक फ़िल्मी गीत है, पर यह अपने आप में सूफ़ी फ़िलासफ़ी से प्रेरित शानदार गीत है. ऐसे समय में, जब दुनिया एक बार फिर से संकीर्णता वादी बनने की ओर बढ़ रही है. अपने दरवाज़े ग़ैरों को लिए बंद करने लगी है. इस गीत को सुनने और समझने की ज़रूरत सबसे ज़्यादा है. सुनिए, महसूस कीजिए और कहिए…

अम्बर ते जो स्वरग बसे, ओए
अम्बर ते जो स्वरग बसे
ओ धरती ते लै आइये

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जय राय

जय राय

जय राय पेशे से भले एक बिज़नेसमैन हों, पर लिखने-पढ़ने में इनकी ख़ास रुचि है. जब लिख-पढ़ नहीं रहे होते तब म्यूज़िक और सिनेमा में डूबे रहते हैं. घंटों तक संगीत-सिनेमा, इकोनॉमी, धर्म, राजनीति पर बात करने की क़ाबिलियत रखनेवाले जय राय आम आदमी की ज़िंदगी से इत्तेफ़ाक रखनेवाले कई मुद्दों पर अपने विचारों से हमें रूबरू कराते रहेंगे. आप पढ़ते रहिए दुनिया को देखने-समझने का उनका अलहदा नज़रिया.

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