यूं तो अपना देश छोड़कर अच्छा भविष्य बनाने के लिए विदेश जाने वाले और वहां बस जाने वाले भारतीयों के मन में भारत के लिए प्रेम होना स्वाभाविक है. वे अपने प्रेम का बखान अपने परिजनों से करते भी रहते हैं, बावजूद इसके कि वे भारत लौटकर नहीं आना चाहते, यह सच भी किसी से छुपा नहीं है. लेकिन जब से मौजूदा सरकार आई है, (जो हर बात पर इवेंट मैनेजमेंट की पैरोकार है, भले ही आंकड़े कुछ और बयान कर रहे हों) प्रवासी भारतीयों का भारत प्रेम बहुत उछाल मार रहा है. ऐसे में उनसे यह पूछा जाना गलत तो नहीं है कि आप अपने देश को आख़िर क्यों इतना प्रेम करते हैं और आप कब भारत वापस लौट आएंगे?
आज से तरक़रीब 11 वर्ष पहले मुझे स्वतंत्रता दिवस पर एक आलेख तैयार करना था, जिसका विषय था- ‘‘प्रवासी भारतीय अपने देश को क्यों करते हैं इतना प्यार’’. पर इसमें एक पेंच भी था. उन्हें ‘मेरा जन्म यहां हुआ है, मातृभूमि से प्रेम है, मेरे माता-पिता और परिवार यहां रहता है’ जैसे कारणों से इतर कोई कारण बताना था.
मेरे अपने कई दोस्त, भाई-बहन विदेशों में रहते हैं और मेरे कई कलीग्स के भी. जब मैंने उनसे इस बाबत जानना चाहा तो सारे ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हो गए, लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि इन कुछ कारणों को छोड़कर आपको कोई कारण बताना है… तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि उनमें से किसी के पास भी कोई एक ऐसा कारण नहीं था, जिसकी वजह से वे अपने देश को प्यार करते हों या यहां वापस लौट आना चाहते हों. ये सभी वे लोग थे, जो पढ़ाई या नौकरी के सिलसिले में भारत से बाहर गए थे. ये कुछ एक सालों के अंतराल पर या फिर हर वर्ष भी भारत लौटते तो हैं, लेकिन रहना विदेशों में ही चाहते हैं.
इस बात से मुझे कोई गुरेज़ भी नहीं और किसी को भी क्यों होना चाहिए? उन्होंने अपनी मेहनत से, अपने पैसे से विदेश का रुख़ किया है और वहां अपना अच्छा मुकाम हासिल किया है. विदेशी धरती पर उन्हें अच्छी रोज़ी-रोटी मिल रही है, उनके बच्चों को अच्छी तालीम मिल रही है, वे चार पैसे बचाकर अपने माता-पिता या रिश्तेदारों को भेज रहे हैं और अपने देश में निवेश भी कर रहे हैं. जब वे उच्चस्तरीय और सुकूनभरा जीवन जी रहे हैं तो भला वे वापस क्यों लौटें?
अब सीधे वर्तमान पर आ जाते हैं. चूंकि पहले के भारतीय नेताओं को अपनी छवि से बहुत प्यार नहीं था, बल्कि देश की छवि से प्रेम था, वे विदेशी धरती पर जाते और वहां मौजूद भारतीय नागरिकों से मिलते तो थे, लेकिन कभी इसे किसी इवेंट का रूप नहीं देते थे. पिछले 10 वर्षों में जो सरकार आई है उसने प्रधानमंत्री के विदेश दौरे को हर उस जगह एक इवेंट का रूप दिया, जहां कहीं वे सरकारी दौरे पर जाते. विदेशों में बसे भारतीय लोगों को बाकायदा आमंत्रित करके इन इवेंट्स में बुलाया जाने लगा. ज़ाहिर है, हर बरस भारत का दौरा करने वाले ये प्रवासी भारतीय भारत आकर, चाहें तब भी प्रधानमंत्री से नहीं मिल सकते (यहां पिछले वर्ष इंदौर में आयोजित प्रवासी भारतीय सम्मेलन में अव्यवस्था से नाराज़ इन विदेश में जा बसे लोगों को याद करना न भूलें), लेकिन यह मौक़ा उन्हें विदेश की धरती पर, जहां वे रह रहे हैं, आसानी से मिल जाए तो वे क्यों न ख़ुश हों?
यह दौर है भी इंटरनेट और सोशल मीडिया वाला, जिसमें किसी बड़े आदमी के साथ खींची गई सेल्फ़ी का भी अपना टशन है और उसे सब के साथ साझा करके ख़ुद के बड़े आदमी होने के ऐलान का भी. तो ये इवेंट सफल क्यों न होते? इन जगहों पर विदेश में रह रहे इन भारतीयों को यह जताने में बड़ा फ़ख्र महसूस होता है कि वे भारत से कितना प्यार करते हैं, तभी तो प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में दौड़े-दौड़े चले आए, भले ही अपनी धरती से इसलिए विदेश का रुख़ किया, ताकि अदद अच्छी नौकरी पाकर अपना और परिवार वालों का जीवन संवार सकें.
मौजूदा सरकार ने विदेश में बसे भारतीयों के बीच अपनी ऐसी छवि भी बनाई कि जैसे इससे पहले तो भारत कुछ था ही नहीं, केवल उनके आने मात्र से 10 बरसों में भारत की इतनी पूछ-परख बढ़ी है और देश में भी सब कुछ हरा ही हरा हो रहा है. इस हरियाली के दिखावे में इन प्रवासी भारतीयों के पास देश की सामाजिक समरसता में किए जा रहे छेद की ख़बरें पहुंची भी होंगी तो उन्होंने तवज्जो नहीं दिया, क्योंकि मनुष्य की स्वाभाविक आदत है कि वह तवज्जो उसी घटना को देता है, जब उसके साथ या उसके किसी अपने के साथ वह घटना घटी हो. लेकिन ये प्रवासी भारतीय ये भूल जाते हैं कि जिन देशों में ये रह रहे हैं, अपना जीवन सुखपूर्वक बिता रहे हैं, वहां इन्हें सामाजिक समरसता, सद्भावना और सहिष्णुता के चलते ही स्वीकार किया गया है. तब क्या इनका यह कर्तव्य नहीं हो जाता कि अपने देश में यदि सामाजिक सौहार्द बिगड़ रहा हो तो वे इसके विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करें? पर इस मामले में वे उतने मुखर नज़र नहीं आते, जितने कि अपने लिए देश में आयोजित प्रवासी सम्मेलन में अव्यवस्था पर कुपित दिखाई देते हैं. तो आख़िर इसे इनका दोहरा मापदंड क्यों न कहा जाए?
बात आर्थिक हालात की करें तो यह तो हो ही नहीं सकता कि विदेश में बसे भारतीयों को इस बात की ख़बर न हो कि भारत की अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है. और कुछ हो न हो, इन्हें यह तो मालूम ही होगा कि डॉलर की तुलना में रुपया गिर रहा है. हालांकि यह भी इन प्रवासी भारतीयों के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, क्योंकि ये ख़ुद डॉलर या उस देश की करेंसी में वेतन पाते हैं, जहां ये रहते हैं. यदि रुपए का मूल्य गिर रहा है तो डॉलर का तुलनात्मक रूप से बढ़ रहा है यानी भारतीय मुद्रा, जो ये अपने परिजनों को भेजते हैं या जिसे ये बचाते हैं, वह भी बढ़ रही है तो भला इन्हें वर्तमान सरकार से कोई समस्या क्यों हो?
प्रवासी भारतीयों में से अधिकतर उन सरकारी विभागों और उपक्रमों में काम करने वाले माता-पिता की संतानें हैं, जिन्हें पुरानी सरकारों द्वारा निर्धारित पेंशन योजना के तहत पेंशन मिल रही है. अब चूंकि माता-पिता को पेंशन मिल रही है और उनके ख़ुद के अकाउंट में पैसों की बढ़ोतरी हो रही है तो वे धर्म के नाम पर बरगलाने वालों का साथ क्यों न दें? आख़िर अपनी मौजूदा संपत्ति को बचाने के नाम पर उनके धर्मभीरू होने में उन्हें कोई बुराई क्यों नज़र आए? उनका इहलोक तो सुधरा ही हुआ है और सुधर ही रहा है तो परलोक सुधारने के नाम पर वे धर्म की जय बोलने से क्यों बाज़ आएं? आख़िर सही बात पर स्टैंड लेना हर एक के बस की बात तो नहीं होती!
बीच में आंकड़े आए कि वर्ष 2022 में देश से तकरीबन सात लाख स्टूडेंट पढ़ाई के लिए देश से बाहर गए. यदि देश में इतनी तरक्की हुई है और शिक्षा की इतनी ही अच्छी सुविधाएं हैं तो विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए बाहर क्यों जाना पड़ रहा है? इस सवाल से भी प्रवासी भारतीयों को कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि बहुत पहले उन्होंने भी यही क़दम उठाया था.
अंग्रेज़ी की एक कहावत है- यू कान्ट हैव केक ऐंड ईट इट टू, जिसे भारतीय कहावत आपके ‘दोनों हाथों में लड्डू’ नहीं हो सकता से रिलेट किया जा सकता है. लेकिन फ़िलहाल तो प्रवासी भारतीयों के तो दोनों हाथों में लड्डू है और वे इसे खा भी रहे हैं. देश में तो मिलता ही था, विदेश की धरती पर भी अब उन्हें इवेंट कराके सम्मान मिल रहा है और रुपया गिर रहा है सो गिरता रहे, वे स्वयं व्यक्तिगत रूप से धनी ही हो रहे हैं. और उनके पास दुनिया को दिखाने के लिए अपने प्रधानमंत्री के साथ ली गई सेल्फ़ी तो है ही! फिर भला प्रवासी भारतीय मौजूदा सरकार का जयकारा क्यों न करें?
पर मेरा सवाल प्रवासी भारतीयों से फिर वही है- बताइए कि आप अपने देश को इतना प्यार क्यों करते हैं? ‘मेरा जन्म यहां हुआ है, मातृभूमि से प्रेम है, मेरे माता-पिता और परिवार यहां रहता है’ जैसे कारणों से इतर कोई कारण बताइए. और यह भी बताइए कि क्या आप भारत वापस लौट आना चाहते हैं? चलिए आपको यह छूट भी दे दी कि आप इसके साथ जुड़े हुए ‘लेकिन, यदि’ (if and but) के साथ भी अपने देश को प्यार करने का कारण बता सकते हैं. तो बताएं? आपके जवाब का इंतज़ार है…
फ़ोटो साभार: फ्रीपिक